खुशियों की प्रतीक दीपावली पर खुशियां ही खुशियां बिखेरें, ग्रीन पटाखे आजमायें
देहरादून, 2 अक्टूबर (उत्तराखण्ड हिमालया टीम)। करोड़ों सनातन धर्मावलम्बियों के लिये दीपावली एक खुशियों का प्रतीक होती है। इसीलिये इस अवसर पर सारा भारतवर्ष रंगविरंगी रोशनियों से जगमगा उठता है और अतिशबाजी के साथ लोगों की खुशियां धरती से लेकर आसमान में भी छा जाती हैं। लेकिन साथ ही करोड़ों लोगों को अपने स्वास्थ्य के रूप में खुशियां मनाने के इस आतिशी तरीके की कीमत भी चुकानी होती है। खास कर दीपावली के अवसर पर सांस रोगियों की जान आफत में पड़ जाती है। इसीलिये उत्तर प्रदेश, हरियाणा, प.बंगाल, महाराष्ट्र, राजस्थान, पंजाब और उड़ीसा राज्य अब तक प्रदूषणकारी परम्परागत पटाखों पर प्रतिबंध लगा चुके हैं और समस्या से चिंतित सुप्रीम कोर्ट ने लापरवाही के लिये सीधे तौर पर राज्यों के मुख्य सचिवों को जिम्मेदार ठहरा दिया है। चूंकि लोगों की खुशियों के प्रतीक इस त्योहार पर अपनी खुशियों का इजहार करना भी जरूरी ही है, इसलिये राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी संस्थान ने कम प्रदूषण वाले ग्रीन पटाखे इजाद किये हैं, जोकि बाजार में आ चुके हैं। लोगों को इस बार जरूर ग्रीन पटाखे आजमाने चाहिये। इनके प्रयोग से वायु प्रदूषण को बढऩे से रोका जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट अपने कई आदेशों में पटाखों को लेकर सख्त लहजे में सरकारों को चेता चुका है। सभी राज्यों के मुख्य सचिवों और गृह सचिवों को सख्त निर्देश जारी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही कहा था कि पटाखों पर प्रतिबंध पर अमल में कोई राज्य चूक करता है तो उस राज्य के चीफ सेक्रेटरी और होम सेक्रेटरी जिम्मेदार होंगे। ग्रीन पटाखों में वायु प्रदूषण को बढ़ावा देने वाले हानिकारक रसायन नहीं होते हैं। इनमें एल्युमिनियम, बैरियम, पौटेशियम नाइट्रेट और कार्बन का प्रयोग नहीं किया जाता है अथवा इनकी मात्रा काफी कम होती है। ये भले ही आकार में छोटे हों, पर इनमें फुलझड़ी, फ्लावर पॉट से लेकर स्काईशॉट जैसे सभी पटाखे मिलते हैं।
दरअसल ग्रीन पटाखे राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (NEERI) की खोज हैं ।नीरी वैज्ञानिक औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के अधीन एक सरकारी संस्था है। ग्रीन पटाखे आवाज से लेकर दिखने तक में पारंपरिक पटाखों जैसे ही होते हैं, लेकिन इनसे नाइट्रोजन और सल्फर जैसी गैसें भारी मात्रा में नहीं निकलतीं है और ये सामान्य पटाखों की तुलना में 40 से 50 फीसदी तक कम हानिकारक गैस पैदा करते हैं। पटाखों के मुकाबले ग्रीन पटाखों से हानिकारक धुआं और पदार्थ (गैसें) कम निकलते हैं, जिससे 40 से 50 प्रतिशत तक प्रदूषण घटाया जा सकता है। देश में कुछ समय पहले तक कुछेक संस्थाएं ही इन्हें बना रही थीं। लेकिन अब अदालती सख्ती और सरकारी प्रयासों से इनका बड़े स्तर पर उत्पादन हो रहा है। इन्हें सरकार द्वारा पंजीकृत दुकानों से खरीदा जा सकता है।
ये पटाखे जलने के बाद पानी के कण पैदा करते हैं, जिससे आतिशबाजी में निकलने वाली हानिकारक गैसों के कण घुल जाते हैं और इससे धूल के कण ऊपर नहीं उठते। नीरी ने इन्हें सेफ वॉटर रिलीजर का नाम दिया है। इन पटाखों को स्टार क्रैकर कहा गया है। इनमें ऑक्सिडाइजिंग एजेंट का उपयोग होता है, जिससे पटाखे फोड़ने के बाद सल्फर और नाइट्रोजन कम मात्रा में निकलते हैं। इसके लिए इन पटाखों में खास रसायन डाले जाते हैं।
इस मामले में चिंतित सर्वोच्च न्यायालय ने दो-टू कहा है कि जो पटाखे प्रतिबंधित (बेरियम सॉल्ट आदि केमिकल्स वाले पटाखे) हैं, उसे त्योहार के नाम पर चलाने की इजाजत नहीं दी जा सकती क्योंकि त्योहार के नाम पर बैन पटाखे चलाकर किसी और के स्वास्थ्य के अधिकार में दखल देने का किसी को भी अधिकार नहीं है। स्वास्थ्य का अधिकार अनुच्छेद-21 के तहत जीवन के अधिकार में शामिल है। किसी को भी यह अधिकार नहीं है कि वह दूसरे के जीवन के अधिकार के साथ खेले। खासकर बुजुर्ग और बच्चों के स्वास्थ्य के साथ खेलने का किसी को अधिकार नहीं। सभी राज्यों के मुख्य सचिवों और गृह सचिवों को सख्त निर्देश जारी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा था कि पटाखों पर प्रतिबंध पर अमल में कोई राज्य चूक करता है तो उस राज्य के चीफ सेक्रेटरी और होम सेक्रेटरी जिम्मेदार होंगे।