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स्थापना दिवस 21 जनवरी: जानिये एक खूबसूरत हिमालयी राज्य त्रिपुरा को


-जयसिंह रावत
पूर्वोत्तर राज्यों में से एक त्रिपुरा बांग्लादेश तथा म्यांमार की नदी घाटियों के बीच स्थित है। त्रिपुरा भी एक खूबसूरत हिमालयी राज्य होने के नाते यहां भी पर्यटन विकास की असीम सम्भावनाऐं हैं। 10,491.69 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र के साथ यह देश के सबसे छोटे राज्यांे मंे से एक है। लेकिन अपने प्राचीन इतिहास, सौंदर्य, पर्वतीय इलाकों की सुंदरता, हरियाली, संस्कृति, रहन सहन एवं परिवेश तथा अच्छे मौसम की वजह से इसे पर्यटन के क्षेत्र में आशातीत लाभ हो सकता है। इसके तीन तरफ बांग्लादेश और उत्तर-पूर्व में यह असम तथा मिजोरम से जुड़ा हुआ है। अगरतला त्रिपुरा प्रदेश की राजधानी है। त्रिपुरा का क्षेत्रफल 10,486 वर्ग किमी है और यह गोवा तथा सिक्किम के बाद भारत का तीसरा सबसे छोटा राज्य है। देश के बाकी हिस्से से अलग-थलग रहने, पहाड़ी भूभाग तथा जनजातीय आबादी के कारण त्रिपुरा में भी भारत के पूर्वाेत्तर क्षेत्रों की समस्याएं मौजूद हैं। इतिहासकार कैलाश चन्द्र सिंह के मुताबिक यह शब्द स्थानीय कोकबोरोक भाषा के दो शब्दों का मिश्रण ”त्वि और प्रा” से बना है। त्वि का अर्थ पानी और प्रा का अर्थ निकट होता है। ऐसा माना जाता है कि प्राचीन काल में यह समुद्र (बंगाल की खाड़ी) के इतने निकट तक फैला था कि इसे इस नाम से बुलाया जाने लगा।

इतिहास

त्रिपुरा का इतिहास बहुत पुराना और लंबा है। इसकी अपनी विशिष्ट जनजातीय संस्कृति और दिलचस्प लोकगाथाएं हैं। बंगाली और त्रिपुरी भाषा (कोक बोरोक) यहाँ मुख्य रूप से बोली जाती हैं। ऐसा माना जाता है कि राजा त्रिपुर, जो ययाति वंश का 39 वाँ राजा था, उनके नाम पर ही इस राज्य का नाम त्रिपुरा पड़ा। एक मत के अनुसार स्थानीय देवी त्रिपुर सुन्दरी के नाम पर इसका नाम त्रिपुरा पड़ा। यह हिन्दू धर्म की 51 शक्ति पीठों में से एक है। इस राज्य के इतिहास को ”राजमाला” गाथाओं और मुगलकालीन इतिहासकारों के वर्णनों से जाना जा सकता है। महाभारत और पुराणों में भी त्रिपुरा का उल्लेख मिलता है।

”राजमाला” के अनुसार त्रिपुरा के शासकों को ”फा” उपनाम से पुकारा जाता था जिसका अर्थ ”पिता” होता है। 14वीं शताब्दी में बंगाल के शासकों द्वारा त्रिपुरा नरेश की मदद किए जाने का भी उल्लेख मिलता है। त्रिपुरा की स्थापना 14वीं शताब्दी में हिन्दू धर्म अपनाने वाले ”माणिक्य” नामक इंडो-मंगोलियन आदिवासी मुखिया ने की थी। त्रिपुरा के शासकों को मुग़लों के बार-बार आक्रमणों का भी सामना करना पडा जिसमें आक्रमणकारियों को कम ही सफलता मिलती थी। कई लड़ाइयों में त्रिपुरा के शासकों ने बंगाल के सुल्तानों को हराया। 19वीं शताब्दी में ”महाराजा वीरचंद्र किशोर माणिक्य बहादुर” के शासनकाल में त्रिपुरा में नए युग का सूत्रपात हुआ। उन्होंने अपने प्रशासनिक ढांचे को ब्रिटिश भारत के नमूने पर बनाया और कई सुधार लागू किए। उनके उत्तराधिकारों ने 15 अक्तूबर, 1949 तक त्रिपुरा पर शासन किया। इसके बाद त्रिपुरा भारत संघ में शामिल हो गया। प्रारम्भ में यह भाग-सी के अंतर्गत आने वाला राज्य था और 1956 में राज्यों के पुनर्गठन के बाद यह केंद्र शासित प्रदेश बना। सन् 1972 में इसने पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त किया।

