श्रीमद्भगवतगीता में छुपा है सभी समस्याओं का समाधान
ऋषिकेश, 25 फरबरी। श्रीमद्भगवदगीता श्री कृष्ण और अर्जुन के बीच एक ऐसा संवाद है, जिसमें सभी मानव समस्याओं की कूंजी छुपी है। इस संवाद की पृष्ठभूमि महाभारत का युद्ध है। गीता में दिए उपदेश आज भी प्रासंगिक हैं और मनुष्य मात्र को जीवन जीने की सही राह दिखाते हैं।
देहरादून मार्ग पर प्रशांतअद्वैत संस्था द्वारा आयोजित वेदांत महोत्सव में आचार्य प्रशान्त ने साधको द्वारा पूछे गए सवालों के काफ़ी गहरे और स्पष्ट जबाब दिए।
उन्होने कहा कि गीता ऐसा ग्रंथ है जो मानव को जीने का ढंग सिखाता है। गीता मनुष्य को निष्काम कर्म और प्रेम का पाठ पढ़ाती है। गीता में श्रीकृष्ण ने बताया है कि जीवन में समस्याएं किन वजहों से आती हैं और उनका हल क्या है।
आचार्य प्रशान्त के अनुसार अहंकार और अज्ञान ही जीवन की मूलभूत समस्याएं हैं। और विद्या, सही ज्ञान, ही हमारी सभी समस्याओं का अंतिम समाधान है।
श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं कि स्वार्थ से प्रेरित हुआ कर्म ही दुख को जन्मता है। और कर्म के केंद्र में निष्कामता होनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि गीता में कहा गया है कि इंद्रियों से परे बुद्धि, बुद्धि से परे मन और मन से श्रेष्ठ आत्मा है। शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो चरित्र का निर्माण करे।
आचार्य प्रशांत ने आगे समझाया कि श्रीकृष्ण कहते हैं कि यह शरीर ही वह क्षेत्र है जहां युद्ध होता है। शरीर मे दो सेनाएं हैं: एक पांडव अर्थात पुण्यमयी और एक कौरव अर्थात पापी। मनुष्य हमेशा इन दोनों के बीच में ही उलझा रहता है।
आचार्य प्रशान्त ने कहा कि आज के दौर में पीड़ा तो सभी के मन मे है। उस पीड़ा से मुक्ति भी सभी को चाहिए, लेकिन मन मे जो अज्ञान और धारणाएं बैठी है उन्हें छोड़ने में पीड़ा होती है। भीतर के झूठ व अहंकार को हम इतना पोषण दे देते हैं कि वही हमे सत्य लगता है और हम उसे छोड़ने को तैयार नही होते।
आचार्य प्रशान्त ने कहा कि हम झूठी कल्पनाओं, अंधविश्वास के आदि हो चुके हैं। हमारे धर्म ग्रँथ ही हमे सही जीवन जीने की प्रेरणा देते है। और हम उनकी तरफ जाने को तैयार नही होते, जिसकी वजह से दुख झेलते हैं। अगर हमारे पास कोई सही लक्ष्य नही है तो मन गलत धारणाओं को पकड़ ही लेगा आउट अंततः दुख का निर्माण करेगा।