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रामचरित मानस की चौपाइ पर विवाद नया नहीं है


जयसिंह रावत
सूचना प्रोद्योगिकी क्रांति के इस युग में लोग कुछ ज्यादा ही संवेदनशील हो गये हैं। कोई नयी किताब आती है तो उस पर बवाल। नयी फिल्म आती है तो उस पर बवाल हो जाता है। अगर बबाल करने को नया मुद्दा नहीं मिलता तो पुराने मुर्दे उखाड़े जाने लगते हैं। हिन्दी फिल्म पठान का बबाल थमा भी नहीं था कि एक बाबा ने अंध विश्वास को सनातन धर्म से जोड़ कर क्रांति का बिगुल बजा दिया। अंध विश्वास को सनातन धर्म की आत्मा बताने वाले एक बाबा अपने महाअभियान में निकले ही थे कि सपा नेता स्वामी प्रसाद मोर्य ने तुलसीदास कृत महाकाव्य ‘‘राम चरित मानस’’ पर ही हल्ला बोल दिया। स्वामी प्रसाद मौर्य को रामचरित मानस की उस चौपाई पर एतराज है जिसमें ढोल, शूद्र, पशु और नारी के बारे ‘‘ताड़न’’ शब्द का प्रयोग किया गया है। वास्तव में इस चौपाई का लोग करते भी रहे हैं।


संशोधन कानून में होता है महाकाव्य में नहीं

स्वामी प्रसाद मौर्य एक अनुभवी राजनेता है। राजनीति के अलावा वकालत भी करते रहे हैं। वह नब्बे के दशक से सक्रिय राजनीति में हैं और उत्तर प्रदेश में कैबिनेट मंत्री तथा प्रतिपक्ष के नेता भी रह चुके हैं। लेकिन उनकी नजर अब गोस्वामी तुलसीदास के महाकाव्य ’’राम चरित मानस’’ पर पड़ी। स्वामी प्रसाद ने राम चरित मानस को बकवास बताते हुए उसकी कुछ चौपाइयां हटवाने तथा इस महाकाव्य को बैन करने की मांग कर डाली। स्वामी प्रसाद का यह बीड़ा उठाना ही था कि उनके समर्थन में भी कुछ लाइक माइंडेड लोग उतर गये। जिन्होंने महाकाव्य की प्रतियां तक फंूक डाली। हालांकि समाजवादी पार्टी अपने इस धुरन्धर नेता के बयान से स्वयं को अलग बता रही है। रामचरित मानस में संशोधन की बात भी हास्यास्पद ही है। क्योंकि यह कोई कानून की किताब नहीं जिसे संशोधित किया जाय या संविधान की धारा 370 की तरह उसकी भी कोई धारा हटा कर नयी धारा जोड़ दी जाय। इसमें संशोधन गोस्वामी तुलसीदास ही कर सकते हैं, जो मौजूद नहीं हैं। यह एक लोक साहित्य है जो सीधे लोगों की धार्मिक भावनाओं से भी जुड़ा हुआ है। लोकसाहित्य और धार्मिक प्रसंग लोगों के दिमाग में होते हैं जिन्हें दिमाग से ही हटाया जा सकता है।

रामकथा में आदर्श समाज और शासन की परिकल्पना भी है

’’रामचरित मानस’’ एक काव्य ही नहीं बल्कि सनातन धर्मावलम्बियों द्वारा भगवान के रूप में आराध्य राम की कथा है। इस महाकाव्य में मानवता की कल्पना, जिसमें उदारता, क्षमा, त्याग, निवैरता, धैर्य और सहनशीलता आदि सामाजिक शिवत्व के गुण अपनी पराकाष्ठा के साथ मिलते हैं। इसमें राम का सम्पूर्ण जीवन-चरित वर्णित हुआ है। इस महान कृति में ‘‘चरित’’ और ‘‘काव्य’’ दोनों के गुण समान रूप से मिलते हैं। इसलिये राम भक्तों की पार्टी कही जाने वाली भाजपा के खिलाफ राजनीतिक प्रतिद्वन्दिता और वैमनस्यता की भड़ास निकालने के लिये रामचरित मानस का अपमान धर्मावलम्बियों की भावनाओं को आहत करना ही है। यही नहीं रामचरित मानस की आड़ में स्वामी प्रसाद मौर्य जिस भाजपा को निशाना बना रहे हैं उसे इस अभियान से राजनीतिक लाभ ही होगा।

एक चौपाइ को किताब से नहीं दिमाग से हटाने की जरूरत अवश्य है

संसार के श्रेष्ठ महाकाव्यों में से एक ’’ राम चरित मानस’’ की विवादित चौपाई ’’प्रभु भल कीन्ह मोहि सिख दीन्हीं। मरजादा पुनि तुम्हरी कीन्हीं॥ ढोल गंवार सूद्र पसु नारी। सकल ताड़ना के अधिकारी॥ का विवाद नया नहीं है। एक बार मोरारजी देसाई ने प्रधानमंत्री के तौर पर संसद में ये चौपाई किसी संदर्भ में सुनाई थी और उस पर भारी विवाद भी हुआ था। लेकिन मोरारजी ने माफी नहीं मांगी थी। कुछ वामपंथी संगठन भी इस चौपाई पर अपना विरोध प्रकट करते रहे हैं। कुछ समय से राम चरित मानस पर दुबारा विवाद सिर उठा रहा है। पहले बिहार के मंत्री चंद्रशेखर ने इस इस पर विवादित बयान दिया था। उसके बाद कर्नाटक में एक रिटायर्ड प्रोफेसर ने रामचरितमानस पर विवादित बयान दिया। और अब समाजवादी पार्टी के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य विवादित बयान के लिये चर्चा में हैं।

ताड़न का मतलब शिक्षा बताया जाता है !

