वर्ष 2021 के दौरान पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की प्रमुख उपलब्धियां
पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय का उद्देश्य भारत के नागरिकों को लोगों की भागीदारी के साथ एक स्वच्छ, हरा और स्वस्थ वातावरण प्रदान करना और उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों के सतत उपयोग के माध्यम से उच्च और समावेशी आर्थिक विकास में सहयोग करना है। इस मंत्रालय ने भारत की पर्यावरणीय और वानिकी नीतियों और झीलों तथा नदियों, इसकी जैव विविधता, जंगलों और वन्य जीवन सहित देश के प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और जीव-जन्तुओं के कल्याण को सुनिश्चित करने तथा प्रदूषण को नियंत्रित करने से संबंधित कार्यक्रमों की योजना बनाने, बढ़ावा देने, समन्वय करने और उनके कार्यान्वयन की निगरानी करने की दिशा में कई बड़ी उपलब्धियां हासिल की हैं। वर्ष 2021 के दौरान पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की प्रमुख उपलब्धियां इस प्रकार हैं: –
आजादी का अमृत महोत्सव:
ग्रीन गुड डीड ऑफ द वीक अभियान: स्वतंत्रता के 75वें वर्ष के उपलक्ष्य में, देश 75 सप्ताह तक चलने वाला “आज़ादी का अमृत महोत्सव” मना रहा है। सतत जीवन शैली को बढ़ावा देने के लिए एक आउटरीच कार्यक्रम – “ग्रीन गुड डीड ऑफ द वीक” अभियान 12 मार्च 2021 से इको-क्लब के माध्यम से इस महोत्सव के तहत आयोजित किया जा रहा है। राज्य नोडल एजेंसियों और इको-क्लब ने स्थायी जीवन शैली को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न गतिविधियों का आयोजन किया जैसे कि स्वच्छता/वृक्षारोपण अभियान, पेंटिंग/ स्लोगन/निबंध प्रतियोगिताएं, एकल उपयोग वाली प्लास्टिक के बारे में जागरूकता फैलाने, त्योहारों को मनाने के पर्यावरण के अनुकूल तरीकों के बारे में जागरूकता फैलाने आदि।
आइकॉनिक वीक समारोह : पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय का आइकॉनिक वीक आजादी का अमृत महोत्सव के अंतर्गत 4 से 10 अक्टूबर, 2021 तक मनाया गया। सप्ताह की गतिविधियों के लिए चुने गए प्रमुख विषय झील/ आर्द्रभूमि संरक्षण, एकल उपयोग वाली प्लास्टिक के उपयोग पर अंकुश लगाना, वन्यजीव संरक्षण, वन संरक्षण और तटीय संरक्षण थे। स्कूली शिक्षा और साक्षरता विभाग और एसएनए के समन्वय में देश भर के स्कूलों/कॉलेजों में ग्रीन प्लेज, वेबिनार, ग्रीन गुड डीड्स को बढ़ावा देने और चुने गए विषयों पर वीडियो की स्क्रीनिंग जैसी गतिविधियां आयोजित की गईं।
2 अक्टूबर से 1 नवंबर 2021 तक स्वच्छता अभियान
- 2 अक्टूबर से लेकर 1 नवंबर, 2021 तक एक महीने के लिए स्वच्छता अभियान चलाया गया। अभियान के दौरान, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के विभिन्न विभागों द्वारा बड़ी संख्या में फाइलों की समीक्षा की गई, जो कुल 45,154 फाइलें थीं। जिनमें से लगभग 41,758 फाइलों को हटा दिया गया, जिसके परिणामस्वरूप लगभग 9 टन कागज का कचरा पैदा हुआ।
- इस बड़े काम को करने के लिए एक हैवी ड्यूटी श्रेडर मशीन विशेष रूप से लाई गई थी। फाइलों की निराई से उत्पन्न कचरे के निस्तारण की प्रक्रिया से 18 हजार रुपये की राजस्व प्राप्ति हुई है। इंदिरा पर्यावरण भवन में लगभग 3000 वर्ग फुट के एक पर्याप्त साफ और खुले क्षेत्र को पुनः ठीक किया गया।
