राष्ट्रीय

अगले पांच सालों के लिए सोलहवें वित्त आयोग के लिए संदर्भ-शर्तों को मंजूरी

The Union Cabinet has approved the Terms of Reference for the Sixteenth Finance Commission. The Terms of Reference for the Sixteenth Finance Commission will be notified in due course of time. The 16th Finance Commission’s recommendations, upon the acceptance by the government, would cover the period of five (5) years commencing April 1, 2026.

 

-uttarakhandhimalaya.in-

नयी दिल्ली, 29  नवंबर । केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सोलहवें वित्त आयोग के लिए संदर्भ-शर्तों को मंजूरी दे दी है। सोलहवें वित्त आयोग के लिए संदर्भ-शर्तों को उचित समय पर अधिसूचित किया जाएगा। सरकार द्वारा 16वें वित्त आयोग की सिफारिशें स्वीकार किए जाने के क्रम में 1  अप्रैल, 2026 से शुरू होने वाली पांच (5) वर्षों की अवधि के लिए होंगी।

संविधान के अनुच्छेद 280(1) में कहा गया है कि संघ और राज्यों के बीच करों की शुद्ध आय के वितरण, अनुदान-सहायता और राज्यों के राजस्व और नियत अवधि के दौरान पंचायतों के संसाधनों की पूरकता के लिए आवश्यक उपाय करने तथा आय से संबंधित हिस्सेदारी को राज्यों के बीच आवंटन पर सिफारिश करने के मद्देनज़र एक वित्त आयोग की स्थापना की जाएगी।

पंद्रहवें वित्त आयोग का गठन 27 नवंबर, 2017 को किया गया था। इसने अपनी अंतरिम और अंतिम रिपोर्ट के माध्यम से एक अप्रैल, 2020 से शुरू होने वाली छह वर्षों की अवधि से संबंधित सिफारिशें कीं। पंद्रहवें वित्त आयोग की सिफारिशें वित्तीय वर्ष 2025-26 तक मान्य हैं।

सोलहवें वित्त आयोग के लिए संदर्भ-शर्तें:

वित्त आयोग निम्नलिखित मामलों पर सिफारिशें करेगा, अर्थात:

  1. संघ और राज्यों के बीच करों की शुद्ध आय का वितरण, जो संविधान के अध्याय-I, भाग-XII के तहत उनके बीच विभाजित किया जाना है, या किया जा सकता है और ऐसी आय के संबंधित हिस्सेदारी का राज्यों के बीच आवंटन;
  2. वे सिद्धांत जो संविधान के अनुच्छेद 275 के तहत भारत की संचित निधि से राज्यों के राजस्व के सहायता अनुदान और उनके राजस्व के सहायता अनुदान के माध्यम से राज्यों को भुगतान की जाने वाली राशि को नियंत्रित करते हैं। उस अनुच्छेद के खंड (1) के प्रावधानों में निर्दिष्ट उद्देश्यों के अलावा अन्य उद्देश्यों के लिए; और
  3. राज्य के वित्त आयोग द्वारा की गई सिफारिशों के आधार पर राज्य में पंचायतों और नगर पालिकाओं के संसाधनों के पूरक उपाय के लिए राज्य की समेकित निधि को बढ़ाने के लिए आवश्यक उपाय।

आयोग आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 (2005 का 53) के तहत गठित निधियों के संदर्भ में, आपदा प्रबंधन पहल के वित्त पोषण पर वर्तमान व्यवस्था की समीक्षा कर सकता है और उस पर उचित सिफारिशें कर सकता है।

आयोग 1 अप्रैल, 2026 से शुरू होने वाली पांच साल की अवधि के लिए अपनी रिपोर्ट 31 अक्टूबर, 2025 तक उपलब्ध कराएगा।

पृष्ठभूमि:

पंद्रहवें वित्त आयोग का गठन 27.11.2017 को 2020-21 से 2024-25 की पांच साल की अवधि के लिए सिफारिशें करने के लिए किया गया था। 29.11.2019 को, 15वें वित्त आयोग की संदर्भ-शर्तों में संशोधन किया गया था। इस संबंध में आयोग को दो रिपोर्ट प्रस्तुत करनी थी, यानी वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिए पहली रिपोर्ट और 2021-22 से 2025-26 की विस्तारित अवधि के लिए एक अंतिम रिपोर्ट। परिणाम स्वरूप, 15वें वित्त आयोग ने 2020-21 से 2025-26 तक छह साल की अवधि के लिए अपनी सिफारिशें दीं।

वित्त आयोग को अपनी सिफ़ारिशें देने में आम तौर पर लगभग दो साल लगते हैं। संविधान के अनुच्छेद 280 के खंड (1) के अनुसार, वित्त आयोग का गठन हर पांचवें वर्ष या उससे पहले किया जाना है। चूंकि 15वें वित्त आयोग की सिफारिशें 31 मार्च 2026 तक छह साल की अवधि के बारे में हैं, इसलिए 16वें वित्त आयोग का गठन अब प्रस्तावित है। इससे वित्त आयोग अपनी सिफारिशों की अवधि से तुरंत पहले की अवधि के लिए संघ और राज्यों के वित्त पर विचार और मूल्यांकन करने में सक्षम हो जाएगा। इस संदर्भ में उल्लेखनीय है कि ऐसे उदाहरण हैं जहां ग्यारहवें वित्त आयोग का गठन दसवें वित्त आयोग के छह साल बाद किया गया था। इसी प्रकार, चौदहवें वित्त आयोग का गठन तेरहवें वित्त आयोग के पांच साल दो महीने बाद किया गया था।

16वें वित्त आयोग के एडवांस सेल का गठन 21.11.2022 को वित्त मंत्रालय में किया गया था, ताकि आयोग के औपचारिक गठन तक प्रारंभिक कार्य की निगरानी की जा सके।

इसके बाद, संदर्भ-शर्तों के निर्माण में सहायता करने के लिए वित्त सचिव और सचिव (व्यय) की अध्यक्षता में एक कार्य समूह का गठन किया गया, जिसमें सचिव (आर्थिक मामले), सचिव (राजस्व), सचिव (वित्तीय सेवाएं), मुख्य आर्थिक सलाहकार, नीति आयोग के सलाहकार और अतिरिक्त सचिव (बजट) शामिल थे। परामर्श प्रक्रिया के अंग के रूप में, संदर्भ-शर्तों पर राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों (विधानमंडल के साथ) से विचार और सुझाव मांगे गए थे, और समूह द्वारा विधिवत विचार-विमर्श किया गया था।

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