धामी ने इस्तीफा दिया, अगले मुख्यमंत्री पद के लिये जंतजोड़ में जुटे दावेदार, सतपाल महाराज और निशंक दौड़ में आगे
देहरादून, 11 मार्च (उहि)। उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने विधानसभा चुनाव नतीजे आने के बाद नयी सरकार के गठन हेतु शुक्रवार को औपचारिक रूप से अपने मंत्रिमण्डल का इस्तीफा राज्यपाल को सौंप दिया है, जिसे राज्यपाल द्वारा स्वीकार कर लिया गया है। राज्यपाल की ओर से नयी सरकार के गठन तक कार्यवाहक मुख्यमंत्री के तौर पर पद पर बने रहने को कहा गया है।
विधानसभा चुनाव में भाजपा की शानदार जीत के बाद शुक्रवार को धामी मंत्रिमण्डल की बैठक हुयी जिसमें भाजपा को मिली जीत के लिये प्रदेश की जनता और प्रधानमंत्री मोदी का आभार प्रकट किया गया। बैठक के बाद धामी अपने मंत्रिमण्डल के सहयोगियों के साथ राज्यपाल से भेंट करने राजभवन गये जहां उन्होंने अपना इस्तीफा सौंप दिया।
धामी के इस्तीफे के साथ ही राज्य में नये मुख्यमंत्री को लेकर अटकलें तेज हो गयी है। नयी सरकार का गठन 17 मार्च से पहले होना है। इसलिये मुख्यमंत्री का चयन भी एक दो दिन के अंदर और होले से पहले होने की संभावना है। इसके लिये केन्द्रीय नेतृत्व ने धर्मेन्द्र प्रधान और पियूष गोयल को देहरादून भेजा है। समझा जाता है कि पवेक्षक केन्द्रीय नेतृत्व द्वारा नये विधायक दल का नेता घोषित करने से पहले पार्टी के नये विधायकों की राय भी जानेंगे। अंतिम फैसला सदैव की भांति पार्टी आला कमान को ही करना है। मुख्यमंत्री की दौड़ में सतपाल महाराज, रमेश पोखरियाल निशंक, धनसिंह रावत, अनिल बलूनी, मदन कौशिक और त्रिवेन्द्र सिंह रावत बताये जा रहे हैं। त्रिवेन्द्र रावत चुनाव नहीं लड़े हैं, इसलिये उनके लिये डोइवाला से लगभग 29 हजार मतों से जीते ब्रिजभूषण गैरोला ने सीट छोड़ने का प्रस्ताव किया है। चूंकि घोर अलोकप्रियता के चलते पार्टी आला कमान मार्च 2021 में त्रिवेन्द्र रावत को हटा चुका है। इसलिये उनकी संभावनाएं घटी है। इसी प्रकार मदन कौशिक पर पार्टी अध्यक्ष होने के बावजूद पार्टी प्रत्याशियों के खिलाफ भीतरघात का आरोप संजय गुप्ता और स्वामी यतीश्वरानन्द आदि ने लगाया है। धामी स्वयं चुनाव हार गये हैं, इसलिये उन्हें रेस से बाहर माना जा रहा है। पिछली बार प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट चुनाव हार गये थे, इसलिये वह मुख्यमंत्री पद की दौड़ से हट चुके थे। इसी प्रकार पार्टी को जिताने के बावजूद हिमाचल में प्रेम कुमार धूमल चुनाव हारने के कारण मुख्यमंत्री नहीं बन सके। अनिल बलूनी की केन्द्रीय नेतृत्व में अच्छी पैठ अवश्य है लेकिन स्वास्थ कारणों से उनकी दावेदारी कमजोर मानी जा रही है। हालांकि वह काफी सक्रिय रहते हैं। श्रीनगर से जीतने वाले उच्च शिक्षा मंत्री धनसिंह बड़ी मुश्किल से पोस्टल वोटों से जीत पाये हैं। प्रधानमंत्री ने स्वयं उनके क्षेत्र में जनसभा की फिर भी वह 500 से कम मतों से पोस्टल वोटों के सहारे चुनाव जीत पाये। हालांकि पार्टी की ओर से भेजे गये आब्जर्वर धर्मेन्द्र प्रधान से धनसिंह की खूब छनती है। इस तरह सबसे दमदार दावेदार सतपाल महाराज ही माने जा रहे हैं। वह उत्तराखण्ड के उन गिने चुने नेताओं में से हैं जिनका अपना जनाधार भी है। वह केन्द्र तथा राज्य में मंत्री तथा दो बार के सांसद रह चुके हैं। इस पद के लिये रमेश पोखरियाल निशंक की दोवदारी कम नहीं आंकी जा सकती है। वह उत्तर प्रदेश में भी कैबिनेट मंत्री रहे तथा मोदी सरकार के इसी कार्यकाल में शिक्षा मंत्री रहे। निशंक को उत्तराखण्ड में मुख्यमंत्री के तौर पर शासन चलाने का अनुभव भी है।