सिस्टम की लापरवाही : कहीं उग्र न हो जाए हेलंग का घास छीनने का मुद्दा
-दिनेश शास्त्री
सीमांत चमोली जिले के हेलंग में टीएचडीसी के डंपिंग जोन से स्थानीय लोगों द्वारा घास यानी चारा पत्ती लाने का मामला जिले की सरहद से बाहर निकल कर यहां राजधानी में चर्चा का विषय बन गया है।
जल, जंगल, जमीन और सांस्कृतिक अस्मिता के मुद्दे को लेकर बने उत्तराखंड में इस मुद्दे का अचानक विमर्श के केंद्र में आना काफी संवेदनशील हो गया है। बीती 15 जुलाई को हुई घटना की प्रतिक्रिया में मंगलवार को चमोली के कर्णप्रयाग सहित अल्मोड़ा और देहरादून में भी अनुगूंज सुनाई दी।
कर्णप्रयाग में विरोध प्रदर्शन : नहीं सहेंगे, हक-अधिकारों का दमन 15 जुलाई को हेलंग (जोशीमठ) में बिजली परियोजना कंपनी की शह पर सीआईएसएफ़ और पुलिस ने स्थानीय महिलाओं से घास का गट्ठर छीना और उन्हें थाने ले गए। छह घंटे तक उन्हें भूखे प्यासे रख कर बाद में चालान कर छोड़ा गया था।
मंगलवार को दर्ज हुई प्रतिक्रिया में कमोबेश सभी जगहों पर इसी अंदाज में कहा गया कि इस तरह का दमन कतई स्वीकार नहीं किया जा सकता। आज कर्णप्रयाग समेत प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में की गई प्रतिकार सभा में इस मुद्दे को लेकर जहां सरकार को आड़े हाथ लिया गया वहीं दोषी पुलिस और सीआईएसएफ कर्मियों के विरुद्ध कार्यवाही की मांग भी की गई।
वैसे अगर देखा जाए तो मामला इस कदर नहीं था कि राजधानी तक पहुंचता, लेकिन स्थानीय स्तर पर प्रशासन की उदासीनता और अपेक्षाकृत कम संवेदनशीलता से यह प्रकरण विमर्श का विषय बन गया है।
एक ओर सरकार घसियारी योजना का ढोल पीट कर घास चारे का इंतजाम करने में जिंदगी खपा देने वाली महिलाओं की सहानुभूति बटोरने का प्रयास कर रही है, दूसरी ओर अपने पारंपरिक चारागाह से घास का इंतजाम कर रही महिलाओं को न सिर्फ निर्दयी पतरोल की मानिंद हतोत्साहित कर रही है बल्कि पुलिस केस दर्ज कर अपमानित भी कर रही है। सवाल यह है कि क्या यह मामला स्थानीय स्तर पर ही नहीं निपटाया जा सकता था? घास चारा ला रही महिलाओं को हिदायत दी जा सकती थी। पटवारी न सही तहसीलदार या एसडीएम भी मामले में हस्तक्षेप कर तिल का ताड़ बनाने से रोक सकते थे लेकिन प्रशासन जब संवेदनशील हो, तभी यह सब हो सकता है।
मान लिया कि हेलंग के ज्यादातर लोगों को सरकार और जलविद्युत परियोजना ने मैनेज कर दिया हो, ग्राम सभा को विकास का लुभावना सपना दिखा दिया हो और उससे बढ़ कर देश के विकास की दुहाई देकर लोगों को जलविद्युत परियोजना के लिए तैयार कर दिया गया लेकिन डंपिंग जोन के बहाने जो चारागाह छीना गया है, उसकी भरपाई तो नहीं हो सकती है, ऊपर से पुलिस की बर्बरता ने सरकार को न सही जनमानस को शर्मसार तो किया ही है। आप सुन रहे हो न धामी जी!
मामला अब हाथ से निकलता दिख रहा है। प्रदेश के एक नहीं दर्जनों जनसंगठनों ने प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए दो टूक कहा है कि हेलंग (चमोली) में पुलिस प्रशासन द्वारा घास ले जा रही महिलाओ से घास छीन कर उन्हें गिरफ्तार करने की घटना को शर्मनाक और उत्तराखंडी अस्मिता व स्वाभिमान के लिए बड़ी चुनौती है। प्रदेश सरकार से पूरे मामले की जांच कराने की मांग भी इसके साथ ही तेज हो गई है।
अल्मोड़ा में उपपा प्रमुख पी. सी. तिवारी ने इस घटना में शामिल विद्युत परियोजना अधिकारियों, पुलिस प्रशासन व सुरक्षा बलों के खिलाफ सख़्त कार्रवाई करने की सरकार से मांग की है। उनका कहना था कि अपने परंपरागत चारागाहों से घास ले जाने पर जिस तरह पुलिस प्रशासन के द्वारा लुटेरी जल विद्युत परियोजनाओं की हिमायत की जा रही है वो असहनीय है।
राज्य में इस तरह की घटनाएं हमें मुजफ्फरनगर कांड की अपमान जनक घटनाओं की याद दिलाती है। उन्होंने धामी सरकार से घटना की निष्पक्ष जांच कर दोषी पुलिस प्रशासन व विद्युत परियोजना के अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की मांग की हैं। कुछ इसी अंदाज में उत्तराखंड महिला मंच ने भी राज्य सरकार को घेरा है। जाहिर है यदि धामी सरकार लोगों के गुस्से को शांत करने जल्द हरकत में न आई तो मामला ज्यादा बिगड़ सकता है। इस मामले को सिर्फ इसलिए हल्के में नहीं लिया जा सकता कि बदरीनाथ क्षेत्र से भाजपा का विधायक नहीं जीता। लिहाजा चुनौती ज्यादा गंभीर हो सकती है।