- मंत्रालय ने कंप्यूटर, प्रिंटर, फोटोकॉपी की मशीन और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों सहित सभी बेकार वस्तुओं के निपटान के लिए ई-कचरे की नीलामी का आयोजन किया। मैसर्स क्लीन वेस्ट मैनेजमेंट, बुराड़ी, दिल्ली की 5.21 लाख रुपये की ई-कचरा बोली को फाइनल कर लिया गया है। ई-कचरा सामान की शिफ्टिंग का काम पूरा हो गया है।
- मंत्रालय ने टेबल, कुर्सियों, अलमारी, साइड रैक, सोफा सेट और अन्य बेकार फर्नीचर वस्तुओं सहित सभी पुरानी फर्नीचर वस्तुओं के निपटान के लिए एक नीलामी भी आयोजित की थी। मैसर्स पटेल स्क्रैप को 6.80 लाख रुपये की कीमत पर फर्नीचर कचरे की बोली को पहले ही अंतिम रूप दिया जा चुका है।
सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी)
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने अपने 70वें सत्र में 17 सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) पर विचार किया और उन्हें अपनाया और अगले 15 वर्षों के लिए 169 लक्ष्यों को जोड़ा। 17 एसडीजी 1 जनवरी, 2016 से लागू हुए। हालांकि कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं है, एसडीजी वास्तव में अंतरराष्ट्रीय दायित्व बन गए हैं और 2030 को समाप्त होने वाले दशक के दौरान देशों की घरेलू खर्च प्राथमिकताओं को पुनर्निर्देशित करने की क्षमता रखते हैं। एसडीजी 13, 15 और 12 को मुख्य रूप से पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के लिए निर्धारित किया गया है। एसडीजी 13 (जलवायु परिवर्तन और इसके प्रभाव से बचाव के लिए तत्काल कार्रवाई) को प्राप्त करने में महत्त्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं क्योंकि 2016 में ही 2005 के स्तर के मुकाबले जीडीपी की उत्सर्जन तीव्रता में 24% की कमी हासिल कर ली गई है। भारत ने इस बात पर जोर दिया है कि विकसित देशों से मिलने वाला जलवायु वित्त जैसा कि पेरिस समझौते में वादा किया गया था, इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अहम है। इसी तरह, भूमि क्षरण तटस्थता और गहन वनीकरण पर देश का संकल्प देश को एसडीजी 15 (स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र का सतत उपयोग और जैव विविधता हानि की रोकथाम) की ओर बढ़ने में मदद कर रही है। प्लास्टिक में विस्तारित उत्पादक जिम्मेदारी को लागू करने और खतरनाक पदार्थों की निगरानी के लिए बेसल कन्वेंशन के अनुसमर्थन में देश की प्रतिबद्धता सतत उत्पादन और खपत पैटर्न सुनिश्चित करने के लिए एसडीजी 12 की ओर बढ़ने में एक उल्लेखनीय कदम है। 2030 एजेंडा ने यह भी रेखांकित किया कि प्रगति के मापन के लिए और “कोई भी पीछे नहीं छूटे” सुनिश्चित करने के लिए गुणवत्ता, विश्वसनीय और अलग-अलग डेटा की आवश्यकता होगी। मंत्रालय सतत विकास लक्ष्यों पर प्रगति की वास्तविक निगरानी के लिए अपने डेटा सिस्टम को मजबूत कर रहा है।
जलवायु परिवर्तन
