पहाड़ में चूना उद्योग रोजगार का साधन हो सकता है
-अनन्त आकाश
हमारी सरकारें आस्ट्रेलिया आदि देशों से चूना आयात कर अपने प्राकृतिक खनिज को यूं ही बर्बाद कर रही है, इसके लिये हमारा पहाड़ इसका जीता जागता उदाहरण है,
श्रीनगर गढ़वाल से जब आप रूद्रप्रयाग की ओर तथा रूद्रप्रयाग से केदारघाटी की ओर आऐंगे तो आपको जगह-जगह चूने के पहाड़ नजर आऐंगे, सरकार हर साल करोडों -करोड़ रूपये केवल लाईम स्टोन जैसे बहुमूल्य खनिज को मन्दाकिनी तथा अलकनन्दा नदी में फेंकने के लिये करती, ऐसा सभी जगह होती होगा, दूसरी तरफ इससे भी कमतर क्वालिटी का लाईम स्टोन करोड़ों डालर खर्च कर आस्ट्रेलिया आदि से आयात किया जाता है। चीन की हम लाख बुराइयां करें किन्तु चीन अपने घरेलू संसाधनों का उपयोग बखूबी करता आया है, जबकि हमारे देश में ऐसा नहीं है, क्योंकि यहाँ संसाधनों का उपयोग सिर्फ इसलिए ठीकठाक ढंग से नहीं किया जाता है कि इसके पीछे सिर्फ और सिर्फ निहित स्वार्थ जुड़े हैं ,यहाँ के ढांचे के पास न कोई सुनियोजित योजना ही नहीं ईमानदारी ही।
जब सत्ता से जुड़े नेताओं को सत्ता जुमलों तथा जनता के बीच फूट डालकर मिलती रही हो तो वे ऐसा कष्ट क्यों करेंगे, क्योंकि उन्हें सत्ता प्राप्त करने के बाद देश के पूंजीपतियों तथा अडानी, अम्बानी जैसे कारपोरेट घरानों की सेवा जो करनी है ।हमारे पास राज्य का उद्योग मन्त्रालय है, उसके नीचे उद्योग निदेशालय है, तथा जिलों जिला उद्योग केन्द्र लगता है। वे सिर्फ और सिर्फ अपनी मोटी मोटी तनख्वाहें बटोरने तथा अपने ऐशोआराम तक सीमित हैं, क्यों नहीं चूने से जुड़े अनेक छोटे छोटे उद्योग लगें जिससे हर बर्ष करोड़ों रूपये नदी के बहाव में जाने से रुके इस उद्योग से स्थानीय लोगों को रोजगार मिले तथा 10से 15 रूपये किलो चूना खरीदने के बजाय स्थानीय लोगों को सस्ते दर पर चूना मिल सके ,साथ ही चूने की बनी टाईल्स आदि भी यहीं तैयार हो, बन्द पड़े तिलवाड़ा निगम की फैक्ट्री को ईमानदारी से सरकार चलाने का प्रयास करे ताकि लोग यहाँ टिक सकें, आशा है कि सरकार तथा जनप्रतिनिधि इस ओर ध्यान देंगे !