हालांकि इस चौपाई की व्याख्या इस तरह भी की जाती है: – प्रभु ने अच्छा किया जो मुझे शिक्षा दी (दंड दिया), किंतु मर्यादा (जीवों का स्वभाव) भी आपकी ही बनाई हुई है। ढोल, गंवार, शूद्र, पशु और स्त्री ये सब शिक्षा के अधिकारी हैं। इस चौपाइ के पीछे तुलसीदास जी का अभ्रिपाय जो भी हो, मगर आज के संदर्भ में यह अप्रासंगिक भी है और अनावश्यक विवादकारी भी है। लोकतंत्र में समाज के किसी भी वर्ग को इस तरह लक्षित हेय दृष्टि से नहीं देखा जा सकता। यहां तक कि पशुओं को भी नहीं। इस चौपाई के समर्थक रामचरति मानस की उस चौपाई का उदाहरण देते हैं जिसमें कहा गया है कि ’’धीरज, धर्म, मित्र अरु नारी। आपद काल परखिए चारी।।’’ मतलब यह कि तुलसीदास के मन में स्त्रियों के लिये बहुत सम्मान था, प्राणिजगत के लिये प्रेम था।

लोकतंत्र में रामराज की कल्पना व्यवहारिक नहीं

कोई भी साहित्य तत्कालीन समाज का दर्पण होता है। समाज के रीति-रिवाज, आचार-व्यवहार तत्कालीन साहित्य के दर्पण में प्रतिबिम्बित होते हैैं। रामायण कालीन या तुलसीदास जी ने जब सम्बत् 1631 में इस महाकाव्य की रचना शुरू की होगी तो उस उस समय के समाज का प्रतिबिम्ब इसमें आना स्वाभाविक ही है। लेकिन परिवर्तन प्रकृति का नियम है। समय चक्र के साथ ही समाज और उसी रीति-नीति और आचार व्यवहार बदलते रहते हैं। उस काल में राजा को ईश्वर का प्रतिनिधि माना जाता था इसलिये राजा की भक्ति ही ईश्वर की भक्ति मानी जाती थी। राजाज्ञा ईश्वर की आज्ञा मानी जाती थी। लेकिन सदियों के अंतराल में आज समय के साथ ही समाज बहुत बदल गया। लोकतंत्र के युग में राजा भी प्रजा हो गये और प्रजा, राजा हो गयी। आज रामराज्य का संकल्प तो लिया जाता है मगर लोकतंत्र के इस युग में वैसा रामराज चल भी नहीं सकता। तब परिवारवाद और वंशवाद चलता थाए सामन्तवाद भी था। अब तो वंशवाद और परिवारवाद की आलोचना करने वालों में रामभक्त पार्टी भाजपा सबसे आगे है। आज पिता के कहने पर कोई 14 वर्ष बनवास नहीं कर सकता। इसी तरह ढोल-शूद्र और पशु नारी …वाली चौपाई की कोई प्रासंगिकता नहीं रह गयी है। लेकिन देश तो संविधान से चलता है और संविधान तो समानता, स्वतंत्रता, बंधुत्व मानवीय गरिमा की गारंटी देता है। इसलिये स्वामी प्रसाद जी का एक निर्जीव पुस्तक पर लालपीला होना राजनीति का एक हिस्सा ही हो सकता है।

रामचरितमानस श्रेष्ठतम् साहित्य माना गया है

‘‘राम चरित मानस’’ केवल एक भक्ति कथा नहीं बल्कि अवधी का श्रेष्ठतम भक्ति काव्य और संसार श्रेष्ठ महाकाव्यों में से एक है। इसके मुख्य छन्द चौपाई और दोहा हैं, बीच-बीच में कुछ अन्य प्रकार के भी छन्दों का प्रयोग हुआ है। भारतीय साहित्य-शास्त्र में महाकाव्य के जितने लक्षण दिये गये हैं, वे उसमें पूर्ण रूप से पाये जाते हैं। रामचरितमानस को तुलसीदास ने सात काण्डों में विभक्त किया है। इन सात काण्डों के नाम हैं – बालकाण्ड, अयोध्याकाण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किन्धाकाण्ड, सुन्दरकाण्ड, लंकाकाण्ड (युद्धकाण्ड) और उत्तरकाण्ड। छन्दों की संख्या के अनुसार बालकाण्ड और किष्किन्धाकाण्ड क्रमशः सबसे बड़े और छोटे काण्ड हैं। इस महाकाव्य में 27 श्लोक, 4608 चौपाई, 1074 दोहे, 207 सोरठा और 86 छन्द हैं।

 

 

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