यात्रियों की भीड़ का बखान मगर यात्रियों की रिकॉर्ड मौतों पर चुप्पी क्यों ?
—जयसिंह रावत
पिछले साल तीर्थयात्रियों की रिकार्डतोड़ आमद को ध्यान में रखते हुये उत्तराखंड सरकार आगामी 22 अप्रैल से शुरू होने जा रही चारधाम यात्रा की तैयारियों में जुट गया है। लेकिन लगता है कि सरकार का ध्यान यत्रियों की सुरक्षा से ज्यादा भीड़ प्रबंधन पर है। क्योंकि पिछले साल से लेकर अब तक चर्चा केवल तीर्थयात्रियों की भीड़ के रिकार्ड पर ही होती रही है। उसी भीड़ को सरकार अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि के रूप में प्रचारित भी करती रही है। लेकिन गत वर्ष चारों हिमालयी धामों में यात्रियों की आमद के रिकार्ड के साथ ही यात्रियों की मौत का रिकार्ड भी टूटा था जिस पर किसी भी स्तर पर चर्चा शून्य रही। जिस खतरे की और पिछली झटनाओं की चर्चा ही न हो उसकी तैयारियां भी वैसी ही होंगी।
पिछले साल 2022 में चार धामों में सबसे बाद में 19 नवम्बर को बदरीनाथ के कपाट बंद हुये थे। उससे ठीक 22 दिन पहले 28 अक्टूबर को जारी राज्य आपातकालीन परिचालन केन्द्र के आकड़ों के अनुसार उस तिथि तक चारों धामों में 43,43,472 यात्री चारों धामों के दर्शन कर चुके थे। इनमें सर्वाधिक 16,64,096 बदरीनाथ और 15,55,543 यात्री केदारनाथ के शामिल थे। ये सभी यात्री उस तिथि तक 4,23,968 वाहनों से चारधाम पहंुचे थे। आपदा परिचालन केन्द्र के आंकड़ों के अनुसार 28 अक्टूबर 2022 तक गांगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बदरीनाथ की यात्रा करने वाले श्रद्धालुओं में से 281 की मौतें हो चुकीं थी। इनमें सर्वाघिक 150 मौतें केदारनाथ यात्रियों की थीं। उसके बाद 66 मौतें बदरीनाथ यात्रियों की हुयीं। इसी तरह 28 अक्टूबर तक 48 मौतें यमुनोत्री और 17 मौतें गंगोत्री के यात्रियों की थीं। इनमें 80 प्रतिशत मौतें बीमारी और 20 प्रतिशत के लगभग दुर्घटनाओं के कारण हुयीं। बीमारी में भी सर्वाधिक मौतें हार्ट अटैक से दर्ज हुयी है। यात्रा के शुरुआती 27 दिनों में ही 108 यात्री जानें गंवा चुके थे।
तीर्थ यात्रियों की सर्वाधिक मौते केदारनाथ और उसके बाद यमुनोत्री रूट पर हुयी हैं और दोनों ही धामों के लिये यात्रियों को काफी पैदल चलना पड़ता है। एक तो पैदल चलना और ऊपर से चढ़ाई के कारण यात्रियों दिल के दौरे पड़े हैं। जाहिर है कि इस बार यात्रियों की जानें बचाने के लिये पर्याप्त संख्या में डाक्टरों और खास कर हृदय रोग विशेषज्ञों की आवश्कता होगी, जो कि सरकार के पास नहीं हैं। उत्तराखंड में वर्तमान में सरकार के पास केवल एक हृदय रोग विशेषज्ञ है जो कि दून मेडिकल कालेज में तैनात है। बाकी 3 सरकारी मेडिकल कालेजों में भी हृदय रोग विशेज्ञ नहीं है। जब मेडिकल कालेजों में हृदय रोग विशेषज्ञ न हों तो बाकी अस्पतालों में कल्पना करना भी व्यर्थ है।
पिछले साल के अनुभवों को देखते हुये रुद्रप्रयाग के सीएमओ ने शासन से अकेले केदारनाथ मार्ग के लिये 17 डाक्टरों की मांग की है जिनमें 15 फिजिशियन, एक हृदय रोग विशेषज्ञ और एक हड्डी रोग विशेषज्ञ शामिल है। इनके अलावा 4 नर्सिंग अधिकारी और 22 फार्मासिस्ट मांगे गये हैं। जबकि सरकार के पास हृदय रोग ही नहीं बल्कि सभी प्रकार के डाक्टरों की कमी है। केदारनाथ के साथ ही कम से कम यमुनोत्री मार्ग पर भी इतने ही मेडिकल स्टाफ की आवश्यकता होगी। मौजूदा तैयारियों को देखते हये सरकार का ध्यान यात्रियों की चिकित्सा के बजाय भीड़ प्रबंधन पर नजर आ रहा है।
यात्रा मार्ग के अलावा भी प्रदेश में डाक्टरों की भारी कमी बनी हुयी है। खास कर विशेषज्ञ डाक्टरों का अभाव की समस्या का निदान राज्य गठन के 23 साल बाद भी नहीं हो सका। प्रदेशा में एनेस्थिीसिया के 145 में से 83 पर, बाल रोग के 155 में से 91, स्त्री रोग के 165 में 106, सर्जन के 140 में से 94, और चर्म रोग के 32पदों में 28 पद खाली हैं।