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पुस्तक समीक्षा : एटकिंसन रचित इतिहास की भ्रांतियों को डॉ. यशवन्त सिंह कठोच ने किया दूर

दिनेश शास्त्री —

हिमालयी सरोकारों को समर्पित प्रतिष्ठान विनसर प्रकाशन देहरादून ने उत्तराखंड के इतिहास के संदर्भ में डॉ. यशवन्त सिंह कठोच की हालिया कृति से कई भ्रांतियों का निवारण किया है। निसंदेह इतिहास को इतिहास के नजरिए से समझने और भ्रांतियों के निवारण के उद्देश्य से विद्वान मनीषी डॉ. यशवन्त सिंह कठोच ने बेहद श्रमसाध्य कार्य कर भावी पीढ़ियों के लिए एक बहुत बड़ा काम कर दिया है। खासकर उत्तराखंड के इतिहास के संदर्भ में यह बहुत महत्वपूर्ण है। कारण यह है कि लंबे कालखंड तक विदेशी हुकूमत के अधीन रहने के कारण हमारे समाज को वही सब पढ़ाया गया, जो उनकी जरूरत थी। इस कारण ब्रिटिश गजेटियर लेखक
ई.टी. एटकिन्सन द्वारा प्रस्तुत सामग्री को ही प्रमाणिक और तथ्यपूर्ण मान लिया गया और वही पाठ्यक्रम का हिस्सा भी बन गया। जाहिर है ऐसा सिर्फ इतिहास के बारे में नहीं हुआ, बल्कि भारतीय संस्कृति के हर संदर्भ में हुआ है। तभी शहीद भगत सिंह को स्वतंत्रता सेनानी निरूपित नहीं किया गया। यहीं नहीं भारतीय अस्मिता को रौंदने वाले महान कहलाए गए और राणा प्रताप तथा शिवाजी को वह स्थान नहीं दिया गया, जो उन्होंने अपने पौरुष और कर्म से स्थापित किया था। विनसर प्रकाशन ने उत्तराखंड के संदर्भ में
रचित ई.टी. एटकिन्सन द्वारा रचित मध्य हिमालय का इतिहास विषय पर डॉ. यशवन्त सिंह कठोच
का एक समीक्षात्मक अध्ययन प्रकाशित कर बड़ी लकीर खींच दी है। उम्मीद की जानी चाहिए कि डॉ. यशवन्त सिंह कठोच के इस उपक्रम से उत्तराखंड के संदर्भ में पाठकों को तथ्यपूर्ण तथा प्रमाणिक जानकारी उपलब्ध होगी और जो भ्रांतियां औपनिवेशिक काल में गढ़ ली गई, उनका स्वत निवारण भी होगा।
डॉ. यशवन्त सिंह कठोच की उत्तराखण्ड के इतिहास पुस्तक पर नई पुस्तक “ई.टी. एटकिन्सन रचित मध्य हिमालय का इतिहास : एक समीक्षात्मक अध्ययन” हाल में प्रकाशित हुई है। कहना न होगा कि इस पुस्तक की इतिहास प्रेमियों को लम्बे समय से प्रतीक्षा थी। डॉ. यशवन्त सिंह कठोच की दृढ़ मान्यता है कि ई.टी. एटकिन्सन रचित • मध्य हिमालय का इतिहास
एटकिन्सन के इतिहास का महाग्रन्थ 1884 ई. में छपा था। परन्तु उसके इतिहास में लेखक ने ‘विषयगत’ ही नहीं, ‘दृष्टिगत’ अनेक त्रुटियाँ की हैं। उसके इतिहास में हिमालयी राजवंशों का त्रुटिपूर्ण प्रस्तुतिकरण हुआ था। यही नहीं तिथिक्रम का भी पूर्ण अभाव था और मौखिक गाथाओं को ही अनेक स्थलों पर इतिहास का आधार माना गया था। फिर भी, स्थानीय लेखक आँख मूँद कर अब तक उसी का अन्धानुसरण करते रहे । आज आवश्यकता थी, एटकिन्सन के हिमालय इतिहास को संशोधित रूप में प्रस्तुत करने की, जिससे हमारे विश्वविद्यालय एवं लोक सेवा आयोग के पाठ्यक्रम निर्धारकों तथा शोधकर्त्ता छात्रों को उत्तराखण्ड इतिहास की प्रामाणिक सामग्री मिल सके।
इसमें दो राय नहीं हो सकती कि डॉ. कठोच ने दीर्घकालीन परिश्रम के पश्चात्, अपने परिपुष्ट पुरातत्त्वीय ज्ञान के आधार पर, एटकिन्सन के इतिहास की त्रुटियों को तार्किक तथा वैज्ञानिक दृष्टि से संशोधित किया है। इस पुस्तक के लेखन द्वारा ख्यातिप्राप्त इतिहासकार डॉ. कठोच ने नयी पीढ़ी को सही दिशा दी है। बहुत सी नयी सामग्री से युक्त यह ग्रन्थ लेखक के पूर्व प्रकाशित ग्रन्थ “उत्तराखण्ड का नवीन इतिहास” का पूरक माना जाना चाहिए। अतएव पुस्तकालयों के लिए यह ग्रन्थ संग्रहणीय है और साथ ही डा. कठोच ने प्रतियोगात्मक परीक्षाओं की तैयारी कर रहे छात्रों के भी प्रमाणिक जानकारी सुलभ कर दी है। उत्तराखंड के इतिहास पर अब तक अनेक विद्वान शोध कर चुके हैं लेकिन आमतौर पर एटकिंसन के इतिहास को ही आधार माना जाता रहा है किंतु उन भ्रांतियों का निराकरण करने की ओर किसी ने ध्यान नहीं दिया। डॉ. यशवन्त सिंह कठोच ने बेहद कठिन परिश्रम कर अपनी सूक्ष्म दृष्टि तथा विद्वता के आधार पर तमाम भ्रांतियों का निराकरण कर दिया है। उनके इस महती कार्य को सहयोग दिया है विनसर प्रकाशन ने। विनसर प्रकाशन को इस बात के लिए साधुवाद दिया ही जाना चाहिए कि आमतौर पर इतिहास जैसे विषय पर पुस्तक प्रकाशन को कम महत्व दिया जाता है किंतु इस मामले में विनसर प्रकाशन ने अलग राह चुनी है।
डॉ. यशवन्त सिंह कठोच की 368 पृष्ठों की इस सद्य प्रकाशित पुस्तक का मूल्य मात्र 315 रुपए है। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि यह पुस्तक न सिर्फ ग्रंथालयों बल्कि सभी के लिए उपयोगी तथा ज्ञानवर्धक भी है।

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