लिंग आधारित भेदभाव तथा हिंसा और इसके आयाम‘ विषय पर पर हुआ मंथन
देहरादून, 28 अगस्त। रविवार को दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र की ओर से ‘लिंग आधारित भेदभाव तथा हिंसा और इसके आयाम‘ विषय पर संस्थान के सभागार में एक विचार गोष्ठी का कार्यक्रम किया गया।मुख्य रुप से इस गोष्ठी में पुरुष-महिला और तीसरे लिंग के मध्य लिंग भेदभाव अंतर पर आधारित विविध बिन्दुओं पर सार्थक बातचीत की गई और इनसे जुड़े मुद्दों पर संगठित प्रशिक्षण व कार्यशालाओं की आवश्यकता पर जोर देने की बात की गई।
सामाजिक कार्यकर्ती दीपा कौशलम की दीपा कौशलम द्वारा प्रस्तुत वार्ता श्रृंखला के तहत इस महत्वपूर्ण गोष्ठीे में डॉ. राजेश पाल, अंजुम प्रवीन, नीलम तथा सुरेंद्र हर्ष ने भाग लिया। कार्यक्रम का संचालन शिवानी पांडेय ने किया।
वक्ताओं का मानना था कि लिंग आधारित भेदभाव पर आधारित पूर्व धारणाओं, रूढ़िवादिता पारंपरिक मानसिकताओं को समाज से हटाने तथा इन भेदभावों से संबंधित मुद्दों के समाधान के लिए सकारात्मक तरीके से निरन्तर कार्य किये जाने की जरुरत है। अपने वक्तव्य में दीपा कौशलम ने कहा कि इस तरह के सत्रों का उद्देश्य प्रतिभागियों को परिवार और व्यापक स्तर पर समाज द्वारा लागू विकास की इस रणनीति को समझने के लिए अंतर्दृष्टि और दृष्टि प्रदान करना है। उत्तरजीवी के अनुभवों को सुनकर और समझकर प्रतिभागी लिंग को समझने में सक्षम होंगे। उम्मीद है कि यह श्रृंखला एक मार्ग प्रशस्त करेगी। वक्ताओं ने अपने लिंग आधारित भेदभाव से जुड़े निजी अनुभवों भी साझा किये।
कुल मिलाकर वक्ताओं ने जोर देकर कहा कि इस तरह के संवाद सत्रों का उद्देश्य पेशेवरों को एक मंच प्रदान करना है ताकि अतार्किक विचार प्रक्रिया को दूर किया जा सके और उसके स्थान पर तार्किक शिक्षा दी जा सके। प्रकृति ने हर प्राणी को खास और अलग बनाया है लेकिन यह तब खराब हो जाती है जब मतभेद, भेदभाव में परिवर्तित हो जाता है। लिंग आधारित हिंसा, लिंग आधारित भेदभाव का एक उन्नत संस्करण है। लिंग-आधारित भूमिकाओं और जिम्मेदारियों को लागू करने के दौरान सभी लोगों को (उनके लिंग की परवाह किए बिना) अनेक विषमताओं और कठिनाईयों से गुजरना पड़ता है। लगभग सभी को अच्छा होने के लिए समाज द्वारा बनाए गए कठोर नियमों का पालन करने के लिए मजबूर किया जाता है। यह प्रवर्तन व्यक्तिगत विकास के सहज और प्राकृतिक प्रक्षेप पथ को रोकता है। यह डर हमेशा बना रहता है कि भेदभाव जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से है उसका सामना करने वाले लोग भावनात्मक रूप से कठोर, निंदक और पाखंडी बन सकते हैं – यहां तक कि अनजाने में भी।
उल्लेखनीय है कि सामाजिक कार्यकर्ती के तौर पर दीपा कौशलम ने बहुत कम उम्र से ही लड़कियों और महिलाओं के लिए बनाए गए सामाजिक मानदंडों के प्रति सवालिया रवैया अपनाया। लिंग के बीच भेदभाव हमेशा उसके लिए श्अस्वीकृतश् क्षेत्र रहा है। वह कई भूमिकाएँ निभाती है जैसे शिक्षण, सामुदायिक आउटरीच पहल, लैंगिक भेदभाव और हिंसा का सामना करने वाली महिलाओं, युवाओं और बच्चों को सामाजिक और कानूनी सहायता प्रदान करना, महिला हेल्पलाइन स्थापित करना, किसानों की आजीविका परियोजनाएं और स्प्रिंगशेड और वाटरशेड विकास कार्यक्रम, स्थायी प्रथाओं के लिए ग्राम स्तर के संस्थानों को बढ़ावा देना आदि। दीपा कौशलम एक सलाहकार भी हैं जो लिंग परिप्रेक्ष्य के साथ सामुदायिक गतिशीलता, संस्था निर्माण और सुदृढ़ीकरण में काम कर रही हैं। उन्हें नेशनल फाउंडेशन ऑफ इंडिया से सामुदायिक कार्य के लिए ॅप्ैब्व्डच् आइकन ऑफ करेज अवार्ड और सी. सुब्रमण्यम अवार्ड मिले हुए हैं।
सभागार में उपस्थित लोगों ने इस विषय से जुड़े अनेक सवाल-जबाब भी किये। इस अवसर पर भूपत सिंह बिष्ट, रजनीश त्रिवेदी, डॉ.सविता चौनियाल, विजय भट्ट, समदर्शी बड़थ्वाल, डॉ.हर्षमणि भट्ट, सुंदर सिंह बिष्ट सहित अनेक लोग उपस्थित थे। कार्यक्रम के अंत मे निकोलस हॉफलैण्ड ने सभी लोगों का आभार व्यक्त किया। सभागार में कई सामाजिक कार्यकर्ता, बुद्विजीवी, संस्कृति व साहित्य प्रेमी, पुस्तकालय के सदस्य तथा साहित्यकार व युवा पाठक उपस्थित रहे।