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पिछले 8 वर्षों में भारत की अंतरिक्ष में लम्बी  छलांगें 

भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम और इसका पारिस्थितिकी तंत्र विभिन्न उपलब्धियों के साथ अभूतपूर्व गूंजमान स्थिति में है। आज तक विभाग द्वारा अपनाए गए प्रमुख मील के पत्थर की झलक निम्नलिखित है:

प्रमुख मिशन

  • 2014 से अब तक कुल मिलाकर 44 अंतरिक्ष यान मिशन, 42 प्रक्षेपण यान मिशन और 5 प्रौद्योगिकी प्रदर्शक सफलतापूर्वक पूरे किए गए हैं।
  • जनवरी 2014 में, जीएसएलवी-डी 5 प्रक्षेपण यान में स्वदेशी क्रायोजेनिक अपर स्टेज के साथ पहली सफल उड़ान भरी गयी और जीसैट-14 को जीटीओ में स्थापित किया गया।
  • सितंबर 2014 में, भारत के मार्स ऑर्बिटर अंतरिक्ष यान ने सफलतापूर्वक मंगल ग्रह के चारों ओर एक कक्षा में प्रवेश किया, जिससे भारत उन चुनिंदा देशों में शामिल हो गया, जिन्होंने मंगल ग्रह पर अपना अंतरिक्ष यान भेजा है। अंतरिक्ष यान को 6 महीने के जीवनकाल के लिए डिजाइन किया गया था लेकिन यह 7 वर्षों के बाद भी कार्यशील अवस्था है और बहुत सारे दिलचस्प विज्ञान डेटा देकर राष्ट्र की सेवा कर रहा है।
  • दिसंबर 2014 में, देश अगली पीढ़ी के प्रक्षेपण यान- जीएसएलवी एमके III की प्रयोगात्मक उड़ान का साक्षी बना। एलवीएम 3-एक्स/केयर मिशन, यान की पहली प्रायोगिक उपकक्षीय उड़ान, ने क्रू मॉड्यूल एटमॉस्फेरिक री- एंट्री एक्सपेरिमेंट (केयर) लॉन्च किया।
  • सितंबर 2015 में पीएसएलवी ने एस्ट्रोसैट लॉन्च किया, यह देश का पहला समर्पित खगोल विज्ञान मिशन है जिसका उद्देश्य एक्स-रे, ऑप्टिकल और यूवी स्पेक्ट्रमी बैंड में एक साथ खगोलीय स्रोतों का अध्ययन करना है। एस्ट्रोसैट ने पांच नई आकाशगंगाओं की खोज करके बड़ी सफलता प्राप्त की है।
  • इसरो ने नेविगेशन विद इंडियन कॉन्स्टेलेशन (नाविक) की स्थापना और संचालन किया है, जो भारत और उसके आसपास के उपयोगकर्ताओं को अत्यधिक सटीक स्थिति, नेविगेशन और समय की जानकारी प्रदान करता है। भारतीय क्षेत्रीय नेविगेशन उपग्रह प्रणाली (आईआरएनएसएस) के कुल 7 उपग्रह हैं – सभी पीएसएलवी द्वारा लॉन्च किए गए हैं, आईआरएनएसएस -1 जी ने 2016 में तारामंडल को पूरा किया है।
  • विभिन्न नाविक आधारित सेवाओं को कई प्रमुख क्षेत्रों में शुरू किया गया है जैसे – यूआईडीएआई आधार नामांकन संरचना के साथ नाविक-सक्षम उपकरणों का एकीकरण,  निरंतर संचालन संदर्भ स्टेशनों (सीओआरएस) नेटवर्क में नाविक का समावेशन, कृषि ड्रोन और समुद्री सेवाओं के लिए रेडियो तकनीकी आयोग (आरटीसीएम) आदि।
