पर्यावरणब्लॉग

मानव-वन्यजीव संघर्ष से निपटने के लिए वन और पर्यावरण मंत्रालय उठाये कई कदम 

Human-wildlife conflict is when encounters between humans and wildlife lead to negative results, such as loss of property, livelihoods, and even life. Defensive and retaliatory killing may eventually drive these species to extinction.

-uttarakhandhimalaya.in-

फरवरी 2021 में मंत्रालय द्वारा मानव-वन्यजीव संघर्ष से निपटने के लिए एक परामर्श जारी किया गया। परामर्श में समन्वित अंतरविभागीय कार्रवाई, अति संघर्ष के स्थानों की पहचान, मानक संचालन प्रक्रियाओं का पालन, त्वरित प्रतिक्रिया टीमों की स्थापना, राज्य और जिला स्तर के गठन की सिफारिश की गई है। समितियां अनुग्रह राहत की मात्रा की समीक्षा करेंगी, त्वरित भुगतान के लिए मार्गदर्शन/निर्देश जारी करेंगी, और मृत्यु और चोट के मामले में प्रभावित व्यक्तियों को 24 घंटे के भीतर अनुग्रह राहत के उपयुक्त हिस्से का भुगतान करने के लिए पर्याप्त धन का प्रावधान करेंगी।

यह जानकारी केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री श्री अश्विनी कुमार चौबे ने 5 फरवरी को  लोकसभा में एक लिखित उत्तर में दी।

केंद्र सरकार देश में वन्यजीवों और उनके आवास के प्रबंधन के लिए केंद्र प्रायोजित योजनाओं ‘वन्यजीव आवासों का विकास, ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ और ‘प्रोजेक्ट हाथी’ के तहत राज्य/केंद्र शासित प्रदेश सरकारों को वित्तीय सहायता प्रदान करती है। योजना के तहत समर्थित गतिविधियों में फसल के खेतों में जंगली जानवरों के प्रवेश को रोकने के लिए भौतिक बाधाओं जैसे कांटेदार तार की बाड़, सौर ऊर्जा संचालित बिजली की बाड़, कैक्टस का उपयोग करके जैव-बाड़ लगाना, चारदीवारी आदि का निर्माण शामिल है;

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने फसलों को नुकसान सहित मानव वन्यजीव संघर्ष के प्रबंधन पर 3 जून, 2022 को राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को दिशानिर्देश भी जारी किए हैं। इसमें वन सीमांत क्षेत्रों में जंगली जानवरों के लिए अरुचिकर फसलों को बढ़ावा देना शामिल है जैसे कृषि वानिकी मॉडल, जिसमें नकदी फसलें जैसे मिर्च, नींबू घास, खस घास आदि शामिल हैं, जिन्हें पेड़/झाड़ी प्रजातियों के साथ उपयुक्त रूप से मिश्रित करके लगाया जाता है। इसमें असुरक्षित क्षेत्रों में विभिन्न योजनाओं के तहत राज्य कृषि/बागवानी विभाग द्वारा वैकल्पिक फसल के लिए व्यापक दीर्घकालिक योजना की तैयारी और कार्यान्वयन भी शामिल है।

जंगली जानवरों और उनके आवासों को संरक्षित करने के लिए वन्य जीवन (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के प्रावधानों के तहत पूरे देश में महत्वपूर्ण वन्यजीव आवासों को कवर करने वाले संरक्षित क्षेत्रों जैसे राष्ट्रीय उद्यान, अभयारण्य, संरक्षण रिजर्व और सामुदायिक रिजर्व का एक नेटवर्क बनाया गया है।

वन्य जीवन (संरक्षण) अधिनियम, 1972 मानव वन्यजीव संघर्ष स्थितियों से निपटने के लिए नियामक कार्य प्रदान करता है।

मंत्रालय ने वन्यजीवों की बेहतर सुरक्षा और मानव वन्यजीव संघर्ष को रोकने की गतिविधियों सहित आवास में सुधार के लिए वन्यजीव आवास विकास की केंद्र प्रायोजित योजनाओं के तहत केरल को वित्तीय सहायता प्रदान की है। पिछले पांच वर्षों के दौरान इस योजना के तहत केरल को जारी धनराशि का विवरण इस प्रकार है:

(लाख रूपये में)

राज्य/संघ राज्य क्षेत्र का नाम 2019-20 2020-21 2021-22 2022-23 2023-24
केरल 845.026 731.2845 295.7737 224.4735 921.0361

 

राज्य/केंद्र शासित प्रदेश अपने मानदंडों के अनुसार मुआवजा देते हैं। जंगली जानवरों के हमले में कितने लोग घायल हुए या जान गंवायी, इसका ब्योरा और राज्य सरकार द्वारा दिये गये मुआवजे का ब्योरा मंत्रालय के स्तर पर नहीं जुटाया जाता।

मंत्रालय ने हाल ही में मानव-वन्यजीव संघर्ष के मामले में अनुदान राशि भुगतान में वृद्धि की है। अनुदान के तहत राहत की संशोधित दरें इस प्रकार हैं:

 

क्र.सं. जंगली जानवरों से होने वाली क्षति की प्रकृति अनुग्रह राहत की राशि
(ए) मनुष्य की मृत्यु या स्थायी अक्षमता 10 लाख रुपए
(बी) गंभीर चोट 2 लाख रुपए
(सी) छोटा घाव उपचार की लागत 25000/- रूपये तक
(डी) संपत्ति/फसल की हानि राज्य/केंद्रशासित प्रदेश सरकार उनके द्वारा निर्धारित लागत मानदंडों का पालन कर सकती है।

 

 

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