पशु चारे के संकट के चलते दम तोड़ रहा है पशु पालन व्यवसाय
–गौचर से दिग्पाल गुसाईं।
पहाड़ी क्षेत्र के लोगों का मुख्य व्यवसाय पशुपालन व कृषि है लेकिन आजीविका की रीढ़ माने जाने वाला यह व्यवसाय पशु चारे के संकट के चलते दम तोड़ता नजर आने लगा है।समय रहते इस ओर ध्यान नहीं दिया गया तो एक बार पुनः दूध के लिए लोगों की निर्भरता मैदानी भागों पर बढ़ जाएगी।
अलग राज्य बनने के बाद पहाड़ी क्षेत्रों में निवास करने वाले लोगों की मैदानी भागों से आने वाली मिलावटी दूध से निर्भरता समाप्त करने व पहाड़ी क्षेत्र के कास्तकारों के पिस्तैनी व्यवसाय को जिंदा रखने के प्रयास तो किए गए लेकिन सरकार किसी की भी रही हो किसी ने भी इसे गंभीरता से नहीं लिया है।नतीजन पशुपालकों को यह व्यवसाय आज तक फायदे का सौदा नहीं बन पाया है।जगह जगह आंचल दुग्ध समितियां खोली तो गई हैं लेकिन समितियों द्वारा पशुपालकों से दूध को फैट के हिसाब से औने पौने दामों पर खरीदने से समितियों से जुड़े पशुपालकों का व्यवसाय आज तक पनप नहीं पाया है। पहाड़ी क्षेत्रों में पशुपालन व्यवसाय के लिए पशु आहार, भूसा व हरे चारे की सबसे बड़ी समस्या है। कुछ समय पहले जब सरकारों ने रियायती दरों पर भूसा उपलब्ध कराना शुरू किया तो डेरी व्यवसायियों को लाभ नजर आने लगा था।कोरोना बीमारी की वजह से देश के विभिन्न भागों से घर लौटे युवाओं ने अपनी आजीविका के लिए डेरी व्यवसाय में अपना भविष्य वांचना शुरू किया। इसी बीच सरकार ने घसियारी योजना शुरू की तो इस व्यवसाय से युवाओं ने राहत की सांस ली लेकिन विडम्बना इस बात की है कि अभी तक इस योजना को सीमांत जनपद चमोली में शुरू ही नहीं किया जा सका है इससे कालाबाजारी को भी बढ़ावा मिलने लगा है। योजना को शुरू हुए अभी चंद समय भी नहीं हुआ है। अधिकारियों को पशुपालकों के बजाय अपना लाभ ज्यादा नजर आने लगा है।मुख्यमंत्री घस्यारी योजना के तहत मिलने वाली शैलेज नाम के हरे चारे की गुणवत्ता इतनी घटिया दी जा रही है कि जहां पशु इसके खाने से बीमार होने लगे हैं वहीं पशुओं ने दूध भी कम करना शुरू कर दिया है। पिछले चार माह से अधिक समय से सरकार ने पशुपालकों को भूसा देना भी बंद कर दिया है पशुपालक किसी तरह अपनी पशुओं की जान बचाने के लिए बाजारों से महंगा भूसा खरीदने को मजबूर हो गए हैं।कई लोगों ने अपने पशुओं को औने-पौने दामों पर बेचना शुरू कर दिया है समय रहते मुख्यमंत्री घस्यारी योजना को गंभीरता से नहीं लिया गया तो वह दिन दूर नहीं जब सरकार की यह महत्वपूर्ण योजना भी घास चरने चली जाएगी। डेरी व्यवसाय करने वाले कांसुवा निवासी हरीश रावत का कहना है कि कोरोना बीमारी की वजह घर लौटने के बाद उन्होंने डेरी व्यवसाय अपनाया लेकिन पिछले कुछ माह से भूसा न मिलने से पशुओं को पालने का घोर संकट पैदा हो गया है।घस्यारी योजना के तहत मिलने वाला हरे चारे की गुणवत्ता इतनी घटिया है कि इसके खाने से पशु बीमार हो जा रहे हैं। कमला रतूड़ी, रमेश डिमरी, विजया गुसाईं, कंचन कनवासी, जशदेई कनवासी आदि का कहना है कि चारे के संकट की वजह से कोई भी पशु खरीदने को तैयार नहीं हो रहा है।