  • 23 मई, 2016 को सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (एसडीएससी) शार, श्रीहरिकोटा से पुन: प्रयोज्य प्रक्षेपण यान- प्रौद्योगिकी प्रदर्शक (आरएलवी-टीडी) का सफल उड़ान परीक्षण किया गया। आरएलवी-टीडी इसरो के तकनीकी रूप से सबसे चुनौतीपूर्ण प्रयासों में से एक है जो कि अंतरिक्ष में कम लागत वाली पहुंच को सक्षम बनाने के लिए पूरी तरह से पुन: प्रयोज्य लॉन्च वाहन के लिए आवश्यक प्रौद्योगिकियों को विकसित करने की दिशा में काम करता है।
  • 2016 में एयर ब्रीथिंग प्रोपल्शन सिस्टम की प्राप्ति की दिशा में इसरो के स्क्रैमजेट इंजन का पहला प्रायोगिक मिशन को सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र शार, श्रीहरिकोटा से सफलतापूर्वक पूरा किया गया।
  • 2017 में, पीएसएलवी सी-37 ने एक ही लॉन्च के दौरान 104 उपग्रहों को सफलतापूर्वक कक्षा में स्थापित करने का एक विश्व रिकॉर्ड बनाया।
  • माननीय प्रधानमंत्री द्वारा 18वें सार्क शिखर सम्मेलन में प्रस्तुत किए गए विचार के अनुसार, इसरो ने पड़ोसी देशों का समर्थन करने के लिए 2017 में 2.2 टन संचार उपग्रह लॉन्च किया है।
  • जून-2017 में जीएसएलवी एमके-III डी 1 का पहला विकास मिशन सफलतापूर्वक पूरा किया गया और जीसैट-19 उपग्रह को जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट की ओर बढ़ाया गया।
  • जुलाई 2018 में इसरो ने क्रू एस्केप सिस्टम (सीईएस) की अर्हता प्राप्त करने के लिए मानव अंतरिक्ष यान के एक महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकी तत्व- पैड एबॉर्ट टेस्ट (पीएटी) का प्रदर्शन किया। पैड एबॉर्ट टेस्ट, उड़ान लॉन्च पैड पर आकस्मिक स्थिति उत्पन्न होने पर चालक दल को निकालने के लिए सीईएस की क्षमता का एक प्रदर्शन था।
  • 2018 में, अपने स्वतंत्रता दिवस के संबोधन में  माननीय प्रधानमंत्री ने “गगनयान कार्यक्रम” की घोषणा की, जो मानव अंतरिक्ष अन्वेषण के नए युग में भारत के प्रवेश को चिह्नित करता है।
  • 14 नवंबर, 2018 को जीसैट-29 उच्च प्रवाह क्षमता वाले संचार उपग्रह को जीएसएलवी एमके III- डी 2 के माध्यम से सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया। यह जम्मू और कश्मीर और भारत के उत्तर पूर्वी क्षेत्रों के लिए उपग्रह आधारित कनेक्टिविटी प्रदान करता है।
