दहिमन संजीवनी असाध्य रोगों में है रामबाण दवा
कृष्णा सिंह बाबा
छत्तीसगढ़ तथा मध्यप्रदेश के कुछ जंगलों में पाये जाने वाला दहिमन का पेड़ औषधियों से परिपूर्ण है। इसे देव पौधा भी कहा जाता है। किन्तु उचित देखभाल के अभाव में यह विलुप्त होता जा रहा है। छत्तीसगढ़ के सरगूजा संभाग के कोरिया जिले में इस पौधे को संरक्षित रखने का काम यहां के रेंजर अखिलेश मिश्रा के द्वारा लगातार किया जा रहा हैं। जिससे क्षेत्र में अब दहिमन के पेड़ बढ़ रहे हैं वहीं इसके पौधे भी सुरक्षित तरीके से तैयार किये जा रहे हैं। सदियों से जब विश्व में अंग्रेजी दवाओं का आविष्कार नहीं हुआ था तब से लेकर अंग्रेजी दवाओं के जन्म तक आयुर्वेदिक औषधियों वनस्पति जड़ी बूटी आदि के जरिए असाध्य रोगों का उपचार आयुर्वेदाचार्यों/ऋषिमुनियों द्वारा किये जाने के प्रमाण वेद और पुराणों में मौजूद है। प्राचीन भारत में राजाओं के मध्य सत्ता संघर्ष को लेकर होने वाले महायुद्धों में आयुर्वेदिक ओैषधियों का चमत्कार सर्वविदित है।
गोस्वामी तुलसी दास कृत रामायण में भी राम रावण के बीच होने वाले युद्ध में लक्ष्मण के मूर्छित होने पर महाबली हनुमान द्वारा संजीवनी बूटी की खोज में पूरा पर्वत उठाकर लाने का प्रसंग आज भी आयुर्वेदिक औषधियों के महत्व को असाध्य बीमारियों के उपचार में प्रतिपादित करता है। जहां अंग्रेजी दवाओं का सफर कम होता है वहां आयुर्वेदिक उपचार ही मरीज को लाभांवित करता है इस संबंध में सरगुजा संभाग के घने वनों से घिरे कोरिया के रेंजर अखिलेश मिश्रा द्वारा जनहित में आयुर्वेदिक दहिमन संजीवनी का विलुप्त होने पर चिंतन व्यक्त करते हुए उसके महत्व को आधुनिक संदर्भ में विस्तार से आम लोगों को जानकारी उपलब्ध कराने के पीछे जड़ी बूटी के महत्व को आम लोगों को जनवाना है इसी कड़ी में मिश्रा द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार भारत को आयुर्वेद का गुरु माना जाता है, क्योंकि यहां सदियों से आयुर्वेद को लेकर बड़े-बड़े शोध होते रहे हैं. यहां ऐसी कई दुर्लभ प्रजातियों पेड़ पौधों पाए जाते हैं, जो कई असाध्य रोगों के लिए रामबाण उपयोगी साबित हुए है. इन्हीं में से एक है दहिमन का पेड़, जो काफी दुर्लभ होता है और आसानी से इसकी पहचान नहीं की जा सकती. इस पेड़ के फल, पत्ती, जड़ तना सभी कुछ असाध्य रोगों और शारीरिक समस्या के लिए काम आता है. कई तरह की बीमारियों में ये संजीवनी का भी काम करता है.
रामबाण दहिमन संजीवनी मरीजों की चिकित्सा के लिए सर्वोत्तम औषधि
दहिमन पेड़ का बॉटेनिकल नाम कॉर्डिया मैकलोडी हुक है, जिसे दहिमन या देहिपलस के नाम से भी जाना जाता है, दहिमन एक औषधीय गुणों से भरपूर पेड़ है. जो किसी भी प्रकार की संजीवनी बूटी से कम नहीं है. कहा जाता है कि यह कैंसर जैसी घातक बीमारी को भी ठीक कर सकती है. दहिमन के बारे में हमारे ग्रंथों में भी वर्णन किया गया है और लोगों की कुछ धार्मिक आस्था भी इस पेड़ से जुड़ी हुई है.
शहडोल जिले के जंगलों में औषधिय महत्व के कई वनस्पती पाए जाते हैं, जिनके बारे में क्षेत्र के लोगों को जानकारी नहीं है. ऐसा ही है दहिमन का पेड़ जो शहडोल जंगलों में पाया जाता है, लेकिन जानकारी के आभाव में विलुप्ति की कगार पर हैं, यही कारण है कि अब यह ढूंढने से ही मिलता है, लेकिन इसका समय रहते संरक्षण नहीं किया गया तो औषधीय महत्व का ये पेड़ भी कब विलुप्त हो जाएगा किसी को पता भी नहीं चलेगा.
विलुप्त होती दहिमन संजीवनी
दहिमन का पौधा छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में काफी तादाद में पाया जाता है. इसके बहुत सारे औषधीय गुण हैं. इसके अलग-अलग तरीके से उपयोग से अलग अलग बिमारियों से निजात मिल सकती है. दहिमन, पित्त की बीमारियों को बैलेंस करता हैं, साथ ही हाइपरटेंसिव सीवीए की प्रॉब्लम, सेरिब्रोवस्कुलर अटैक, लकवा वगैरह का पेशेंट भी दहिमन का प्रयोग कर आराम पा सकता है.
ब्रेन में क्लॉट में दहिमन का पत्तियों का लेप लगाना और माला पहनने से क्लॉट डिसॉल्व होने लगता है. कई मामलों में इसका उपयोग जहर का प्रबाव कम करने के लिए होता है. कम नींद और ज्यादा नींद के मरीजों की मानसिक स्थिति को संतुलित करता है. अगर कोई मानसिक रोगी शराब नहीं छोड़ पा रहा है तो उसके लिए भी यह बहुत उपयोगी है. सांप के काटने पर भी इसका उपयोग जहर के कम करने के लिए किया जाता. दहिमन के पौधे को लेकर कुछ जानकर बताते हैं कि अंग्रेजों के समय में यह पेड़ बहुत अधिक संख्या में पाए जाते थे. इसके पत्तों पर कुछ लिखा जाए तो यह उभरकर सामने आ जाता है. इसलिए इसके पत्तों का उपयोग क्रांतिकारी गुप्तचर संदेश भेजने के लिए किया करते थे लेकिन जब इस बात का पता अंग्रेजों को चला तो उन्होंने इसके पेड़ को काटने का आदेश दे दिया इसलिए दहिमन का वृक्ष केवल कुछ जगह पर ही बचे हैं।
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रेंजर बैकुंठपुर अखिलेश मिश्रा ने बताया की दहिमन का पौधा औषधि पौधा होता है यह प्रजाति विलुप्ति के कगार पे है पर हमने इसे फिर से लोगो के बीच लाने का प्रयास किया है और बैकुंठपुर रेंज अन्तर्गत आनंदपुर नर्सरी में इस प्रजाति को पुन: तैयार किया जा रहा है कई हजार पौधे हमने तैयार किया है और लोगों को उपलब्ध भी करवा रहे हैं जितना ज्यादा हो सके इसका लाभ लोगों तक पहुंचे।