नगर निगम की फाइलों में भूतों का डेरा
नगर निगम से भूत भगाओ अभियान-एक
–-त्रिलोचन भट्ट –
देहरादून नगर निगम उत्तराखंड राज्य का पहला और सबसे बड़ा नगर निगम है। 100 वार्डों वाले इस जिले में अनुमान है कि 15 लाख के करीब लोग रहते हैं। अनुमान इसलिए कि 2011 के बाद जनगणना नहीं हुई है और पहले नगर निगम में वार्डों की संख्या 60 थी, जो अब 100 हो चुकी है। यानी कि आसपास के गांवों के एक बड़े हिस्से को नगर निगम में शामिल कर दिया गया है।
नगर निगम का आकार बड़ा होने के साथ ही यहां भ्रष्टाचार की गुंजाइश भी बढ़ी है। वैसे तो इस निगम में लगातार घोटाले होेते रहते हैं। नेताओं, अधिकारियों और पत्रकारों की तिगड़ी ने नगर निगम पर ऐसी कुंडली मार रखी है कि आपकी एक सड़क की मरम्मत होना भी अब असंभव है। दरअसल नगर निगम की आय का एक बड़ा हिस्सा इसकी फाइलों में दफन भूत और भूतनियां उड़ा रहे हैं। जी हां, ठीक पढ़ रहे हैं आप। ये भूत और भूतनियां वे लोग हैं, जिन्होंने नगर निगम का मुख्यालय भी आज तक नहीं देखा, लेकिन वे बाकायदा हर महीने नगर निगम से वेतन उठाते हैं, यानी कि हर महीने उनके बैंक खाते में नगर निगम वेतन जमा करवा देता है। बिना काम के नौकरी करने वाले ये घोस्ट इम्प्लाई सौ से ज्यादा बताये जाते हैं। सूत्रों के अनुसार इन घोस्ट इम्प्लाई यानी भूत-भूतनियों पर हर महीने 75 लाख रुपये खर्च किया जा रहा है।
नेता, अफसर, पत्रकारों के चहेते भूत
अब सवाल उठता है कि ये घोस्ट इम्प्लाई हैं कौन? आखिर नगर निगम को ऐसे क्या पड़ी है कि इनको बिना काम के हर महीने वेतन दे रहा है। दरअसल ये नगर निगम में बड़े भ्रष्टाचार को दबाने का एक छोटा सा प्रयास है। जो लोग नगर निगम का चुनाव लड़ते हैं, वे यूं ही मोटा पैसा बर्बाद नहीं करते। चुने जाने के बाद वे खुद को अपने नाते-रिश्तेदारों को फायदा पहुंचाने की जुगत करते हैं। सड़क, सफाई और नगर निगम संबंधी दूसरे कामों में तो भ्रष्टाचार होता ही है, सबका साथ सबका विकास लक्ष्य को साधने के लिए एक और रास्ता भी तलाशा जाता है, जिसे आउटसोर्सिंग कहा जाता है।
सबसे पहले नगर निगम में कर्मचारियों की कमी संबंधी एक प्रस्ताव बनाया जाता है और फिर आउटसोर्स कर्मचारी रखने की अनुमति ली जाती है। फिर एक कंपनी को आउटसोर्स एजेंसी बनाया जाता है। उस कंपनी का काम होता है कि नेता, अफसर और पत्रकारों को परिजनों और नाते-रिश्तेदारों को और कुछ काम करने वाले लोगों को नगर निगम में भर्ती करे। नेताओं, अफसरों और पत्रकारों के परिजनों की ओर से एक प्रार्थना पत्र लिखा जाता है। प्रार्थना पत्र में लिखा होता है कि ज्ञात हुआ है, नगर निगम में आउटसोर्स से भर्ती हो रही है। अब यह बात केवल भूतों को ही ज्ञात हो सकत है कि भर्ती हो रही है। क्योंकि, ऐसी भर्ती के लिए नगर निगम कोई विज्ञापन नहीं निकालता। कोई सार्वजनिक सूचना भी इस भर्ती के बारे में नहंी होती। फिर भी जिन लोेगों को ये बात रहस्यमय तरीके से ज्ञात हो जाती है, उनके प्रार्थना पत्र पर कोई सक्षम आ अक्षम अधिकारी दस्तखत कर देता है और नौकरी पक्की हो जाती है।
आउटसोर्स से भर्ती किये जाने वाले सभी कर्मचारी यहां सिफारिश पर ही लगाये जाते हैं। लेकिन, इन कर्मचारियों की दो श्रेणियां हैं, एक वे जो सुबह से शाम तक काम पर जुटे रहते हैं, और दूसरे वे जो काम नहीं करते, उन्हें केवल वेतन मिलता है। ऐसी ही एक काम न करने वाली कर्मचारी से बात बोलेगी ने संपर्क किया। उससे हुई बातचीत से साफ है कि वह कभी नगर निगम नहीं गई, लेकिन वेतन हर महीने ले रही है। तकनीकी कारणों से अभी कर्मचारी का नाम उजागर नहीं किया जा रहा है।
एक घोस्ट एंपलॉई से बातचीत
रिपोर्टर : हेलो
पत्रकार पत्नी : हां भाई
रिपोर्टर : आप फलां जी बोल रही हो
पत्रकार पत्नी : हां जी
रिपोर्टर : फलानी जी आप क्या नगर निगम मैं काम करती हैं
पत्रकार पत्नी : हां जी
रिपोर्टर : क्या काम करती हैं
पत्रकार पत्नी : सन्नाटा
रिपोर्टर : काम क्या करती हैं आप वहां
रिपोर्टर पत्नी : क्या काम करती हूं.. अं अं
रिपोर्टर : किस पद पर हैं आप वहां
पत्रकार पत्नी : सन्नाटा
रिपोर्टर : पद क्या है आपका
पत्रकार पत्नी : आप कौन हैं
रिपोर्टर : मैं सचिवालय से बोल रहा हूं
पत्रकार पत्नी : ओह अच्छा
रिपोर्टर : किस पद पर हैं आप
पत्रकार पत्नी : जी वो भार्गव योजना है उसमें
रिपोर्टर : आपको पता तो होगा कि किस पोस्ट पर हैं
पत्रकार पत्नी : सन्नाटा
रिपोर्टर : आपको तनखा कितनी मिलती है
पत्रकार पत्नी : सन्नाटा
रिपोर्टर : आपकी शिकायत है कि आप नगर निगम नहीं आती हैं, आप जाती हैं वहां रोज
पत्रकार पत्नी : जी कभी-कभी जाती हूं
रिपोर्टर : कभी-कभी मतलब महीने में कितने दिन
पत्रकार पत्नी : सन्नाटा
रिपोर्टर : आपके पति क्या करते हैं
पत्रकार पत्नी : जी वे आते हैं तो मैं बात करवा दूंगी