टीएमयू कैंपस से गणिनी प्रमुख का ससंघ मंगल विहार

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रिद्धि – सिद्धि भवन में आयोजित हवन में विभिन्न मंत्रों और सिद्ध चक्र महामंडल विधान के 108 मंत्रों के साथ दी गई आहुतियाँ

उत्तराखंड हिमालय ब्यूरो –

मुरादाबाद, 9  नवंबर  । रिद्धि – सिद्धि भवन में आयोजित हवन में विभिन्न मंत्रों और सिद्ध चक्र महामंडल विधान के 108 मंत्रों के साथ आहुतियाँ दी गयी।भोपाल से आई संजय एंड पार्टी ने उत्कृष्ट संगीत और भक्ति गीतों के रस में डुबोकर श्रद्धालुओं को हवन से पूर्व समुच्चय पूजन, शांतिनाथ भगवान पूजन,जिनवाणी पूजन के पद्यों से आध्यात्मिक उन्नयन कराया।दूसरी ओर महायज्ञ में तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी के कुलाधिपति श्री सुरेश जैन के संग-संग फर्स्ट लेडी श्रीमती वीना जैन, ग्रुप वाइस चेयरमैन श्री मनीष जैन, श्रीमती ऋचा जैन की उल्लेखनीय उपस्थिति रही। इस विशेष पूजा में यूपी के संग-संग महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, असम आदि से आए श्रावक-श्राविकाओं ने धर्म लाभ लिया।

मैं भी प्रभु जैसा बन जाऊं ऐसा मैंने सोचा था….

सुरमय भक्ति गीतों जैसे – जीवन है पानी की बूंद, तू मेरी बंदगी है तू ही मेरी पूजा है, चल कलशों में भर लो,चंदन की चौकी बाबा मोतियन के भाव सजावा,ओ जारे – जारे पंछी उड़ जा रे,हमें तो प्रभु आपी जैसा बनाना, मैं भी प्रभु जैसा बन जाऊं ऐसा मैंने सोचा था,वंदे जिनवरम ,माँ ने सपना जो देखा पिछली रात को मन में अचरज था देखो पिछली रात को,हे जिनवाणी मैया, मां शारदे हमें तार दे… श्रद्धालु आनंदित और भाव विभोर हो गए।


