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भारत की राजनीति के युग पुरुष और सर्वहारा के मसीहा थे ज्योति बसु

 

अनन्त आकाश

पवन कुमार चामलिंग  के बाद सबसे अधिक समय तक किसी राज्य के मुख्यमंत्री रहने वाले  महान कम्युनिस्ट नेता ज्योति बसु का आज  जन्म दिन  देश का सर्वहारा मन रहा है।  23 साल तक पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री रहने के साथ-साथ ज्योति बसु लगभग पांच दशक तक देश के राजनीतिक परिदृश्य पर भी छाए रहे।  बसु के व्यक्तित्व का ही व्यक्तित्व का ही करिश्मा था कि वैचारिक भिन्नता के बावजूद विपक्ष के सभी नेता उनका लोहा मानते थे।  उन्होंने बंगाल के सीएम रहते हुए पंचायती राज और भूमि सुधार की दिशा में ऐतिहासिक काम किए हैं।

उनका व्यक्तित्व आज की राजनीती के लिए एक प्रेरक प्रसंग ही है।  आज के दौर में जब कुर्सी की खातिर बेटा बाप का सगा नहीं ।   ज्योति बसु को दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के प्रधानमंत्री की कुर्सी सादर मिल रही थी मगर उन्होंने पार्टी के आदेश को प्रधानमंत्री पद के अनुरोध से अधिक वरीयता दी. गठबंधन की राजनीति के तहत जब उन्हें 1996 में संयुक्त मोर्चा सरकार का प्रधानमंत्री बनने का प्रस्ताव दिया गया तो उनकी पार्टी ने इस पर सहमति नहीं दी और वह सर्वसम्मत नेता होते हुए भी प्रधानमंत्री नहीं बने और उन्होंने अपनी पार्टी के फैसले को सिरोधार्य रखा।

ज्योति बसु अपने समय के महानतम कम्युनिस्ट पार्टी के नेता के तथा देश की धर्मनिरपेक्षता तथा जनतांत्रिक पध्दति पर विश्वास करने वाले  लोकप्रिय नेताओं में से रहे हैं ।   कामरेड बसु  न केवल देश अपितु विश्व के कदावर नेताओं की श्रेणी में रहे हैं ।   ऐसा व्यक्ति कम मिला करते हैं जिनका जिनका कुछ भी कहना मायने रखता था ।तानाशाही से संघर्ष करते हुऐ उनके नेतृत्व में पश्चिम बंगाल में माकपा की अगुवाई वाली वामपंथी सरकार 1977में बनी जो कि पूरे 34 साल चली जिसका नेतृत्व उन्होंने 23 साल बतौर मुख्यमंत्री रहते हुऐ किया । उम्र एवं स्वास्थ्य कारणों से कमान कामरेड बुध्ददेव भट्टाचार्य को सभालनी पड़ी ।

ज्योति बसु का जन्म पूर्वी बंगाल (अब बांग्लादेश में) के एक समृद्ध मध्यवर्गीय परिवार में 8 जुलाई 1914 को हुआ था. उन्होंने कलकत्ता के सेंट जेवियर्स स्कूल से इंटर पास करने के बाद 1932 में प्रेसीडेन्सी कॉलेज से अंग्रेजी में ऑनर्स किया. साल1935 में वह कानून की पढ़ाई करने के लिए इंग्लैंड गए. पांच साल बाद वह भारत लौटकर राजनीति की राह चुनी. उन्होंने 1930 में ही कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया की सदस्यता ले ली थी।

ज्योति  बसु रेल कर्मचारियों के आंदोलन में शामिल होने के बाद पहली बार में चर्चा में आए। 1957 में पश्चिम बंगाल विधानसभा में वे विपक्ष के नेता चुने गए . 1967 में बनी वाम मोर्चे के प्रभुत्व वाली संयुक्त मोर्चा सरकार में ज्योति बसु को गृहमंत्री बनाया गया . 1977 के चुनाव में जब वाम मोर्चा को विधानसभा में पूर्ण बहुमत मिला तो ज्योति बसु बंगाल में मुख्यमंत्री पद के सर्वमान्य उम्मीदवार के तौर पर उभरे और  इसके बाद उन्होंने लगातार 23 साल तक सत्ता की कमान अपने हाथों में रखी।

ज्योति बसु और  हरकिशन सिंह सुरजीत देश में पहली धर्मनिरपेक्ष ,जनतांत्रिक सरकार के सूत्रधार थे उनके रहते साम्प्रदायिक ताकतें  मुख्य धारा में आ नहीं   पायीं ।आज भले ही वामपंथी सरकार के बारे कोई कुछ भी आरोप लगाये या टिप्पणी करे किन्तु कामरेड ज्योति बसु तथा बुध्ददेव भट्टाचार्य के नेतृत्व में पश्चिम बंगाल में असंख्य जनहित के कार्य हुऐ जिससे वहाँ की जनता के जीवन स्तर में क्रान्तिकारी बदलाव आया  तथा लाखों लाख गरीब परिवारों में निशुल्क भूमि वितरण का कार्य भी सफलता से पश्चिम बंगाल ,त्रिपुरा तथा केरल वाममोर्चा सरकारों ने किया।उतना  आज की सरकारें नहीं कर सकती हैं । क्योंकि उनके पास लफ्फाजी के सिवाय जनता के लिए कोई एजेंडा हु नहीं है । वामपंथी सरकार की विदाई के बाद पश्चिम बंगाल तथा त्रिपुरा की जनता काफी कष्टों से गुजर रही जिससे उभरने के लिए वहाँ पार्टी निरन्तर जुझ रही है ।अब तक सैकडो़ पार्टी कार्यकर्ताओं ने शहादतें दी संघर्ष जारी है ।

 

बसु सरकार के दौरान कई उल्लेखनीय काम हुए हैं. इनमें भूमि सुधार का काम प्रमुख रहा है, जिसके तहत जमींदारों और सरकारी कब्जे वाली जमीनों का मालिकाना हक हक भूमिहीन किसानों को दिया गया. पंचायती राज और भूमि सुधार को प्रभावी ढंग से लागू कर निचले स्तर तक सत्ता का विकेन्द्रीकरण किया. ज्योति बसु के कामों का लोहा उनके विपक्षी भी मानते थे.

17जनवरी 2010 को कामरेड बसु हम सबको छोडकर चले गये  किन्तु उनके योगदान को सदैव कम्युनिस्ट आन्दोलन  सहित देश तथा विश्व की शान्ति तथा मुक्तिकामी जनता याद करती रहेगी । मृत्यु के पश्चात् उन्होंने अपनी देह को मेडिकल कॉलेज को दान किया ताकि वह मृत्यु के बाद भी लोगों और ख़ास कर नयी पीढ़ी के काम आ सकें।

 (लेखक मार्क्सवादी पार्टी की देहरादून महानगर इकाई के सचिव हैं )

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