स्थापना दिवस 15 अप्रैल, विशेष : जब हिमाचल की नहीं हो पायी टिहरी
–-जयसिंह रावत
ऐतिहासिक, भौगोलिक, आर्थिक और सांस्कृतिक दृष्टि से ब्रिटिश गढ़वाल और कुमाऊं का एक अंग होने के बावजूद अंग्रेज शासकों ने राजनीतिक कारणों से टिहरी गढ़वाल को ब्रिटिश शासित गढ़वाल-कुमाऊं के साथ रखने के बजाय इसे पंजाब हिल स्टेट्स के पॉलिटिकल ऐजेंट के अधीन रख दिया था। शुरू में टिहरी रियासत का चार्ज कुमाऊं के कमिश्नर के पास था, जिसे हटा कर बरेली के कमिश्नर के अधीन कर दिया गया। बरेली के कमिश्नर के अधीन यह व्यवस्था 30 सितम्बर 1936 तक रही। लेकिन 1 अक्टूबर 1938 से टिहरी राज्य को पंजाब हिल स्टेट्स के पॉलिटिकल ऐजेंट के अधीन कर दिया गया। मैदानी संयुक्त प्रान्त और पंजाब से भिन्न इन सभी पहाड़ी रियासतों की भौगोलिक और सांस्कृतिक साम्यता को देखते हुयी भी इन्हें एक साथ एक ही राजनीतिक इकाई के रूप में रखा गया। एक ही प्रशासनिक यूनिट होने के कारण लोकतंत्र की कामना लिये सभी रियासतों के प्रजामण्डलों के कार्यकर्ताओं को राजशाही से त्रस्त प्रजा की साझा लड़ाई लड़ने का अवसर मिला।
हिमाचल की इन सभी रियासतों में टिहरी सबसे बड़ी रियासत थी। सन् 1947 तक टिहरी राज्य की जनसंख्या लगभग 5 लाख हो चुकी थी। सन् 1901 के रिकार्ड के अनुसार टिहरी राज्य की जनसंख्या 2, 68,885 थी और उसका क्षेत्रफल 4,180 वर्गमील (10,800 वर्ग किमी) था। सन् 1913 तक टिहरी नरेश को राजा का दर्जा प्राप्त था लेकिन उसके बाद टिहरी नरेश को महाराजा का दर्जा प्राप्त हो गया। सन् 1948 में जब टिहरी राज्य की अंतरिम सरकार बनी तो उसने लगभग 70 लाख रुपये का सालाना बजट बनाया था। अंग्रेजों द्वारा ही टिहरी नरेश को 11 तोपों की सलामी का हकदार बनाया गया था। आजादी के बाद सन् 1971 तक टिहरी नरेश को 3 लाख का राजभत्ता मिलता था। जबकि हिमाचल की कई रियासतों को लाखों की जगह मात्र हजारों में प्रीविपर्स या राजभत्ता देय था। सास्कृतिक एकता के चलते टिहरी समेत इस हिमालयी क्षेत्र के राजा-महाराजाओं, राणा और अन्य सामन्तों के एक दूसरे राज्य से वैवाहिक सम्बन्ध प्राचीन काल से चले आ रहे थे। इन पहाड़ी रियासतों में न केवल वैवाहिक बल्कि आर्थिक सम्बन्ध भी थे। इतिहास में ऐसे अनेकों उदाहरण हैं जबकि टिहरी नरेश की ओर से गुलेर, क्योंथल, सिरमौर आदि नरेशों को आर्थिक सहायतार्थ ऋण दिया गया। गोरखा आधिपत्य से पूर्व रामीगढ़ (राईंगढ़) मैलीगढ़ और डोडाक्वांरा की जागीरें गढ़ नरेश के अधीन थीं। इनमें से रामीगढ़ स्वतंत्र हो गया। मैलीगढ़ के जागीरदार को क्योंथल ने अपने अधीन कर दिया और डोडाक्वांरा की जागीर को गढ़ नरेश ने बिशहर को दहेज में दे दिया।

चम्बा से लेकर टिहरी गढ़वाल तक के हिमालयी भूभाग की विशेष भौगोलिक तथा सांस्कृतिक परिस्थितियों को देख कर लगभग 35 रियासतों में रहने वाले कांग्रेसजनों को संगठित करने तथा पहाड़ के समस्त निवासियों को एक ही उद्ेश्य की पूर्ति हेतु एक ही झण्डे के नीचे लाने के लिये ही अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद ( ऑल इंडिया स्टेट्टस पीपुल्स कान्फ्रेंस) की ओर से सन् 1946 में ’हिमालयन हिल स्टेट्स रीजनल काउंसिल’ का गठन किया गया था, जिसके पहले अध्यक्ष मंडी के स्वामी पूर्णानंद और महासचिव पंडित पद्मदेव गौतम चुने गये। इसका पहला अधिवेशन मंडी में 8 मार्च से 10 मार्च 1946 तक चला। इसमें आजाद हिन्द फौज के सेनानी, गुरुबक्श सिंह ढिल्लों, जनरल शाहनवाज खान और प्रेम सहगल ने भी भाग लिया।
