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गढ़वाल से इलाहाबाद हाइकोर्ट  के जज बनने वाले पहले वकील थे जस्टिस केशव चंद्र धूलिया

न्यायमूर्ति केशव चन्द्र धूलिया की स्मृति में व्याख्यान की शुरुआत

 

उषा रावत

कर्मभूमि फाउंडेशन उत्तराखंड ने न्यायमूर्ति केशव चंद्र धूलिया की स्मृति में एक वार्षिक कार्यक्रम आयोजित करने का निर्णय लिया है। कार्यक्रम का शीर्षक है – ‘‘न्यायमूर्ति केशव चंद्र धूलिया व्याख्यान एवं पुरस्कार वितरण समारोह’’। कार्यक्रम मेंएक प्रतिष्ठित न्यायविद्,न्यायाधीश या वरिष्ठ अधिवक्ता व्याख्यान देंगे और उत्तराखंड विश्वविद्यालयों और कॉलेजों के कानून स्नातकों के बीच आयोजित निबंध और वाद-विवाद प्रतियोगिता के विजेताओं को पुरस्कार दिए जाएंगे। फउंडेशन गझ़वाल की पत्रकारिता के पितामह पंडित भैरव दत्त धूलिया की स्मृति में पहले ही पत्रकारिता पुरस्कार शुरू कर चुका है। यह पहला पुरस्कार प्राप्त करने का सौभाग्य जयसिंह रावत को मिला है।

उल्लेखनीय है कि जस्टिस केशव चंद्र धूलिया का जन्म 13 नवंबर 1929 को जिला पौड़ी गढ़वाल के मदनपुर गांव में हुआ था। उनकी प्राथमिक शिक्षा उनके गांव के पास बनकांडी स्कूल में पूरी हुई। इसके बाद उन्होंने अपने गांव के पास मटियाली जैसे स्कूलों में प्रवेश मांगा लेकिन उन्हें प्रवेश देने से  इसलिये मना कर दिया गया। क्योंकि उनके पिता पंडित भैरव दत्त धूलिया एक प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी थे। लेकिन प्रिंसिपल श्री पीटर की सहानुभूति होने के कारण उन्हें पौड़ी गढ़वाल के ही चेलुसैंण में मिशनरी स्कूल में प्रवेश मिल सका।

 

बाद में, आजादी के बाद जब उनके पिता भैरवदत्त धूलिया जेल से रिहा हुए तो उन्होंने प्रसिद्ध इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक, स्नातकोत्तर और कानून की पढ़ाई की, जहाँ वे कई प्रतिष्ठित प्रोफेसरों और स्वतंत्रता सेनानियों के संपर्क में आये। वह स्वयं एक छात्र नेता थे और युवा राष्ट्र में आकांक्षी छात्रों के सभी उभरते मुद्दों पर मुखर और सबसे आगे रहते थे। वह स्थानीय अदालत में वकालत करने और उस जमाने के प्रसिद्ध साप्ताहिक समाचार पत्र ‘‘कर्मभूमि’’ के प्रकाशन में अपने पिता की मदद करने के लिए लैंसडाउन लौट आये।  कर्मभूमि समाचार पत्र का प्रकाशन ही आजादी के आन्दोलन को गति और दिशा देने के लिये 1939 में शुरू हुआ था। हालाँकि शादी के बाद उन पर अतिरिक्त पारिवारिक जिम्मेदारियाँ आ गईं और इसलिए उन्होंने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में कानून का व्यवसाय शुरू करने का साहस किया। वह एक छोटे स्टील ट्रंक के साथ इलाहाबाद शहर पहुंचे और उन्होंने शुरुआती वर्षों में संघर्ष किया। लेकिन इसके बावजूद, वह गढ़वाल के लोगों के साथ लगातार संपर्क में थे, जो उनसे मार्गदर्शन और मदद चाहते थे और शिक्षा बोर्ड कार्यालय, महालेखाकार कार्यालय, राजस्व बोर्ड कार्यालय, जो सभी इलाहाबाद में स्थित थे, के साथ अपने मुद्दों को हल करने के लिए जवाब देते थे। उनके विभिन्न मुद्दों के संबंध में संबंधित अधिकारियों को पत्र लिखते थे। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के ‘‘मुख्य स्थायी अधिवक्ता’’ बने और बाद में उन्हें ‘‘न्यायाधीश’’ के रूप में पदोन्नत किया गया। वह गढ़वाल से ऐसे पद पर पहुंचने वाले पहले वकील थे।

 

न्यामूर्ति केशव चन्द्र धूलिया ने कई उल्लेखनीय फैसले दिए। वह मुकदमों को तेजी से निपटारे के लिए जाने जाते थे। 15 जनवरी 1985 को दिल का दौरा पड़ने से उनकी आकस्मिक मृत्यु ने उनके परिवार, दोस्तों और प्रशंसकों के बीच एक गहरी रिक्तता छोड़ दी। वह इस धरती के सच्चे सपूत थे जो साधारण पृष्ठभूमि से निकलकर अपने धैर्य और कड़ी मेहनत से इतने ऊंचे पद तक पहुंचे। उन्होंने मानवीय गरिमा के लिए ईमानदारी, सच्चाई और चिंता की विरासत छोड़ी। जस्टिस केशव धूलिया स्मृति व्याख्यान माला में पहले वक्ता भारत के प्रधान न्यायाधीश जस्टिस चन्द्रचूड होंगे जिनका व्याख्यान 2 दिसम्बर को देहरादून में हो रहा है।

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