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ग्रीन हाइड्रोजन आर्थिक विकास और नेट-जीरो लक्ष्य के लिए होगी महत्वपूर्ण साबित

–उषा रावत —

हार्नेसिंग ग्रीन हाइड्रोजन: अपरचुनिटीज फॉर डीप डीकार्बोनाइजेशन इन इंडिया शीर्षक के तहत जारी नीति आयोग की नई रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि आने वाले दशकों में ग्रीन हाइड्रोजन भारत के आ​र्थिक विकास और औद्योगिक कार्बन उत्सर्जन के नियंत्रण को काफी हद तक बढ़ावा दे सकता है। यह रिपोर्ट नीति आयोग के वाइस चेयरमैन सुमन बेरी और नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत द्वारा जारी की गई।

नीति आयोग और आरएमआई द्वारा संयुक्त रूप से तैयार यह रिपोर्ट इस बात को रेखांकित करती है कि ग्रीन हाइड्रोजन- जल के इलेक्ट्रोलिसिस के जरिये उत्पादित अक्षय ऊर्जा- उर्वरक, रिफाइनिंग, मेथनॉल, मैरीटाइम ​शिपिंग, लौह एवं इस्पात और परिवहन जैसे क्षेत्रों में कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए महत्वपूर्ण होगा। इसमें आगे कहा गया है कि हाइड्रोजन के मामले में उभरती वैश्विक सरगर्मी को देखते हुए भारत न केवल कम कार्बन उत्सर्जन वाली अर्थव्यवस्था बनने बल्कि देश के लिए ऊर्जा सुरक्षा सुनि​श्चित करने और आर्थिक विकास को गति देने के लिए भी इस अवसर का फायदा उठा सकता है।

नीति आयोग के वाइस चेयरमैन श्री सुमन बेरी ने इस अवसर पर अपने संबोधन में कहा, ‘इस रिपोर्ट का एक महत्वपूर्ण संदेश यह है कि ग्रीन हाइड्रोजन औद्योगिक प्रक्रियाओं में जीवाश्म ईंधन का विकल्प प्रदान कर सकता है।’ उन्होंने आगे कहा, ‘नीतिगत स्तर पर अगले कदमों के तहत नियमों/ विनियमों और मूल्य के बीच सही संतुलन स्थापित करने पर ध्यान दिया जा सकता है।’

उन्होंने ऊर्जा सुरक्षा के दृष्टिकोण से ग्रीन हाइड्रोजन के महत्व पर प्रकाश डाला और ग्रीन हाइड्रोजन की लागत को कम करने के लिए उसके प्रसार और बड़े पैमाने पर उत्पादन करने की आवश्यकता के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि सही नीतियों के कारण भारत सबसे कम लागत वाले उत्पादक के रूप में उभर सकता है और 2030 तक ग्रीन हाइड्रोजन का मूल्य 1 डॉलर प्रति किलोग्राम तक कम किया जा सकता है।

हालांकि हाइड्रोजन का उत्पादन कई स्रोतों से किया जा सकता है, कम लागत वाली नवीकरणीय बिजली में भारत के विशिष्ट लाभ का मतलब है कि ग्रीन हाइड्रोजन सबसे अधिक लागत प्रभावी रूप में उभरेगा। रिपोर्ट में निष्कर्ष निकाला गया है कि भारत में 2050 तक हाइड्रोजन की मांग चार गुना से अधिक बढ़ सकती है जो वैश्विक मांग का लगभग 10 प्रतिशत है। दीर्घाव​​धि मेंइस मांग का अधिकांश हिस्सा ग्रीन हाइड्रोजन से पूरा किया जा सकता है। भारत में ग्रीन हाइड्रोजन बाजार का आकार 2030 तक 8 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है।

आरएमआई के प्रबंध निदेशक क्ले स्ट्रेंजर ने अवसरों को उजागर करते हुए कहा कि ग्रीन हाइड्रोजन में काफी वैश्विक रुचि दिख रही है। तमाम देश इसके लिए रणनीति तैयार करने के पहले चरण में हैं और इसी सेअंततः हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था के विजेताओं और हारने वालों का फैसला होगा। यह रिपोर्ट भारत में नीति निर्माण के लिए एक संदर्भ बन सकती है।

यह रिपोर्ट ग्रीन हाइड्रोजन के फायदे की ओर ले जाने वाले मार्गों को उजागर करती है:

निकट अवधि के नीतिगत उपाय ग्रीन हाइड्रोजन की मौजूदा लागत को कम कर सकते हैं ताकि इसे मौजूदा ग्रे हाइड्रोजन (प्राकृतिक गैस द्वारा उत्पादित हाइड्रोजन) की कीमतों के मुकाबले प्रतिस्पर्धी बनाया जा सके। मध्याव​धि मूल्य लक्ष्य ग्रीन हाइड्रोजन को हाइड्रोजन श्रेणी में अधिक प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए उद्योग को मार्गद​र्शित करने के उद्देश्य से निर्धारित किए जाने चाहिए।

सरकार औद्योगिक क्लस्टरों की पहचान और वित्त पोषण में संबद्ध व्यावहारिक अंतर को पाटकर, नियमों एवं लक्ष्यों को लागू करते हुए निकट भविष्य में बाजार के विकास को प्रोत्साहित कर सकती है।

अनुसंधान एवं विकास और इलेक्ट्रोलाइजर जैसे उपकरणों के विनिर्माण में मौजूद अवसरों को पहचानने की आवश्यकता है। वर्ष 2028 तक 25  गीगाहर्ट्ज विनिर्माण क्षमता हासिल करने के लिए इलेक्ट्रोलाइजरों को उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना के साथ उचित रूप से प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

वै​श्विकस्तर पर प्रतिस्पर्धी ग्रीन हाइड्रोजन उद्योग से ग्रीन हाइड्रोजन और हाइड्रोजन-एम्बेडेड लो-कार्बन उत्पादों जैसे ग्रीन अमोनिया और ग्रीन स्टील का निर्यात हो सकता है। इससे 2030 तक देश में 95 गीगावॉट इलेक्ट्रोलिसिस क्षमता हासिल होगी।

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