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मोदी की केदारनाथ यात्रा से पहले बबाल, पूर्व सीएम त्रिवेन्द्र को पण्डों ने खदेड़ा

रुद्रप्रयाग, 1 नवम्बर (उ.हि.)। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की बहुप्रतीक्षित यात्रा से ठीक पहले केदारनाथ धाम में पण्डा पुरोहितों ने सोमवार को पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत को अपमानित कर बिना दर्शन किये ही बैरंग लौटा दिये जाने से विधानसभा चुनावों की तैयारियों में उलझी भाजपा की किरकिरी कर दी। त्रिवेन्द्र के अलावा प्रधानमंत्री की यात्रा की तैयारियों का जायजा लेने गये भाजपा प्रदेश अध्यक्ष एवं कैबिनेट मंत्री धनसिंह रावत को भी पण्डा पुरोहितों के भारी विरोध का समाना करना पड़ा, मगर वे त्रिवेन्द्र की तरह बिना दर्शन के नहीं लौटे।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की आगामी 5 नवम्बर को प्रस्तावित केदारनाथ यात्रा से ठीक 4 दिन पहले सोमवार को धाम में पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत को पण्डा पुरोहितों के भारी विरोध का सामना करना पड़ा। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार सोमवार प्रातः लगभग साढ़े दस बजे त्रिवेन्द्र रावत प्राइवेट कंपनी के हेलीकाप्टर से जैसे ही केदारधाम में उतरे तो उन्हें देख कर कुछ पण्डे पुरोहित भड़क गये और उनके विरोध में नारे लगाने लगे। इस पर त्रिवेन्द्र और विरोध करने वालों के बीच तीखी बहस हो गयी। विवाद की सूचना मिलते ही धाम के सारे पण्डे घटनास्थल पर पहुंच गये और त्रिवेन्द्र को मंदाकिनी तथा सरस्वती के संगम पर बने प्रयाग के निकट ही आगे बढ़ने से रोकने लगे। इस तीखे विरोध के कारण त्रिवेन्द्र पुल से आगे नहीं बढ़ सके और उन्हें बिना दर्शन किये ही अपमानित होकर बैरंग वापस लौटना पड़ा।

जिस दौरान पण्डे पुरोहित मंदिर से काफी नीचे त्रिवेन्द्र से उलझे हुये थे उसी समय प्रदेश भाजपा अध्यक्ष मदन कौशिक और कैबिनेट मंत्री धनसिंह रावत वीआइपी हैलीपैड पर उतर कर सीधे मंदिर में प्रवेश करने में सफल हो गये। लेकिन बाद में उनको भी तीर्थ पुरोहितों के जबरदस्त विरोध का सामना करना पड़ा। ये दोनों नेता प्रधानमंत्री की 5 नवम्बर को प्रस्तावित यात्रा की तैयारियों का जायजा लेने केदारनथ गये थे। उस दिन प्रधानमंत्री को केदारनाथ के दर्शन करने के साथ ही धाम में शंकराचार्य की विशाल प्रतिमा का भी उद्घाटन करना है। प्रधानमंत्री की यात्रा से पहले इस घटना ने नया विवाद खड़ा कर दिया है। जानकारों के अनुसार पण्डा पुरोहित प्रधानमंत्री की यात्रा का विरोध नहीं करेंगे।

भाजपा के सूत्रों के अनुसार प्रधानमंत्री की यात्रा से पहले  त्रिवेन्द्र रावत को केदारनाथ नहीं जाने देना था, क्योंकि आज के विवाद के कारण माहौल खराब हो गया है। अब प्रधानमंत्री की सुरक्षा का सवाल भी खड़ा हो गया है। जब दलबल के साथ पहुंचे पूर्व मुख्यमंत्री को धकेला जा सकता है तो प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में भी व्यवधान डाला जा सकता है। क्योंकि भाजपा सरकार ने त्रिवेन्द्र की गलती सुधार कर 31 अक्टूबर से पहले चारधाम देवस्थानम बोर्ड विवाद का सर्वमान्य हल निकालने की घोषण की थी। लेकिन समाधान निकालने के बजाय समिति का गठन कर दिया और मनोहरकांत ध्यानी की अध्यक्षता में गठित समिति अभी तक अंतरिम रिपोर्ट ही दे सकी। जबकि 31 अक्टूबर की तिथि निकलने के बाद अब केदारनाथ के कपाट 6 नवम्बर को बंद हो रहे हैं। उससे पहले प्रधानमंत्री मोदी का 5 नवम्बर को केदारनाथ पहुंचने का कार्यक्रम है।

त्रिवेन्द्र रावत को  कुछ महीने पहले भी ऊखीमठ में स्थानीय लोगों के भारी विरोध का सामना करना पड़ा था। उस समय उनको ऊखीमठ में काले झण्डे दिखाये गये थे। क्योंकि विवादास्पद चारधाम देवस्थानम बोर्ड उनकी ही देन है। यही नहीं कुछ ही महीने पहले धर्मस्व और पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज के प्रतिनिधि पंकज भट्ट को भी लोगों ने ऊखीमठ में भगा दिया था।

 

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