डाक्टर उनियाल प्रकरण : निर्लज्ज व्यवस्था का बेहूदा तमाशा

–दिनेश शास्त्री
डा. निधि उनियाल के बहाने उत्तराखण्ड के सरकारी सिस्टम की पोल तो खुली लेकिन इससे व्यवस्था में कुछ बदलाव होगा, इसकी उम्मीद कम ही है। आंदोलन के गर्भ से उत्पन्न राज्य की स्थापना के बाद से जनता को मिले हैं तो सिर्फ घोटाले और अफसरों की तुनकमिजाजी। फिर भी इस एक अदद मामले ने अगर अफसरों के आचरण का चौराहे पर खुलासा किया है तो उससे सिर्फ और सिर्फ सरकार की लाचारी ही झलकती है। इस मामले में कोई सार्थक परिणाम सामने आएगा, उसकी तो कल्पना भी मत कीजिए बल्कि आने वाले दिनों में इसे या तो भूल जाइये या फिर इस प्रदेश की नियति मान कर दांत के दर्द को सहन करने की आदत बना लीजिए तो बेहतर रहेगा। इन स्थितियों को देख कर आज सहज ही चारु चंद्र चन्दोला की याद आती है। उनके काव्य संग्रह की एक कविता की पंक्तियां इस तरह थी-
मेरे भाई, तुम्हारे और मेरे बदलने से कुछ नहीं होगा,
जब तक ये व्यवस्था नहीं बदलती, कुछ नहीं होगा।
गुरुवार 31 मार्च जब वित्त वर्ष का समापन हो रहा था, तब सत्ता प्रतिष्ठान की नाक के नीचे चर्चित हाकिम अपनी पत्नी की शिकायत पर एक सरकारी डाक्टर को न सिर्फ फटकार लगा कर माफ़ी मांगने के विवश करता है बल्कि माफ़ी न मांगने पर दो घंटे के भीतर अल्मोड़ा सम्बद्ध करने के आदेश भी जारी करवा देता है। हनक देखिए कि वह किसी से पूछने की जहमत तक नहीं उठाता। सत्ता का नशा दागी होने के बावजूद अहंकार की बानगी भी दिखा देता है।
यह बात अब सबकी जानकारी में आ गई है कि गुरुवार 31 मार्च को स्वास्थ्य सचिव पंकज पांडेय की पत्नी बीमार होने पर दून मेडिकल कॉलेज से अफसरों ने डॉ. निधि उनियाल को सचिव के आवास पर भेजा। इस दौरान डॉक्टर बीपी मापने की मशीन ले जानी भूल गई। आरोप है कि इस पर सचिव की पत्नी ने डॉक्टर उनियाल को फटकार लगा दी। जाहिर है यह बात डॉक्टर को नागवार गुजरी और दोनों के बीच हॉट टॉक हुई। इस मामले में डॉक्टर ने मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य सचिव को भी पत्र भेजा। शुक्रवार को मामले में मुख्यमंत्री ने डॉ. निधि उनियाल एवं स्वास्थ्य सचिव प्रकरण में मुख्य सचिव को जांच के निर्देश दिए हैं। मुख्य सचिव ने मनीषा पन्वार की अध्यक्षता में कमेटी गठित कर दी है। इस बीच सीएम ने तत्काल प्रभाव से डॉ. निधि उनियाल के स्थानांतरण को स्थगित करने के निर्देश दिए हैैं। मामला गंभीर हुआ तो सीएम आवास में मिलकर स्वास्थ्य मंत्री ने मुख्यमंत्री ने प्रकरण से अवगत कराया था। लेकिन यहाँ एक बात यह जस की तस खडी है कि स्वास्थ्य सचिव का अहंकार कब तक बना रहेगा।
माफ़ी के लिए डाला गया था दबाव :
डा. उनियाल जब सचिव के आवास से लौटने के बाद अस्पताल में मरीजों को देखने लगती हैं तो रीढ़ विहीन अस्पताल प्रबंधन डाक्टर पर दबाव डालता है कि सचिव की पत्नी से माफ़ी मांग लो। भला क्यों? हाकिम की शान में गुस्ताखी जो ठहरी। स्वाभिमानी डाक्टर को यह मंजूर नहीं था, लिहाजा जैसे ही हाकिम को खबर पहुची कि डाक्टर माफ़ी नहीं मांग रही तो राज्यहित के नाम पर डाक्टर निधि को अल्मोड़ा मेडिकल कॉलेज में सम्बद्ध करने के आदेश जारी कर देता है। यह तत्परता अगर प्रदेश की स्वास्थ्य सेवाओं को सुधारने में दिखाई होती तो पांडे जी आज आप हीरो होते लेकिन आप बीबी के बहकावे में आकर विलेन बन कर रह गए हैं। यह अजीब बात नहीं है कि