  • 05 दिसंबर, 2018 को, इसरो की अगली पीढ़ी के उच्च प्रवाह क्षमता वाला संचार उपग्रह, जीसैट-11 को एरियन-5 वीए-246 द्वारा फ्रेंच गुयाना के कौरू से सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया। लगभग 5,854 किलोग्राम वजन का जीसैट-11 इसरो द्वारा निर्मित सबसे भारी उपग्रह है।
  • 22 जुलाई, 2019 को चंद्रमा के लिए भारत का दूसरा मिशन, चंद्रयान-2 को जीएसएलवी एमके III- एम 1 के माध्यम से सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया, जो इस नए प्रक्षेपण यान की पहली परिचालन उड़ान थी। चंद्रयान-2 ऑर्बिटर अनुसंधान समूह को मूल्यवान विज्ञान डेटा प्रदान करता है।
  • दिसंबर 2019 में पीएसएलवी-सी48/आरआईसेट-2बीआर1 का प्रक्षेपण, परिश्रमी प्रेक्षेपण वाहन, पीएसएलवी का 50वां प्रक्षेपण था।
  • 27 जनवरी 2022 को क्वांटम-सिक्योर टेक्स्ट, इमेज ट्रांसमिशन और क्वांटम-असिस्टेड टू-वे वीडियो कॉलिंग के साथ 300 मीटर वायुमंडलीय चैनल पर क्वांटम संलिप्तता आधारित वास्तविक समय क्वांटम कुंजी वितरण (क्यूकेडी) का प्रदर्शन किया गया।
  • जुलाई-2022 में माननीय राज्य मंत्री (अंतरिक्ष विभाग) ने इसरो सिस्टम फॉर सेफ एंड सस्टेनेबल ऑपरेशन एंड मैनेजमेंट (आईएस4ओएम) राष्ट्र को समर्पित किया।
  • 23 अक्टूबर 2022 को एलवीएम 3 (जीएसएलवी एमके III) एम 2/ वनवेब इंडिया -1 मिशन सफलतापूर्वक पूरा किया गया। इस लॉन्च के साथ, एलवीएम 3 आत्मनिर्भरता का उदाहरण प्रस्तुत करता है और वैश्विक वाणिज्यिक प्रक्षेपण सेवा बाजार में भारत की प्रतिस्पर्धा को मजबूत करता है।
  • गगनयान कार्यक्रम के भाग के रूप में, महत्वपूर्ण प्रणालियों के परीक्षण के लिए नया परीक्षण वाहन विकसित किया गया। 18 नवंबर 2022 को बबीना फील्ड फायर रेंज (बीएफएफआर), झांसी, उत्तर प्रदेश में क्रू मॉड्यूल डिक्लेरेशन सिस्टम का ‘इंटीग्रेटेड मेन पैराशूट एयरड्रॉप टेस्ट (आईएमएटी)’ सफल परीक्षण किया गया।
  • इसरो ने इनफ्लेटेबल एयरोडायनामिक डिसेलेरेटर (आईएडी) के साथ नई तकनीक का सफलतापूर्वक प्रदर्शन किया – कई अनुप्रयोगों के साथ भविष्य के मिशनों के लिए यह एक गेम चेंजर है।
  • हाल के दिनों में, 26 नवंबर 2022 को पीएसएलवी-सी 54 को भारत-भूटान सैट (आईएनएस-2 बी) सहित आठ नैनो-उपग्रहों के साथ ईओएस-06 उपग्रह को सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया।

