जाड़ों की बारिश न होने से खेतों में खड़ी फसलों के साथ ही कास्तकारों के चेहरे भी मुरझाने लगे
–गौचर से दिग्पाल गुसाईं –
लंबे समय से क्षेत्र में जाड़ों की बारिश न होने से खेतों में खड़ी फसलें मुरझाने से कास्तकार भारी चिंता में पड़ गए हैं। उन्हें इस बात की चिंता सताने लगी है कि समय रहते बारिश नहीं हुई तो उन्हे भारी नुक़सान उठाना पड़ सकता है।
अमूमन जाड़ों की बारिश का सिलसिला नवंबर माह के आखिरी दिनों में शुरू हो जाता था लेकिन इस बार यह पहला मौका है जब जनवरी का महीना भी समाप्ति की ओर अग्रसर है और दूर दूर तक बारिश के आसार नजर नहीं आ रहे हैं। अभी तक जाड़ों की बारिश न होने से जाड़ों के सीजन जैसे ठंड का अहसास भी नहीं हो पाया है। खेतों में खड़ी फसलें मुरझाने के कगार पर पर पहुंच गई हैं।जिन खेतों में कास्तकार बारिश के भरोसे फसलें बोते थे उन खेतों में या तो फसलों की बुवाई ही नहीं हुई है या जिन खेतों में बीज बोया भी गया था उन खेतों में बीज अंकुरित ही नहीं हो पाया है। मौसम के शुष्क रहने से लोगों को तमाम प्रकार की बीमारियों ने भी जकड़ लिया है। बर्फबारी न होने से पर्यावरण पर भी विपरीत प्रभाव देखने को मिल रहा है। गेहूं की फसल में कास्तकार बोने के 21 दिन बाद एक ही बार सिंचाई करते थे लेकिन इस बार कास्तकार दूसरी सिंचाई करने में जुट गए हैं। हालांकि मौसम विभाग ने अगले एक दो दिन में बारिश का अनुमान जताया है। बावजूद इसके मौसम ने साथ नहीं दिया तो कास्तकारों को भारी नुक़सान उठाना पड़ सकता है।