अभद्रता आप खुद करें और माफ़ी मांगने के लिए डाक्टर को कहा जाए। यानी पांडे इतने बड़े हाकिम हैं कि जो चाहे कर दे। उनके लिए कायदे क़ानून लोकतंत्र सब ताक पर है। अगर माफ़ी मांगनी थी तो उस डाक्टर से मांगनी चाहिए थी, जिसके साथ अभद्रता हुई, माफ़ी या तो अस्पताल प्रबंधन मांगता कि आपके साथ जो हुआ, उसके लिए खेद है। माफ़ी पंकज पांडे को मांगनी चाहिए थी कि उनकी पत्नी ने डाक्टर निधि के सम्मान को चोट पहुन्चाई। पांडे की पत्नी को शर्मिंदा होना चाहिए था, लेकिन वह नहीं हुई। पांडे भी अपने अहंकार में अब तक चूर हैं तो फिर स्वास्थ्य मंत्री और अंत में मुख्यमंत्री को माफ़ी मांगनी चाहिए कि उनके अफसर ने बहुत बड़ी गलती कर दी है और इसके लिए वे माफ़ी मांगते हैं। लेकिन यह सब नहीं हुआ। महज कमेटी बना कर लीपापोती की कसरत हो रही है। प्रदेश के लोग सोशल मीडिया पर सवाल उठा रहे हैं कि बीते दो दशक में बनी कमेटियो का नतीजा क्या रहा है? ज्यादा दूर क्यों जाना? बीते साल भू क़ानून पर बनी कमेटी की रिपोर्ट का क्या हुआ? सवाल बहुत हैं लेकिन जवाब नहीं है।
पांडे कितने बेदाग?
यह हाल तब है जबकि पंकज पांडे की छवि साफ सुथरी नहीं रही है। एनएच घोटाला हो कोई और मामला, उनके काम संदेह के घेरे में तो रहे ही हैं। आपको याद होगा जीरो टॉलरेन्स की सरकार से उन्हें क्लीन चिट मिल जाना कई सवाल खड़े करता है। जाहिर है जब नौकरशाही में बैठे लोग ही जान्च करेंगे और नतीजा आरोपी के पक्ष में आए तो आप समझ सकते हैं कि अंग्रेजों के बनाये सिस्टम में आला नौकरशाह का बाल भी बान्का नहीं हो सकता। यह सिलसिला राज्य गठन के बाद से बदस्तूर जारी है। कौन भूला है जब पहली निर्वाचित सरकार तिवारी जी की थी तो 56 घोटालों की खूब चर्चा हुई थी और उस नाव पर सवार होकर 2007 में भाजपा सत्ता में आई थी।
इंटरनेट मीडिया पर इन घटना के बाद बहुत कुछ साझा हो रहा है। कुछ पंक्तियां निम्नवत हैं, ये रचना किसकी है, मुझे नहीं मालूम लेकिन जिसने भी लिखा सच से पर्दा उठाया है। आप भी देखें –
अफसर जी अफसर जी,
पत्नी के इलाज में रह गयी कसर जी,
त्यौरी चढ़ी पत्नी की,
डॉक्टर का हुआ ट्रांस्फर जी
पर प्यारे अफसर जी,
सत्ता के दुलारे अफसर जी,
डॉक्टर नहीं तुम्हारे घर की नौकर जी,
तुम राजा नहीं,
हो जनता के चाकर जी।
यह एक तरह से उत्तराखण्ड की आज की मौजूदा स्थिति का सार है। देखना यह होगा कि सिस्टम इसी तरह चलता रहेगा या कुछ परिवर्तन होगा। वैसे डाक्टर निधि उनियाल ने एक क्रान्तिकारी कदम तो उठाया ही है, बेशक उन्हें आगे भी कोपभाजन बनना पड़ सकता है लेकिन इस बहाने सडे गले तन्त्र् की सर्जरी की शुरुआत तो हो गई है। यह सब कुछ राजनीतिक नेतृत्व पर निर्भर करेगा कि वह अपने नौकरशाहो की सुनता है या जनता के प्रति जवाबदेह है। यानी परीक्षा अब धामी जी की है।
धामी जी आप उतराखंड के युवा मुख्यमंत्री हैं। पुराने ढर्रे को ताक पर रख कर कुछ नया करें। योगी जी भी उतराखंड के बेटे हैं। उन से गुर सीखें। आपसे बड़ी उम्मीदें हैं
You are right
प्रायः हर राज्य में ऐसे बिगड़ैल नौकरशाह मिल जाएंगे। ऐसे लोगों पर कार्रवाई इसलिए नहीं हो पाती क्योंकि राजनीतिक नेतृत्व की अपनी पीड़ाएं होती हैं, अपने स्वार्थ होते हैं। मुख्यमंत्री धामी को अगर सत्ता प्रतिष्ठान में अपनी धमक बरकरार रखनी है तो ऐसे अफसरों को काबू में रखना ही होगा। बहुत अच्छी रिपोर्ट लिखी आपने।
Thanks a lot