अकादमिक समर्थनक्षमता निर्माण और आउटरीच

  • 2018 से अंतरिक्ष अनुसंधान गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए देश के कुछ प्रमुख स्थानों पर अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी ऊष्मायन केंद्र (एसटीआईसी) स्थापित किए गए हैं। इस पहल के अंतर्गत, वर्तमान में, नौ अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी सेल (एसटीसी) शैक्षणिक संस्थानों में काम कर रहे हैं, छह अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी ऊष्मायन केंद्र (एसटीआईसी) अगरतला, त्रिची, जालंधर, राउरकेला, नागपुर और भोपाल में संचालित हैं और छह अंतरिक्ष के लिए क्षेत्रीय शैक्षणिक केंद्र (आरएसीएस) वाराणसी, कुरुक्षेत्र, जयपुर, गुवाहाटी, सूरतकल और पटना में संचालित हैं। हाल ही में सतीश धवन अंतरिक्ष विज्ञान केंद्र की स्थापना संयुक्त रूप से इसरो/अंतरीक्ष विभाग और जम्मू केंद्रीय विश्वविद्यालय द्वारा की गई है। इसरो और शिक्षाविदों के बीच कई गोपनीय समझौतों (एनडीए) और समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए गए हैं।
  • जून 2018 में, भारत द्वारा असेंबली एकीकरण और परीक्षण (एआईटी) पर हैंड्स-ऑन प्रशिक्षण ओर सैद्धांतिक शोध के संयोजन द्वारा नैनो उपग्रहों के विकास पर क्षमता निर्माण प्रशिक्षण कार्यक्रम उन्नति (यूनिस्पेस नैनोसैटेलाइट असेंबली एंड ट्रेनिंग बाय इसरो) की घोषणा की गई। उन्नति कार्यक्रम का पहला बैच 15 जनवरी से 15 मार्च 2019 तक आयोजित किया गया था जिसके माध्यम से 17 देशों के 30 प्रतिभागियों को लाभ प्राप्त हुआ। दूसरा बैच अक्टूबर-दिसंबर 2019 में और तीसरा बैच अक्टूबर-दिसंबर 2022 में आयोजित किया गया।
  • 2019 में, इसरो ने सरकार के “जय विज्ञान, जय अनुसंधान” वाले दृष्टिकोण के अनुरूप “युवा वैज्ञानिक कार्यक्रम” या “युवा विज्ञानी कर्यक्रम” (युविका) नामक एक वार्षिक विशेष कार्यक्रम की शुरूआत की। कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य बाहरी अंतरिक्ष के आकर्षक क्षेत्र में युवा प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करने के इरादे से अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष विज्ञान और अंतरिक्ष अनुप्रयोगों पर बुनियादी ज्ञान प्रदान करना है। युविका कार्यक्रम का दूसरा बैच मई 2022 में आयोजित किया गया।
  • दिसंबर 2022 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और सोशल अल्फा ने स्पेसटेक इनोवेशन नेटवर्क (एसपीआईएन) लॉन्च करने के लिए एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया, जो बढ़ते अंतरिक्ष उद्यमशीलता पारिस्थितिकी तंत्र के लिए नवाचार क्यूरेशन और उद्यम विकास के लिए भारत का पहला समर्पित मंच है।