भूगोल

मध्य एवं उत्तरी त्रिपुरा एक पहाड़ी क्षेत्र है, जिसे पूर्व से पश्चिम की ओर चार प्रमुख घाटियाँ, धर्मनगर, कैलाशहर, कमालपुर और खोवाई काटती हैं। ये घाटियाँ उत्तर की ओर बहने वाली नदियों (जूरी, मनु एवं देव, ढलाई और खोवाई) द्वारा निर्मित हैं। पश्चिम और दक्षिण की निचली घाटियाँ खुली तथा दलदली हैं, हालांकि दक्षिण में भूभाग बहुत अधिक कटा हुआ और घने जंगलों से ढका है। उत्तर से दक्षिण की ओर उन्मुख श्रेणियाँ घाटियों को अलग करती हैं। धर्मनगर घाटी के पूर्व में ”जमराई त्लंग” की ऊँचाई 600 और 900 मीटर के बीच है। पश्चिम की ओर सखान त्लंग, लंगतराई और आर्थरमुरा पर्वतश्रेणियों की ऊंचाई घटते क्रम में है। सुदूर पश्चिम में स्थित पहाड़ी देवतामुरा की ऊँचाई सिर्फ़ 244 मीटर है।
संस्कृति और लोकजीवन
जनजातीय रीति-रिवाज, लोककथाएं और लोकगीत त्रिपुरा की संस्कृति के महत्त्वपूर्ण अंग हैं। दो प्रमुख वार्षिक उत्सव गडिया (अप्रैल) और कास (जून या जुलाई) हैं। इनमें पशुओं की बलि चढ़ाई जाती है। राज्य में हर समुदाय का अपना नृत्य है, जैसे रियांग का होजागिरि, त्रिपुरी का गडिया, झूम, मालमिता, मसक, सुमनी और लेबांग बूमनी, चकमा का बीजू, लुसाई का केर और वेल्कम, मलसुम का हाई-हाक, गारो का वंगाला, मोग का संगरैका चिमिथांग, पडिशा और अभंगमा, कटई और जमतिया का गडिया, बंगाली समुदाय का गंजन, धमैल, सरी और रबींद्र संगीत, मणिपुरी समुदाय का बसंत राश और पुंगचलाम, प्रमुख संगीत वाद्य खंब, बाँसुरी, लेबांग, सरिंदा, दोतारा और खेंगरोंग हैं। प्रख्यात संगीतकार सचिन देव बर्मन और राहुल देव बर्मन का जन्म इसी राज्य में हुआ।

त्रिपुरा की जनजातियां

त्रिपुरा तीन ओर से बांगलादेश से घिरा है और इसका 60 फीसदी वनों से घिरा है। त्रिपुरा का यह पहाड़ी भाग ही आदिवासी क्षेत्र है। यहां की जनजातियों की आबादी 19 पर्वतीय इलाकों में बसी हुई है। मोटे तौर समूचे राज्य की आबादी का 31 प्रतिशत हिस्सा जनजातियों का है। नृवंश विज्ञानियों के अनुसार इस राज्य की ज्यादातर जनजातियां तिब्बती-बर्मी मूल की हैं। यहां की प्रमुख जनजातियों में चाइमल, हलाम, जमातिया, तिप्पेरा, त्रिपुरी, मोग, रियांग, लेप्चा आदि हैं। इनमें त्रिपुरी और रियांग जनजाति का अधिकांश जनजाति इलाके में वर्चस्व है। कोकबोराक इनकी बातचीत की भाषा है और इन पर बौद्ध, ईसाई और त्रिपुरसुंदरी संप्रदाय का गहरा प्रभाव है। यहां आदिवासी अपने शासन-प्रशासन के लिए चुनाव भी करते हैं और उस संस्था का नाम हुऊ है। यह संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त स्वायत्त संस्था है। इसमें कुल 28 जनता के द्वारा चुने सदस्य हैं और दो सदस्य राज्यपाल के द्वारा नामांकित किए जाते हैं। ये भी जनजाति के ही होते हैं।
(’’पुस्तक हिमालयी राज्य संदर्भ कोश’’ से साभार, प्रकाशक – विन्सर पब्लिशिंग)

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