लोकगीत लोगों के गीत होते हैं, जिनकी रचना लोग स्वयं करते हैं
–uttarakhandhimalaya.in–
किसी भी देश या प्रदेश की संस्कृति के बारे में अगर जानने के लिए सबसे बेहतर अगर कोई चीज है तो वो है उसका लोक साहित्य। लोक साहित्य समाज की आत्मा का सटीक चित्रण करता है। किसी भी देश की जातीय, राष्ट्रीय साहित्यिक, सामाजिक ऐतिहासिक, धार्मिक एवं आर्थिक मापदंड के लिए यदि कोई पैमाना हमारे पास है तो वह उस देश का लोक साहित्य ही है।
लोकगीत लोक के गीत हैं। जिन्हें कोई एक व्यक्ति नहीं बल्कि पूरा लोक समाज अपनाता है। सामान्यतः लोगो में प्रचलित, लोगो द्वारा रचित एवं लोगो के लिए लिखे गए गीतों को लोकगीत कहा जा सकता है। लोकगीतों का रचनाकार अपने व्यक्तित्व को लोक समर्पित कर देता है। शास्त्रीय नियमों की विशेष परवाह न करके सामान्य लोकव्यवहार के उपयोग में लाने के लिए मानव अपने आनन्द की तरंग में जो छन्दोबद्ध वाणी सहज उद्भूत करता है, वही लोकगीत है।
लोकगीत को सीधे लोगों के गीत भी कहते है। जो घर, नगर, गॉव के लोगों के अपने द्वारा रचित गीत होते है। इसके लिए शास्त्रीय संगीत की तरह प्रयास या अभ्यास की जरुरत नहीं है। त्योंहारों और विषेष अवसरों पर यह गीत गाये जाते है। सभी बोली और उप-बोलियों के लोकगीत अपना विषेष महत्व रखते है।
लोकगीतों में प्राचीन परंपराए, रितिरिवाज, धार्मिक एवं सामाजिक जीवन के साथ अपनी संस्कृति दिखाई देती है। ऐसे लोकगीतों में ऋतुसंबंधी गीत, संस्कार गीत और जातीय गीत, शादी के गीत आदि आते है। लोकगीत अधिकत ढोलक की मदत से गाए जाते है। लोकगीत गॉव और इलाकों की बोलियों में गाए जाते है। उस क्षेत्र के लोग उसे समझते है यही उसकी सफलता कही जा सकती है। साहित्य की प्रमुख विधाओं में लोकगीतों का स्थान सर्वोपरी है।