पहाड़ी रियासतों पर नियंत्रण रखने के लिये ब्रिटिश शासन द्वारा पंजाब स्टेट एजेंसी की स्थापना 1933 में की गयी थी। मूल पंजाब प्रान्त लेफ्टिनेंट गवर्नर के अधीन था जबकि पंजाब हिल स्टैट्स ऐजेंसी सीधे गवर्नर जनरल के अधीन थी, जिसका मुख्यालय शिमला था। इस पॉलिटिकल ऐजेंसी के तहत उस समय आज के जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश के भूभाग थे। बाद में शिमला हिल स्टेट्स समूह भी अस्तित्व में आया। शिमला हिल स्टेट्स का नियंत्रण डिप्टी कमिश्नर के पास होता था। महाराजा सुदर्शन शाह को 1815 में आधा गढ़वाल की सत्ता वापस मिलने पर देहरादून का अंग्रेज अफसर और फिर कुमाऊं के कमिश्नर ही टिहरी रियासत के पॉलिटिकल ऐजेंट हुआ करते थे। इसी क्रम में सन् 1830 से लेकर 1840 तक ले0 कर्नल हैदर यंग हर्सी टिहरी का पॉलिटिकल ऐजेंट रहा। हर्सी जौनसार बावर परगने का भी प्रशासक था। शुरू में रंवांई अंग्रेजों ने अपने पास ही रखी हुयी थी लेकिन 1824 में उसे भी टिहरी नरेश को सौंप दिया गया। 26 दिसम्बर 1942 को देहरादून स्थित पॉलिटिकल ऐजेण्ट की व्यवस्था समाप्त कर कुमाऊं के कमिश्नर को टिहरी की राजनीतिक ऐजेंसी सौंपी गयी। (जीआसी विलियम्स: मेम्वॉयर्स ऑफ दून: 181) उसके पूर्व देहरादून में बैठा अंग्रेज अफसर ही काफी समय तक टिहरी का पॉलिटिकल ऐजेंट हुआ करता था। टिहरी रियासत बरेली के कमिश्नर के अधीन भी रही। उसके बाद इसे सन् 1947 तक राजनीतिक निगरानी के लिये पंजाब हिल स्टेट्स ऐजेंसी के तहत रखा गया। इस ऐजेंसी के तहत शुरू में कांगड़ा, गुलेर, जास्वन, सिबा, दातापुर, नूरपुर, चम्बा, सुकेत, मण्डी, कुल्लू, लाहौल, स्पीति, कुटलहर, बांघल, बिलासपुर, मनकोट, चनेहनी, बन्दराटा, बसोहली, भद्रवाह, भादू, कस्तवाड़, राजौरी, पुंछ, भिम्बर, और खरी-खरियाली रियासतें थीं। टिहरी रियासत हिमालयन हिल स्टेट्स रीजनल काउंसिल तथा पंजाब हिल स्टेट्स ऐजेेंसी की एकमात्र रियासत थी जिसका विलय संयुक्त प्रान्त में हुआ। इस रीजनल काउंसिल की बाकी सारी रियासतें क्रमबद्ध ढंग से हिमाचल प्रदेश में शामिल हुयीं। सर्व प्रथम 8 मार्च 1948 को शिमला हिल्स की 27 पहाड़ी रियासतों को मिला कर हिमाचल प्रदेश के गठन की शुरूआत हुयी और 15 मार्च को मण्डी और सुकेत के शासकों ने भी विलयपत्र पर हस्ताक्षर कर लिये। 23 मार्च 1948 को सिरमौर के भी इसमें शामिल होने से हिमाचल में शामिल होने वाली रियासतों की संख्या 30 हो गयी। 15 अप्रैल 1948 को इसे केन्द्र शासित प्रदेश का दर्जा दे कर इसे चीफ कमिश्नर के अधीन कर दिया गया। 15 अप्रैल 1950 को कोटगढ़ और कोटखाई भी हिमाचल में मिल गये। इसी प्रकार 1 जुलाई 1954 को बिलासपुर और 1 नवम्बर 1966 को कांगड़ा, कुल्लू, लाहुल -स्पीति, ऊना, शिमला, नालागढ़, डलहौजी, और बदलोह के पहाड़़ी क्षेत्रों को भी हिमाचल में मिला दिया गया। 25 जनवरी 1971 को हिमाचल प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा मिल गया। जबकि टिहरी राज्य उत्तरप्रदेश के दो जिले, टिहरी और उत्तरकाशी बन कर रह गये।
( लेखक जयसिंह रावत की पुस्तक * टिहरी राज्य के ऐतिहासिक जन विद्रोह से ये अंश लिए गए हैं. )