राष्ट्रों के अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के एक जिम्मेदार सदस्य के रूप में, सरकार विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय बैठकों के माध्यम से राष्ट्रीय विकास लक्ष्यों और प्राथमिकताओं को ध्यान में रखते हुए अंतर्राष्ट्रीय मंचों / संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन में सार्थक तरीके से विचार-विमर्श करना जारी रखेगी। वर्तमान में भारत यूएनसीसीडी का अध्यक्ष है।
- पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने ग्रीन नेट जीरो कार्यक्रम के लिए यूनाइटेड किंगडम के ग्लासगो में आयोजित जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) के पक्षकारों के सम्मेलन (सीओपी-26) के 26 वें सत्र में भाग लिया। सीओपी-26 में माननीय प्रधानमंत्री ने वर्ल्ड लीडर्स सम्मिट में राष्ट्रीय वक्तव्य दिया, जिस पर मुख्य रूप से शिखर सम्मेलन के दौरान चर्चा की गई और प्रकाश डाला गया।
- भारत की गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता 2030 तक 500 गीगावॉट तक पहुंच जाएगी
- भारत 2030 तक अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं का 50 प्रतिशत नवीकरणीय ऊर्जा से पूरा करेगा।
- भारत अपने कुल अनुमानित कार्बन उत्सर्जन को अब से 2030 तक एक अरब टन कम करेगा।
- भारत अपनी अर्थव्यवस्था की कार्बन तीव्रता को 2005 के स्तर से 2030 तक 45 प्रतिशत तक कम करेगा।
- 2070 तक, भारत शुद्ध शून्य कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य को प्राप्त कर लेगा।
- विकासशील देशों द्वारा जलवायु कार्यों के कार्यान्वयन के लिए जलवायु वित्त और कम लागत वाली जलवायु प्रौद्योगिकियों का हस्तांतरण अधिक महत्त्वपूर्ण हो गया है। विकसित देशों की जलवायु वित्त पर महत्वाकांक्षाएं वैसी नहीं रह सकतीं जैसी वे 2015 में पेरिस समझौते के समय थीं। माननीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री के नेतृत्त्व में भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने वैश्विक परिदृश्य में हरित मानदंडों को अपनाने के लिए प्रमुख देशों के साथ बहुपक्षीय वार्ता के माध्यम से सीओपी शिखर सम्मेलन में भाग लिया।
- ग्लासगो जलवायु सम्मेलन में कई निर्णयों को अपनाया गया, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ, “ग्लासगो जलवायु संधि” नामक एक व्यापक निर्णय को अपनाना शामिल है जो पेरिस समझौते के लक्ष्यों के कार्यान्वयन में आए अंतर को दूर करने के लिए इस महत्त्वपूर्ण दशक में राहत, अनुकूलन और वित्त के संबंध में महत्त्वाकांक्षा और कार्रवाई को बढ़ाने की तात्कालिकता पर बल देता है। ग्लासगो जलवायु संधि ने भी गहरे अफसोस के साथ यह नोट किया कि विकसित देशों का 2020 तक संयुक्त रूप से प्रति वर्ष 100 अरब डॉलर जुटाने का लक्ष्य अभी तक पूरा नहीं हुआ है। सीओपी 26 के परिणाम में पेरिस समझौते के कार्यान्वयन के लिए नियमों, प्रक्रियाओं और दिशा-निर्देशों से संबंधित कार्य पूरा करना भी शामिल है, जिसमें अनुच्छेद 6 में संदर्भित सहकारी दृष्टिकोण, तंत्र और गैर-बाजार दृष्टिकोण, राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) के लिए बेहतर पारदर्शिता ढांचा और सामान्य