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दुरूह -दुर्गम हिमालयी क्षेत्रों में खुशहाली लाने जा रहीं कुटकी जैसी जड़ी-बूटियां, देशवासियों को मिलेंगी जीवन रक्षक संजीवनियां

-थराली से हरेंद्र बिष्ट-

तो अब आने वाले सालों में उच्च हिमालई क्षेत्रों के करीब बसे  ग्रामीणों की आजीविका का मुख्य स्रोत बहु उपयोगी कुटकी जैसी जड़ी-बूटियां होगी! जिस तेजी के साथ थराली विधानसभा क्षेत्र के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में कुटकी के कृषिकरण की ओर किसानो का रूझान बढ़ है उसे देख लगता है कि आने वाले वर्षों में पलायन का दंश झेल रहे ऊच्च हिमालई क्षेत्र के ग्रामीण आत्म निर्भर ही नही बनेंगे बल्कि राज्य की आर्थिकी को भी मजबूती प्रदान करने में अपनी अहम भूमिका अदा कर पाएंगे।

दशकों से उच्च हिमालई क्षेत्रों के निकट ढाई सौ से 4 हजार मीटर की ऊंचाई पर बसें उत्तराखंड के गांवों में गेहूं, फावर, पल्टी, गेहूं, राजमा, चौलाई आदि फसलों का उत्पादन कृषि होता आ रहा है। इनसे ग्रामीणों को आर्थिक लाभ नही होने एवं जंगली जानवरों का खेती पर लगातार दबाव बनने के कारण मजबूरन इन गांवों के ग्रामीणों को अपनी आजीविका को चलाने के लिए मैदानी क्षेत्रों की ओर रूख करना पड़ रहा था। जिससे गांव विरान होने लगे थे।

पिछले कुछ वर्षों से सरकार एवं संस्थाओं ने इन क्षेत्रों की मिट्टी, जलुवाय आदि को देखते हुए परंपरागत खेती से स्थानीय किसानों को हटा कर कुटकी जैसी मूल्यवान जड़ी का कृषिकरण करने को प्रोत्साहित करने का प्रयास किया और आज इसमें वें काफी हदतक सफल भी हुए हैं।

वर्तमान में देवाल ब्लाक के घेस, हिमनी, बलांण, वांण के साथ ही नंदानगर के सुतोल, कनोल, रामणी, प्राणमती आदि गांवों में कुटकी का पूरी तरह से कृषिकरण हों चुका। ग्रामीण बेहतरीन आर्थिक लाभ को देखते हुए कुटकी की ओर लगातार आकृषित हो रहे हैं।
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घेस गांव के कुटकी के व्यवसाई पुष्कर सिंह बिष्ट ने बताया कि पिछले वर्ष अकेले उन्होंने अन्य सहयोगियों मोहन सिंह,लक्ष्मण सिंह,मान सिंह के सहयोग से दोनों ब्लाकों में करीब 15 टन कुटकी 12 से 13 रूपए प्रति किलो की दर से खरीदी। जबकि अन्य व्यवसायों ने भी कुटकी की खरीदारी की। बताया कि इस बार कुटकी का उत्पादन पिछले वर्ष की अपेक्षा काफी अधिक होने का अनुमान है। अनुमान के अनुसार पिछले वर्ष दोनों ब्लाकों से 2 करोड़ रुपए से अधिक की कुटकी का व्यवसाय हुआ। जबकि इस साल इससे अधिक का व्यापार होने का अनुमान है।
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*कुटकी में कई रोगो के उपचार की क्षमता है  निहित।*

