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अंकिता हत्याकांड: आखिर VIP का चेहरा दिखाने से क्यों कतरा रही है सरकार


जयसिंह रावत
एक ओर उत्तराखण्ड सरकार दावे कर रही है कि बहुचर्चित अंकिता हत्याकाण्ड में कोई ‘वीआइपी‘ नहीं है और दूसरी ओर राज्य सरकार की अपनी ही पुलिस अंकिता के हत्यारोपियों से वीआइपी का नाम उगलवाने के लिये उनका नार्को टेस्ट करा रही है। जाहिर है कि जांच ऐजेंसी को इस कांड में एक ‘‘वीआइपी’’ होने का शक है या उसे कोई सुराग मिला है। सरकार और पुलिस के विरोधाभासी बयानों से मामला बंहद पेचीदा ही नहीं बल्कि और अधिक संदिग्ध हो गया है।


राज्य विधानसभा के गत शीतकालीन सत्र के पहले ही दिन 29 नवम्बर को कांग्रेसी सदस्यों द्वारा अंकिता हत्याकांड का मुद्दा उठाये जाने पर संसदीय कार्य मंत्री प्रेमचन्द अग्रवाल का जवाब था कि, ‘‘अंकिता हत्याकाएड में कोई वीआइपी नहीं है। रिजॉर्ट में रेजिडेंशियल शूट को ही वीआइपी कहा जाता है। अब तक कोई भी वीआइपी प्रकाश में नहीं आया है।’’ जबकि प्रदेश के एडीजी कानून व्यवस्था वी. मुरुगेशन ने वीआइपी का नाम जानने के लिये इस कांड के तीनों आरोपियों का नार्को टेस्ट कराने की बात कही है। इनका कहना था कि यद्यपि आरोपियों ने रिजॉर्ट में वीआइपी कमरे में ठहरने वालों को ही वीआइपी बताया है फिर भी नार्को टेस्ट के बाद वीआइपी राज खुलने की उम्मीद है।

अब सवाल उठता है कि जब सरकार की जांच ऐजेंसी स्वयं वीआइपी का नाम पता करने का प्रयास कर रही है तो उससे पहले ही सरकार को कैसे पता चला कि इसमें कोई वीआइपी नहीं है?सरकार स्वयं कह रही है कि विपक्ष द्वारा अनर्गल प्रचार करने से जांच प्रभावित हो रही है तथा जांच कर्ताओं के मनोबल पर बुरा असर पड़ रहा  है। लेकिन् जब सरकार जांच से पहले ही जांच के नतीजे बता देगी तो उसका असर जांच ऐजेंसी पर क्यों नहीं पड़ेगा? सरकार के इस संदिग्ध रवैये के कारण विपक्ष को यह कहने का मौका मिलना स्वाभाविक ही  है कि  सरकार के इस स्टैंड का सीधा मतलब जांच एजेंसी को ‘‘वीआइपी’’ की तरफ जाने से रोकना ही है। जब सरकार को पता है कि इस मामले में कोई वीआइपी नहीं है तो फिर वह नार्को टेस्ट क्यों करा रही है? जाँच से पहले जाँच का नतीजा घोषित करना जाँच प्रभावित करना नहीं तो और क्या है?


दरअसल शुरू से ही इस मामले में सरकार की नीयत पर सवाल उठते रहे हैं और सरकार अपने पर लग रहे आरोपों को बहुत ही हल्के ढंग से ठुकराती  रही है। जिस कारण मामला संदिग्ध होता गया। बात यहां तक पहुंची कि अंकिता के माता पिता को भी सरकार की जांच पर भरोसा नहीं रहा। सरकार पर ऊंगली उठने का पहला कारण आरोपी के पिता का भाजपा का वरिष्ठ नेता और सत्ता के गलियारे में मजबूत दखल होना रहा। हत्याकांड का राज खुलने पर क्षेत्रीय विधायक का पीड़ितों के बजाय आरोपियों के पक्ष में झुकाव नजर आना दूसरा कारण रहा। हत्यारोपियों के रिजार्ट पर आनन फानन में बुल्डोजर चलाना और फिर बुल्डोजर चलाने के आदेश के मामले में पहले डीएम का अपना पल्ला झाड़ना और फिर बाद में आदेश देने की बात कबूलना भी संदेह को बढ़ा गया। उसके तत्काल बाद आगजनी भी लीपापोती का  हिस्सा माना गया।
दरअसल इस काण्ड में वीआइपी की एण्ट्री अंकिता के मित्र के खुलासे के बाद हुयी थी। जिसमें मित्र का कहना था कि अंकिता ने उससे कहा था कि रिजॉर्ट मालिक उस पर एक वीआइपी के साथ रात गुजारने के लिये दबाव डाल रहा है। इस दावे की भी गंभरता से जांच नहीं की गयी। शुरू में पुलिस ने दावा किया कि  अंकिता ने जब पुलकित आर्य का मोबाइल नदी में फेंका तो गुस्से में पुलकित ने अंकिता को भी नदी में फेंक दिया। अगर यह मामला तूल  नहीं पकड़ता तो केस गैर इरादातन हत्या में बदल दिया जाता।

असली सवाल यह है कि  जब मृतका के माता पिता ही जाँच से संतुष्ट नहीं और मामला इतना तूल पकड़ गया तो सरकार CBI जाँच से क्यों  कतरा रही है? सरकार इस मामले में दूध का दूध और पानी का पानी कराने में रुचि क्यों नहीं दिखा रही?

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