समय-सीमा शामिल हैं। इस पर ब्रिटेन, स्कॉटलैंड, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया, बेसिक देशों, नेपाल, भूटान, मालदीव, फ्रांस, कनाडा, ब्राजील, अमेरिका, यूएई, जर्मनी, नॉर्वे, सिंगापुर, जमैका, स्वीडन और जापान के मंत्रियों और प्रतिनिधियों के साथ चर्चा की गई। माननीय मंत्री जी ने समान विचारधारा वाले विकासशील देशों के मंत्रियों और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम, मरुस्थलीकरण से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन और हरित जलवायु कोष के प्रतिनिधियों के साथ भी बैठकें कीं।
- प्रभाव को मजबूत करने के लिए, भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने सीओपी 26 के साथ-साथ अन्य कार्यक्रमों में भी भाग लिया, जिसमें दक्षिण एशिया सहकारी पर्यावरण कार्यक्रम, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन, सीडीआरआई, लीडरशीप ग्रुप फॉर इंडस्ट्री ट्रांजिशन और नमामि गंगे शामिल हैं।
परिवेश
इस मंत्रालय के तहत मंजूरी के शीघ्र अनुदान की प्रक्रिया को कारगर बनाने के लिए पर्यावरणीय मंजूरी प्रदान करने के लिए परिवेश पोर्टल को सरल बनाया गया है जिसके बाद अब मंजूरी प्रदान करने का समय घटकर 70 कार्य दिवस हो गया है।
‘डिजिटल इंडिया’ की भावना के अनुरूप और न्यूनतम सरकार तथा अधिकतम शासन के सिद्धांत को लागू करने के लिए, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने परिवेश (प्रो-एक्टिव एंड रिस्पॉन्सिव फैसिलिटेशन बाय इंटरैक्टिव, वर्चूअस एंड एन्वायरन्मेंटल सिंगल विंडो हब) नामक एक सिंगल-विंडो एकीकृत पर्यावरण प्रबंधन प्रणाली को स्थापित किया है। मंत्रालय ने देश में पर्यावरण, वन, वन्यजीव और सीआरजेड मंजूरी के लिए पूर्ण ऑनलाइन, त्वरित और पारदर्शी प्रणाली के लिए परिवेश पोर्टल को विकसित किया है। यह सुविधा पर्यावरण मंजूरी (ईसी), वन मंजूरी (एफसी), तटीय नियामक क्षेत्र मंजूरी (सीआरजेड) के लिए आवेदनों की प्रक्रिया के लिए चालू है। पिछले कुछ वर्षों में, ‘परिवेश’ की मौजूदा प्रणाली में वैधानिक प्रावधानों और आवश्यकताओं के अनुसार कई संशोधन किए गए हैं।
मंत्रालय ने हाल के दिनों में परिवेश के माध्यम से विभिन्न प्रक्रियाओं को स्वचालित किया है जैसे प्रदूषण भार में वृद्धि नहीं होने के साथ विस्तार/आधुनिकीकरण के लिए पर्यावरण मंजूरी की आवश्यकता के लिए परिवेश में ऑनलाइन मॉड्यूल का विकास, एमएमडीआर संशोधन अधिनियम 2021 के साथ ईआईए अधिसूचना को संरेखित करना, विशिष्ट पहचान संख्या के साथ ईसी को ऑनलाइन निकालना आदि।
अन्य नीतिगत सुधारों के साथ उपरोक्त पहलों के कारण, सभी क्षेत्रों में ईसी प्रदान करने के लिए लिया गया औसत समय कम होकर 90 दिनों से कम हो गया है, जो कि 2019 में 150 दिनों से अधिक था। कुछ क्षेत्रों में, 60 दिनों के भीतर भी ईसी दिए जा रहे हैं, तदनुसार, 2021 में ईआईए अधिसूचना के तहत 7787 परियोजनाओं के लिए ईसी प्रदान किए गए हैं।
