ब्लॉग

भारत में 3 हजार वनस्पतियों में पाये गये जीवन रक्षक औषधीय गुण

-जयसिंह रावत
जड़ी का मतलब वनस्पपति के जमीन के अंदर का हिस्सा और बूटी का मतलब जमीन से ऊपर का हिस्सा जिसमें तना, पत्तियां, फल एवं फूल शामिल होते हैं। प्रकृति के नियमानुसार पादपों या वनस्पतियों और जीवधारियों का अस्तित्व एक दूसरे से जुड़ा हुआ होता है। मनुष्य भी प्रकृति की ही एक रचना है, अतः उसका अस्तित्व भी बिना वनस्पति के संभव नहीं है। जहां तक जड़ी-बूटी का सवाल है तो इनका इतिहास भी उतना ही पुराना है जितना कि मानव सभ्यता के विकास का है। चाहे मैसोपोटोमियां की सभ्यता हो या यूनान की या फिर मिश्र और सिंधु घाटी की! सभी प्राचीनतम् सभ्यताओं द्वारा वनस्पतियों को औषधि के श्रोत के रूप में प्रयोग किया जाता रहा है। यूनान की सभ्यता में विलो नाम के वृक्ष की छाल का दर्द निवारक औषधि के रूप में उपयोग का उल्लेख प्राचीनतम् ग्रन्थों में मिलता है। हमारे देश में पाई जाने वाली 15000 पुष्पीय पौधों की प्रजातियों में से लगभग 3000 प्रजातियों के औषधीय उपयोग ज्ञात हैं। भारत के उष्ण कटिबंधीय प्रक्षेत्र या मैदानी भागों में पाई जाने वाली प्रजाति को औषधि सम्राट की संज्ञा दी गई है क्योंकि इसकी जड़ों से 62 से अधिक औषधीय रसायन प्राप्त किए जा चुके हैं जिनसे बनाई गई औषधियों को तंत्रिका विकार, पागलपन, अनिद्रा, मिर्गी, उच्चरक्त चाप जैसे रोगों के निदान में प्रभावकारी पाया गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की नब्बे के दशक में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार विश्व की 80 प्रतिशत आबादी प्रथमिक चिकित्सा के लिये वनस्पतियों पर आधारित पारम्परिक औषधियों पर निर्भर थी।                                                                                                       

प्राचीन इतिहास में 1800 औषधीय पादप प्रजातियों का विवरण

भारत के प्राचीन इतिहास में लगभग 1800 औषधीय पादप प्रजातियों का विवरण उपलब्ध है। परन्तु वर्तमान परिप्रेक्ष्य में भारतीय औषधि पद्धतियां (आयुर्वेद, सिद्ध, यूनानी आदि) पिछड़ती जा रही हैं, जिसका प्रमुख कारण है हमारे प्राचीन ग्रंथों में वर्णित औषधीय पौधों की सही पहचान का अभाव। भारतीय औषधीय पादप संपदा अद्वितीय है। विश्वबैंक के अनुमान के अनुसार, भारतीय औषध-उपज का मूल्य लगभग 3 बिलियन डालर प्रति वर्ष है। अनेकानेक भारतीय पौधों का सामान्य व्याधियों से लेकर कैंसर तक के उपचार में महत्वपूर्ण योगदान है। उदाहरणार्थ जहां ‘ड्राइमेरिया कार्डेटा’ जिसे अरुणाचल की निशी भाषा में ‘किच्चेकिनिया’ कहते हैं या फिर ‘एजेरेटम’ कानीज्वायडिस, एजेरेटम हाउस्टिआनस, टैगेटस, चाइनेन्सिस (गेंदा) आदि की पत्तियों का रस शरीर के किसी भाग में कट जाने पर रक्तस्राव रोकने के लिए किया जाता है, वहीं पर भारत के हिमालयी प्रक्षेत्र में प्राप्य ‘पापड़ी’ (पोडोफिलम सिक्किमेन्सिस) तथा थुनेर’ (टैक्सस वालिचिआना) से प्राप्त रसायनों का उपयोग कैंसर के निदान में किया जाता है। अरुणाचल में इसी प्रकार ‘वैंडेलिया कैन्डुलेसिया’ से प्राप्त रसायनों का परिवार नियोजन हेतु उपयोग अत्यन्त प्रभावशाली सिद्ध हुआ है।

विपरीत परिस्थितियों के पादपों में औषधीय तत्व

रॉयल बॉटेनिकल गार्डन की एक अध्ययन रिपोर्ट के अनुमान अनुसार इस धरती पर लगभग 3.91 लाख पादप प्रजातियां हैं जिनमें 94 प्रतिशत पुष्पीय पौधे हैं। पादपों की इतनी प्रजातियां पृथ्वी के विभिन्न जलवायु और भौगोलिक क्षेत्रों में उगती और जीवित रहती हैं। इनमें से कुछ प्रजातियां अत्यन्त ठण्ड और कुछ अत्यन्त गर्म क्षेत्रों में पायी जाती है जहां सामान्य प्रजातियों के जीवित रहने की कल्पना भी नहीं की जा सकती। दरअसल इन विकटतम् परिस्थितियों का प्राकृतिक दबाव इन पादप प्रजातियों पर पड़ता है। इस दबाव को सहन करने और उसके अनुकूल बन जाने के लिये उन पादपों में आत्मरक्षा की विधियां विकसित हो जाती हैं और ये विधियों अनके प्रकार के विशिष्ट रसायनों के रूप में होती हैं। ये रसायन औषधीय गुणों से भरपूर होते हैं और इनके ज्ञान से ही रोग निवारक दवाओं का निर्माण किया जाता है। यही विशिष्टता विकट जलवायु संबंधी परिस्थितियों में जीवित रहने वाले जीवों में भी होती है।

