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पतंजलि विश्वविद्यालय में विदुषियों ने नाट्य शास्त्र की अवधारणाओं पर प्रकाश डाला

हरिद्वार। 28 जून (उहि )। पुनश्चर्या पाठ्यक्रम के 10वें दिन ब्रह्माण्ड की धुरी काशी एवं समृद्धि की नगरी मुम्बई से आये हुए संगीत विशेषज्ञों द्वारा कला, भारतीय शास्त्रीय संगीत एवं नाट्य शास्त्र की महत्वपूर्ण अवधारणाओं पर प्रकाश डाला गया। पतंजलि विश्वविद्यालय सभागार के रंगमंच पर संगीत की विदुषियों एवं अतिथि विद्वानों का स्वागत विश्वविद्यालय के प्रति-कुलपति प्रो. महावीर अग्रवाल, कुलानुशासिका साध्वी डॉ. देवप्रिया एवं कुलसचिव डॉ. पुनिया ने किया।

इस कार्यक्रम में पतंजलि विश्वविद्यालय के कुलगुरु स्वामी रामदेव ने विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों हेतु नाट्यकला के शिक्षण-प्रशिक्षण के लिए अतिथि वक्ताओं को समय-समय पर आने का आमंत्रण भी दिया। साथ सभागार मे बैठे सभी प्रतिभागियो को नाट्य शास़़्त्र के माघ्यम से कैसे रामायण और महाभारत को करके उसकी महिमा का गुण गान किया जाता था। प्राचीन काल मे नाट्य शास़्त्र ही ऐसा दर्शन था जिसके माघ्यम से मानव समाज को असानी से समझाया जा सकता था।
प्रथम सत्र को सम्बोधित करते हुए मुम्बई की डॉ. संध्या पुरेचा द्वारा नाट्यशास्त्र का विस्तार से परिचय दिया गया।

इस क्रम उन्होंने नाट्यशास्त्र के 11 अंगों, स्वर उत्पत्ति, दैवीय और मानुषी सिद्धि सहित विभिन्न प्रकार के भावों व रसों की सारगर्भित व्याख्या की। उपनिषद् का सन्दर्भ देते हुए उन्होंने कहा कि रस ही परब्रह्म है एवं वैदिक काल में विभिन्न उत्सवों पर भी नाट्य का प्रचलन था। एक कलाकार की विषेशता बताते हुए उन्होंने कहा कि अभिनयकर्त्ता को स्थिर ध्यान वाला, सत्वगुण से युक्त एवं जितेन्द्रिय होना चाहिए।

बनारस हिन्दू वि.वि. की संगीत विदुषी एवं संगीत प्रभाकर की उपाधि से अलंकृत प्रो. संगीता पण्डित ने अपने व्याख्यान में संगीत का शिक्षा, चिकित्सा एवं अनुसंधान के क्षेत्र में हो रहे नव्य प्रयोगों से प्रतिभागियों का मार्गदर्शन किया। उन्होंने संगीत को चेतना के विकास, सहनशीलता, संयम, अनुशासन, नैतिक व आध्यात्मिक मूल्यों का संवाहक बताया। प्रो. संगीता ने यजुर्वेद में वर्णित ‘तन्मे मनः शिवसंकल्पमऽस्तु’ का गायन कर सभी को शुभ संकल्प एवं विकल्प रहित संकल्प की उपयोगिता बताई। अपने उद्बोधन के क्रम उन्होंने प्रातः काल से रात्रि काल तक प्रयोग किये जाने वाले विभिन्न रागों की सम्मोहक प्रस्तुति दी। काशी से पधारे डॉ. इन्द्रमोहन चौधरी एवं श्री पंकज राय जी द्वारा भी प्रस्तुति दी गयी।

पुनश्चर्या पाठ्यक्रम के संयोजक प्रो. अग्रवाल एवं सह-संयोजिका डॉ. साध्वी देवप्रिया ने प्रतिभागियों को संगीत सरिता में स्नान कराने के लिए पतंजलि विश्वविद्यालय परिवार की ओर से आभार प्रकट किया एवं ऋषिद्वय के साहित्यों को उपहार स्वरूप प्रदान किया। आचार्यो में संस्कृत सम्भाषण की कला विकसित करने के उद्दे्ष्य से आचार्य गौतम जी द्वारा संस्कृत कक्षा का आयोजन भी किया गया। पुनश्चर्या पाठ्यक्रम में प्रो. के.एन.एस. यादव जी, श्री राकेष मित्तल, प्रो. पारन, प्रो. कटियार, स्वामी परमार्थदेव, डॉ. निर्विकार, स्वामी आर्शदेव सहित वि.वि. के विभिन्न संकायों के आचार्य एवं शोध छात्र उपस्थित रहे। सत्रों का सफल संचालन डॉ. निवेदिता एवं डॉ. आरती द्वारा किया गया।

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