कुलाधिपति और फर्स्ट लेडी ने ज्ञानमती माताजी के चरणों में किया चंदन अर्पित

हवन से पूर्व गणिनी प्रमुख आर्यिका शिरोमणि ज्ञानमती माताजी ने अपने आशीर्वचनों में बताया -आचार्य देशभूषण जी महाराज और साधुओं ने महावीर भगवान निर्वाणोत्सव का भावपूर्ण वर्णन किया है। उन्होंने भक्त विजय जी को आदेशित कर तीन लोक का आकारध्प्रतीक मंच पर बनवाकर सभी श्रद्धालुओं को दिखाया। ऊर्ध्वलोक,मध्यलोक और अघोलोक की स्थितियों को बताया। सिद्ध शिला 1 राजू प्रमाण की होती है। सात करोड़ बहत्तर लाख अकृत्रिम जैन मंदिर हैं, उन्हें नमन किया। पंचमेरु ढाई द्वीप में है। तत्त्वार्थसूत्र में इस तरह के और भी वर्णन है। पंचम काल में मोक्ष मार्ग चालू है। यह विधान आपका सफल हो और आपको सब कुछ प्राप्त हो, ऐसी भावना भायी। साथ ही बताया कि णमोकार मंत्र अनादिनिधन मंत्र है। उसका प्रतिदिन जाप करें और अपने घरों में जरूर लगाएं।माताजी ने अपनी मंगल भावना प्रदर्शित करते हुए कहा – शासनजिन देवी पद्मावती और चक्रेश्वरी देवी का पूजन भी आगम में है। पूज्यपाद जी स्वामी ने इसका वर्णन किया है। टीएमयू में भव्य मंदिर निर्माण की भावना भायी। उन्होंने बताया कि अयोध्या में सूर्य वंश की नींव पर इक्ष्वाकु वंश की शिला लगी है।
विधान में विभिन्न राज्यों से आए और मुरादाबाद से शामिल समस्त श्रावक – श्राविकाओं और आगंतुक मंडल को कुलाधिपति परिवार की ओर से स्मृतिचिह्न देकर सम्मानित किया गया और नवमन्दिर निर्माण की शुभेक्षा बलवती हो कि कामना की। डॉ. जीवन प्रकाश जैन ने विधान के मुख्य पात्रों को मंच पर आमंत्रित किया। विधान के सौधर्म इंद्र इंद्राणी टीएमयू के जीवीसी श्री मनीष जैन और उनकी अर्धांगिनी श्रीमती ऋचा जैन को ज्ञानमती माताजी ने स्मृतिचिन्ह देकर मंगल आशीर्वाद दिया। ब्रह्मचारी ऋषभ शास्त्री के कुशल संचालन और विधिपूर्वक सिद्ध चक्र महामंडल विधान के समापन पर माताजी ने कर कमलों से उन्हें स्मृतिचिन्ह प्रदान कर सम्मानित किया। पीठादीश्वर स्वस्ति रविंद्रकीर्ति जी का कुलाधिपति श्री सुरेश जैन ने स्मृतिचिह्न प्रदान कर सम्मानित किया। समस्त लुहाड़िया परिवार और सदस्यों को उत्तरोत्तर उन्नति हेतु माताजी ने ससंघ खूब आशीर्वाद दिया। इस दौरान कुलाधिपति श्री सुरेश जैन ने भाव विभोर होकर माताजी के चरणों में भजन अर्पित किया-मांगूं मैं क्यों, किसी से,कोई देगा क्या?, मुझे देती है मेरी माँ, मुझे दोनों हाथ से, जिसे सुनकर वातावरण भक्तिमय हो गया। इसके बाद कुलाधिपति और फर्स्ट लेडी वीना जैन ने ज्ञानमती माताजी के चरणों में चंदन अर्पित किया।

नैक- ए ग्रेड प्राप्ति पर आला प्रबंधन को दी बधाई

आर्यिका 105 चंदनामती माताजी ने विश्वविद्यालय के नैक- ए ग्रेड प्राप्ति पर आला प्रबंधन को बधाई दी। गौरतलब है कि गणिनीप्रमुख आर्यिका शिरोमणी ज्ञानमती माताजी का शाम को 3 बजे तीर्थंकर महावीर विश्वविद्यालय से विहार हो गया। विश्वविद्यालय के मैनेजमेंट कॉलेज टिमिट में सांध्यकालीन भव्य आरती होगी। माता जी ससंघ रात्रि विश्राम के बाद टिमिट से ही अयोध्या को कूच कर जाएगी।

पूजा में अष्टद्रव्यों की महती भूमिका रू प्रतिष्ठाचार्य

ब्रह्मचारी विधानाचार्य श्री ऋषभ शास्त्री ने सिद्ध चक्र महामंडल विधान के अंत में विश्वशांति हेतु महायज्ञ और हवन करने के दौरान बताया, पूजा में अष्टद्रव्यों की महती भूमिका है। जन्म के लिए, उत्तम स्वास्थ्य हेतु और शुचिता पाने के लिए जल बहुत जरूरी होता है। अतः जन्म, जरा और मृत्यु से हमें मुक्त करो, इस भाव से जल अर्पित किया जाता है।पूजा में स्वस्तिक इसलिए बनाया जाता है ताकि तीन लोक और वज्र लगाकर नरक,तिर्यंच गति,देव गति,मनुष्य गति से पार पाने की आराधना कर सके। प्रथमानुयोग, चरणानुयोग, द्रव्यानुयोग का अध्ययन करने से सम्यक ज्ञान, सम्यक चारित्र और सम्यक दर्शन प्राप्त होता है। एक कथा सुनाई, जिसमें दो गरीब व्यक्ति, देवपद और मित्र शिखरजी गए, पर उनके पास चढ़ाने के लिए चावल नहीं थे,तो उन्होंने मक्के के दाने चढ़ाए और हर टोंक पर मक्के के दाने चमत्कारिक रूप से मोती बनते जा रहे थे। महत्वपूर्ण यह नहीं, आपने क्या अर्पित किया। जो भी कुछ अर्पित करो। अच्छे भावों से करो।

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