जड़ी बूटियों का भण्डार है हिमालय

जैव विविधता से सम्पन्न 17 मेगा बायोडाइवर्सिटी नेशन्स में भारत का भी नाम आता है जहां जैव विविधता की दृष्टि से तीन हॉट स्पॉट्स चिह्नित किये गये हैं। इसीलिये भारत वर्ष को औषधीय महत्व की जड़ी-बूटियों का भण्डार माना जाता है। भारत में भी विषम जलवायु परिस्थितयों के कारण हिमालय को जड़ी बूटियों की खान माना जाता है। यहीं वह द्रोणागिरी पर्वत है जिसके बारे में सनातन धर्मावलम्बियों की मान्यता है कि हनुमान आकर लक्ष्मण का जीवन बचाने के लिये संजीवनी बूटी ले गये थे। यह द्रोणागिरी पर्वत विश्वविख्यात फूलों की घाटी के ही निकट है। इन क्षेत्रों में पायी जाने वाली औधधियां न केवल आयुर्वेद एवं यूनानी दवाओं के रूप में प्रयुक्त की जाती है अपितु फर्मास्यूटिकल, सौन्दर्य प्रसाधन, खाद्य रंग दत्र एवं अन्य उद्योगों में भी प्रयुक्त की जाती हैं

अत्यधिक दोहन से संकटापन्न जड़ी-बूटी संसार

विश्व में जड़ी-बूटियों की उपयोगिता के प्रति जागरूकता बढ़ने के कारण इनका विश्व व्यापार निरन्तर बढ़ता जा रहा है। एक अनुमान के अनुसार विश्व में जड़ी बूटियों का कारोबार 120 अरब अमरीकी डालर तक पहुंच गया है। हालांकि भारत के पास इतना बड़ा खजाना होने के बावजूद चीन आदि देश इस क्षेत्र में काफी आगे बढ़ चुक हैं। भारत में इन भेषजों का कारोबार 4.2 अरब रुपये तक अनुमानित है। घरेलू एवं अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में जड़ी बूटियों की मांग इस कदर बढ़ जाने के कारण जन वनस्पतियों पर मानव दबाव अत्यधिक बढ़ जाने से कई औषधीय पादप प्रजातियां संकटापन्न स्थिति में पहुंच गई हैं और कुछ तो अब नजर भी नहीं आती हैं।

कैंसर नाशक थुनेर भी संकट में

हिमालय पर पाया जाने वाला थुनेर पौधा केंसर के इलाज के काम आ रहा है, इसलिये अत्यधिक दोहन के कारण उसका अस्तित्व संकट में है। सालम पंजा या डक्टाइलोराइजा हथजीरिया भी एक बहुत ही कीमती जड़़ी है। उसकी जड़ को ही उठा कर लेजाया जायेगा तो फिर रिजनेरेशन कैसे होगा? इसी प्रकार एकोनिटम बाल्फोरी जिसे मीठा जहर कहा जाता है एक जीवन रक्षक औषधि ही है। उसका भी भारी दोहन हो रहा है। कुटकी (पिक्रोराइजा) और वन ककड़ी (पोडोफाइलम हेक्साण्ड्रम) भी संकट में आ गये है। आजकल लोग कीड़ा जड़ी याने कि यार्शागम्बू का बेतहासा दोहन हो रहा है। इस जड़ी का उपयोग यौनवर्धक औषधि के रूप में किया जाता है। अत्यधिक दोहन के कारण हिमालय पर जिन औषधीय प्रजातियों का अस्तित्व संकट में आ गया है उनमें मीठा जहर, अतीस, सालमपंजा, निरबिसी,नील कंठ, जटामासी, वन ककड़ी, कुट, थुनेर, कालाजीरा, शजमूल, पदारा, कुटकी,सलाम मिश्री, सर्पगन्धा, डोलू की प्रजाति, ब्रह्मकमल, पत्थरचटा, काली मूसली, निशोध, ममीरा,एवं जंगली प्याज आदि शामिल हैं।

जड़ी-बूटियां बचाने के लिये कृषिकरण जरूरी

वनोषधियों पर बढ़ते दबाव को कम करने के लिये जरूरी है कि उनका कृषिकरण किया जाय। पहाड़ी राज्यों में इस दिशा में कदम उठाये तो जा रहे हैं, मगर वे काफी नहीं है। जड़ी-बूटियों के क्षेत्र में अभी तक ऐसे प्रयास नहीं हुये कि इसको रोजगार से जोड़ा जाना जरूरी है। स्थानीय लोगांे को हिमालय में उगती इन जड़ी-बूटियों से कुछ विशेष फायदा नहीं हो रहा है। अगर हम इसको उत्पादन से जोडंे़ और लोग इसको खेतों में उगायें तो रोजगार के बड़े व्यापक नये अवसर पैदा हो सकते हैं। जड़ी बूड़ी उत्पादन के लिये सबसे महत्वपूर्ण जो बात है वो ये कि आपके पास लगाने के लिये पौध होनी चाहिये जो आज भी नहीं है। इसी लिये कृषक इनको वहुत अच्छे उत्पादन के स्तर पर नहीं ले जा पा रहे है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!