सुधार और उद्योगों की भागीदारी में बढ़ोत्तरी

  • 2019 में, न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (एनएसआईएल) को अंतरिक्ष विभाग (डीओएस) के प्रशासनिक नियंत्रण के अंतर्गत भारत सरकार के पूर्ण स्वामित्व वाले उपक्रम/ केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम (सीपीएसई) के रूप में शामिल किया गया, भारतीय उद्योगों में अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए उच्च प्रौद्योगिकी विनिर्माण आधार को बढ़ाने और घरेलू और वैश्विक खरीददारों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के उत्पादों और सेवाओं का व्यावसायिक रूप से दोहन करने में सक्षम बनाने के लिए।
  • 26 जून, 2020 को  भारत सरकार ने अंतरिक्ष क्षेत्र में सुधारों की घोषणा की – भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम में निजी क्षेत्रों की भागीदारी में बढ़ोत्तरी के साथ भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र में एक बड़ा रूपांतरण, जो कि वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में भारतीय बाजार की हिस्सेदारी को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। जून 2022 में माननीय प्रधानमंत्री ने अहमदाबाद में इन-स्पेस मुख्यालय का उद्घाटन किया था।
  • भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन और प्राधिकरण केंद्र (इन-स्पेस) की स्थापना और न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (एनएसआईएल)  की भूमिका को बढ़ाना, सुधार के दो प्रमुख क्षेत्र हैं।
  • जून 2020 में अंतरिक्ष विभाग के अंतर्गत एक स्वायत्त निकाय के रूप में भारत सरकार द्वारा इन-स्पेस की स्थापना की घोषणा की गई, जिससे उद्योग, शिक्षाविदों और स्टार्ट-अप के लिए इको-सिस्टम तैयार किया जा सके और विस्तृत दिशा-निर्देशों और प्रक्रियाओं के माध्यम से अंतरिक्ष क्षेत्र में गैर सरकारी संगठनों की गतिविधियों को अधिकृत और विनियमित करते हुए वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में प्रमुख हिस्सेदारी को आकर्षित किया जा सके।
  • 18 नवंबर 2022 को मैसर्स स्काईरूट एयरोस्पेस प्राइवेट लिमिटेड, हैदराबाद से एक उपकक्षीय प्रक्षेपण यान विक्रम-एस (प्रारंभ मिशन) का प्रक्षेपण सफलतापूर्वक किया गया।
  • 25 नवंबर 2022 को पहला निजी लॉन्चपैड और मिशन नियंत्रण केंद्र की स्थापना एसडीएससी, शार में इसरो परिसर में मेसर्स अग्निकुल कॉसमॉस प्राइवेट लिमिटेड, चेन्नई द्वारा की गई। 04 नवंबर 2022 को अग्निकुल द्वारा विकसित अग्निलेट सेमी-क्रायोजेनिक रॉकेट इंजन का इसरो सुविधा में सफलतापूर्वक गर्म परीक्षण किया गया।
  • एचएएल और एल एंड टी कंसोर्टिया 5वें नंबर के पीएसएलवी एंड-टू-एंड उत्पादन के लिए भारतीय उद्योग भागीदार होंगे, जिसका अनुबंध मूल्य 824 करोड़ रुपये है।
  • भारतीय अंतरिक्ष स्टार्ट-अप मेसर्स ध्रुवस्पेस के दो नैनो-उपग्रहों को पीएसएलवी-सी 54 मिशन में एक राइडशेयर यात्री के रूप में लॉन्च किया गया। मेसर्स वनवेब के जेन-1 उपग्रहों को एलवीएम 3 (जीएसएलवी एमके -3) का उपयोग करके लॉन्च किया गया।
  • जून 2022 में जीसैट-24 संचार उपग्रह, जो कि एनएसआईएल का पहला मांग संचालित मिशन है, फ्रेंच गुयाना के कौरू से लॉन्च किया गया।
  • एनएसआईएल ने 19 प्रौद्योगिकी हस्तांतरण समझौतों पर हस्ताक्षर किया है और इसरो द्वारा विकसित 8 प्रौद्योगिकियों को भारतीय उद्योग को सफलतापूर्वक हस्तांतरित किया है।
  • भारतीय अंतरिक्ष नीति- 2022, इस नीति को अंतरिक्ष आयोग द्वारा मंजूरी प्रदान की गई। नीति के लिए उद्योग समूहों के साथ व्यापक विचार-विमर्श किया गया, अंतर-मंत्रालयी परामर्श लिया गया, अधिकार प्राप्त प्रौद्योगिकी समूह द्वारा समीक्षा किया गया और यह आगे की अनुमोदन प्रक्रिया के अंतर्गत है।

आपदा प्रबंधन

बाढ़ की निगरानी (लगभग 250+ बाढ़ मानचित्र/ बाढ़ का मौसम), बाढ़ ग्रसित राज्यों (असम, बिहार, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश और उत्तर प्रदेश) के बाढ़ जोखिम क्षेत्र एटलस का निर्माण, बाढ़ पूर्व चेतावनी मॉडल (ब्रह्मपुत्र, गोदावरी और तापी) विकसित करना, कई दैनिक पहचान और सक्रिय जंगल में आग का प्रसार (>35,000 पहचान/ जंगल में आग का मौसम), चक्रवात ट्रैक का पूर्वानुमान, भूकंप की तीव्रता और भूस्खलन, भूकंप और भूस्खलन के कारण हुए नुकसान का आकलन आदि।

कोविड-19 संबंधी सहायता

कोविड-19 महामारी के दौरान, मैकेनिकल वेंटिलेटर और मेडिकल ऑक्सीजन कंसंट्रेटर जैसे उपकरणों को विकसित किया गया और प्रौद्योगिकियों को भारतीय उद्योगों में स्थानांतरित किया गया।

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