चोरी की सूचना बीमा कम्पनी को तुरन्त न देने जरूरी नहीं
—उषा रावत —
उत्तराखण्ड राज्य उपभोक्ता आयोग ने चोरी की सूचना बीमा कम्पनी को तुरन्त न देने पर बीमा क्लेम निरस्त करना सही नहीं माना तथा बीमा कम्पनी की अपील निरस्त कर दी। जिला उपभोक्ता आयोग/फोरम, उधमसिंहनगर नेे वाहन चोरी के बीमा क्लेम को बीमा कम्पनी को सूचना देने के आधार पर खारिज करना उपभोक्ता सेवा में कमी मानते हुये बीमा कम्पनी को उपभोक्ता को 4 लाख 3 हजार 8 सौ रूपये का भुगतान का आदेश दिया था। इसमें 5 हजार वाद व्यय तथा 10 हजार मानसिक व आर्थिक क्षतिपूर्ति भी शामिल है। इसके अतिरिक्त बीमा कम्पनी को 7 प्रतिशत वार्षिक की दर से वाद दायर करने से भुगतान की तिथि तक का ब्याज भी भुगतान करने को आदेशित किया गया था। राज्य आयोग ने इस निर्णय व आदेश को बिल्कुल सही मानते हुये इसकी पुष्टि कर दी।
काशीपुर के होशियार सिंह की ओर से अधिवक्ता नदीम उद्दीन एडवोकेट द्वारा जिला उपभोक्ता फोरम उधमसिंहनगर में परिवाद दायर करके कहा गया था कि परिवादी ने वर्ष 2009 में स्वरोजगार हेतु एक महेन्द्रा बुलेरो खरीदी थी जिसका बीमा चोला मण्डलम एम0एस0जनरल इंश्योरेंस ंकं0लि0 से रू. 20419 का प्रीमियम भुगतान करके कराया। बीमा अवधि मे वाहन 21-08-2013 को चोरी होने पर सूचना पुलिस व बीमा कम्पनी को दी गयी जब वाहन पुलिस द्वारा काफी तलाश करने पर भी नहीं मिला तब परिवादी ने बीमा क्लेम दिलाये जाने हेतु कम्पनी के काशीपुर शाखा से निवेदन किया और सभी औपचारिकतायें पूर्ण की परन्तु परिवादी को न तो क्लेम दिया गया और न ही निरस्त करने की सूचना। इस पर उसने अपने अधिवक्ता नदीम उद्दीन एडवोकेट के माध्यम से नोटिस भिजवाया जिस पर भी कोई कार्यवाही न करने पर परिवाद दायर किया गया।
बीमा कम्पनी की ओर से कम्पनी के मुख्यालय में 163 दिन बाद वाहन की चोरी की सूचना देने को बीमा क्लेम निरस्त करने का आधार बताते हुये बीमा क्लेम खारिज करने का कथन किया।
जिला उपभोक्ता फोरम के तत्कालीन अध्यक्ष आर0डी0पालीवाल तथा सदस्या नरेश कुमारी छाबड़ा तथा सदस्य सबाहत हुसैन खान ने परिवादी के अधिवक्ता नदीम उद्दीन के तर्कों से सहमत हुये अपने निर्णय में लिखा कि बीमा की शर्त के अनुसार वाहन की चोरी के मामले में परिवादी द्वारा पुलिस को तुरन्त सूचना देनी थी। जिसमें कोई विलम्ब नहीं किया गया था। पुलिस द्वारा एफ.आई.आर. दर्ज करके मामले का अन्वेषण किया गया व वाहन तथा अपराधी का पता न लगने पर न्यायालय मेें अन्तिम रिपोर्ट (एफ.आर.) प्रेषित कर दी जिसे न्यायालय ने स्वीकार भी कर लिया। परिवादी अपराधी को दोष सिद्ध कराने हेतु न्यायालय में साक्ष्य तब देता जब अपराधी का पता चलता व उसके विरूद्ध पुलिस न्यायालय में आरोप पत्र भेजती व न्यायालय में अभियोजन चलता, परन्तु इन तथ्यों की जानकारी होने के बावजूद भी बीमा कम्पनी द्वारा परिवादी के क्लेम को खारिज करना सेवा में कमी माना जायेगा।
जिला उपभोक्ता फोरम ने बीमा कम्पनी को वाहन की बीमित धनराशि रू. तीन लाख अठासी हजार 7 प्रतिशत साधारण ब्याज सहित जो परिवाद दायर करने की तिथि 07-05-2015 से वास्तविक भुगतान की तिथि तक देय होगा, का भुगतान एक माह क अन्दर करने का आदेश दिया। साथ ही मानसिक क्षति के लिये रू. 10 हजार तथा वाद व्यय के लिये रू. 5 हजार का भी भुगतान करने का आदेश दिया।
बीमा कम्पनी ने इस आदेश के विरूद्ध अपील संख्या 65/2018 राज्य उत्तराखण्ड आयोग को कर दी। राज्य उपभोक्ता आयोग के अध्यक्ष जस्टिस डी.एस. त्रिपाठी तथा सदस्य उदय सिंह टोलिया की पीठ ने अपने निर्णय में इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के ओम प्रकाश तथा राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग के गुरशिन्दर सिंह की रूलिग को लागू होना मानते हुये चोरी की सूचना बीमा कम्पनी को तुरन्त न देने पर बीमा क्लेम निरस्त करना सही नहीं माना तथा जिला उपभोक्ता फोरम के वाहन चोरी के बीमा क्लेम को बीमा कम्पनी को सूचना देने के आधार पर खारिज करना उपभोक्ता सेवा में कमी मानते हुये बीमा कम्पनी को उपभोक्ता को भुगतान के आदेश को पूर्णतः सही माना। राज्य आयोग ने स्पष्ट लिखा कि जिला आयोग/फोरम का निर्णय व आदेश सबूतों की सही विवेचना के आधार पर है तथा सही कारणों पर आधारित है और कोई अवैधता नहीं है तथा इस आयोग के हस्तक्षेप योग्य नहीं है। अपील निरस्त होने योग्य है।