कुटकी बुखार, खांसी-जुकाम,शरीर के चर्म रोगों,पेट के कीड़ो से निजात दिलाने,कब्ज दूर करने सहित अन्य बिमारियों,लीवर,हार्ड,किटनी,टीबी, शूगर जैसी कई बिमारियों का लाजवाब इलाज हैं। आयुर्वेदिक चिकित्सा में इस जड़ी का अपने आप में लगातार महत्त्व बढ़ता जा रहा हैं। जिसके चलते प्रति वर्ष इसके मूल्य में वृद्धि होती जा रही हैं।
तों आने वाले वर्षों में उच्च हिमालई क्षेत्रों के करीब बसें ग्रामीणों की आजीविका का मुख्य स्रोत बहुउपयोगी कुटकी जैसी जड़ी-बूटियां हो सकेंगी।जिस तेजी के साथ थराली विधानसभा क्षेत्र के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में कुटकी के कृषिकरण की ओर किसानो का रूझान जिस तरह से बढ़ रहा है, उससे आशा बढ़ाने लगी हैं कि आने वाले समय में पलायन का दंश झेल रहे हिमालई क्षेत्र के ग्रामीण आत्म निर्भर ही नही बनेंगे बल्कि राज्य की आर्थिकी का मजबूत आधार भी बन सकते हैं।
दशकों से उच्च हिमालई क्षेत्रों के निकट ढाई सौ से 4 हजार मीटर की ऊंचाई पर बसें उत्तराखंड के गांवों में गेहूं,फावर,पल्टी, गेहूं,राजमा, चौलाई आदि बिना मुनाफा वाली फसलों का ही उत्पादन होता आ रहा था। इनसे ग्रामीणों को बहुत अधिक आर्थिक लाभ नही होने एवं जंगली जानवरों का खेती पर लगातार बढ़तें दबाव बनने के कारण मजबूरन इन गांवों के ग्रामीणों को अपनी आजीविका को चलाने के लिए यहां से अन्य क्षेत्रों की ओर रूख करने पर मजबूर होना पड़ रहा था। जिससे लगता गांव विरान होने लगें थें। पिछले कुछ वर्षों से सरकार एवं स्वंयम सेवी संस्थाओं ने इन क्षेत्रों की मिट्टी,जलुवाय आदि को देखते हुए परंपरागत खेती के साथ ही स्थानीय किसानों को कुटकी जैसी जड़ी का कृषिकरण करने को प्रोत्साहित करने का प्रयास किया और आज इसमें वें काफी हदतक सफल भी हुए हैं। वर्तमान में देवाल ब्लाक के घेस,हिमनी,बलांण, वांण के साथ ही नंदानगर के सुतोल,कनोल,रामणी, प्राणमती आदि गांवों के किसान कुटकी को पारंपरिक फसलों की तरह ही उत्पादित करने लगे हैं। जिससे उन्हें काफी अच्छा आर्थिक लाभ मिल रहा हैं और कुटकी का उत्पादन तेजी से बढ़ रहा हैं
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*पिछले वर्ष दोनों ब्लाकों में दो करोड़ से अधिक की कुटकी का हुआ उत्पादन*

घेस गांव के कुटकी के व्यवसाई पुष्कर सिंह बिष्ट ने बताया कि पिछले वर्ष उन्होंने अन्य सहयोगियों मोहन सिंह,लक्ष्मण सिंह,मान सिंह के सहयोग से दोनों ब्लाकों में करीब 15 टन कुटकी 12 से 13 सौ रूपए प्रति किलो की दर से खरीदी थी। जबकि अन्य व्यवसायों ने भी कुटकी की खरीदारी की। बताया कि इस बार कुटकी का उत्पादन पिछले वर्ष की अपेक्षा काफी अधिक होने का अनुमान है। पिछले वर्ष दोनों ब्लाकों में 2 करोड़ रुपए से अधिक की कुटकी का व्यवसाय हुआ हैं। जबकि इस साल इससे काफी अधिक का व्यापार होने का अनुमान है।
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*कुटकी में कई रोगो से लड़नें की क्षमता है निहित।*

कुटकी जड़ी बुखार, खांसी-जुकाम,शरीर के चर्म रोगों,पेट के कीड़ो से निजात दिलाने,कब्ज दूर करने सहित अन्य बड़ी बिमारियों जैसे लीवर,हार्ड,किटनी,टीबी, शूगर जैसी बड़ी बिमारियों से लड़नें की बढ़ी क्षमता निहित हैं। आयुर्वेदिक चिकित्सा में इस जड़ी का अपने आप में लगातार महत्त्व बढ़ता जा रहा हैं। जिसके चलते प्रति वर्ष इसके मूल्य में वृद्धि होती जा रही हैं।

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