मंत्रालय ने पर्यावरण नियमों के क्रियान्वयन के लिए “एकल खिड़की” समाधान प्रदान करने के लिए मौजूदा परिवेश को उन्नत करने का निर्णय लिया है। पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में केंद्रीकृत प्रसंस्करण केंद्र (सीपीसी) स्थापित करने का प्रस्ताव किया गया है। उन्नत परिवेश पोर्टल न केवल मंजूरी प्रक्रियाओं को मजबूत करेगा बल्कि देश में व्यापार करने में आसानी को भी प्रोत्साहित करेगा। परिकल्पित प्रणाली में अंतर्निहित निर्णय नियमों के साथ ‘नो योर एप्रूवल’ मॉड्यूल उपयोगकर्ताओं को प्रस्तावित परियोजना गतिविधि के लिए मंजूरी की प्रयोज्यता के बारे में मार्गदर्शन करेगा। इसके अलावा, यह उपयोगकर्ताओं के बार-बार किए जाने वाले प्रयासों को कम करेगा और साथ ही सभी लागू मंजूरी में प्रक्रिया का एकल संस्करण सुनिश्चित करेगा। इसके अलावा, परिकल्पित प्रणाली में प्रक्रिया प्रवाह में अतिरेक को कम किया जाएगा।
परियोजना प्रस्ताव की डीपीआर को मंजूरी मिल गई है। मॉड्यूल के समग्र विकास के लिए कुल समय सीमा 64 सप्ताह है, हालांकि महत्त्वपूर्ण प्रमुख मंजूरी प्रक्रियाओं के लिए मॉड्यूल एनआईसी के सिस्टम इंटीग्रेटर के बोर्डिंग की तारीख से 42 सप्ताह में लाइव किए जाएंगे।
नगर वन योजना:
मंत्रालय नगर वन योजना को लागू कर रहा है और अक्टूबर 2021 में 400 नगर वन और 200 नगर वाटिका विकसित करने के उद्देश्य से अपने दिशानिर्देशों को संशोधित किया है, जिसका उद्देश्य शहर के निवासियों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार के अलावा बेहतर पर्यावरण, जैव विविधता में वृद्धि और शहरी और उप-शहरी क्षेत्रों में पारिस्थितिक लाभ के लिए जंगलों के बाहर पेड़ और शहरों में हरित आवरण को अधिक बढ़ाना है। इस योजना को 2020-21 से 2024-25 की अवधि के दौरान सीएएमपीए के तहत कुल 895.00 करोड़ रुपये की लागत से राष्ट्रीय कोष से वित्त पोषित किया जाएगा।
स्कूल नर्सरी योजना: मंत्रालय छात्रों को उनकी शिक्षा के हिस्से के तौर पर वृक्षारोपण की प्रक्रिया में जोड़ने और प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने में पौधों के महत्त्व को समझने और सराहना करने के लिए एक वातावरण प्रदान करने के उद्देश्य से स्कूल नर्सरी योजना लागू कर रहा है। ‘स्कूल नर्सरी योजना’ को पांच साल की अवधि के लिए लागू करने का प्रस्ताव है।
प्रतिपूरक वनीकरण कोष प्रबंधन एवं योजना प्राधिकरण (कैम्पा)
तदर्थ कैम्पा के स्थान पर 30.09.2018 से “राष्ट्रीय प्रतिपूरक वनीकरण कोष प्रबंधन एवं योजना प्राधिकरण” (राष्ट्रीय प्राधिकरण) अस्तित्व में आया; जिस दिन प्रतिपूरक वनीकरण कोष (सीएएफ) अधिनियम, 2016 और सीएएफ नियम, 2018 लागू हुए। भारत सरकार में माननीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री राष्ट्रीय प्राधिकरण के संचालन निकाय के अध्यक्ष हैं। राष्ट्रीय प्राधिकरण “राष्ट्रीय प्रतिपूरक वनीकरण कोष” (राष्ट्रीय कोष) का प्रबंधन और उपयोग करता है, जिसे भारत के सार्वजनिक खाते के तहत बनाया गया है। राज्य/केंद्रशासित प्रदेश स्तर पर अन्य कोष को संबंधित राज्यों/ केंद्रशासित प्रदेशों के सार्वजनिक खातों के अंतर्गत “राज्य प्रतिपूरक वनीकरण कोष” के रूप में जाना जाता है। वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 के तहत अनुमोदन के एवज में एकत्र सीएएफ संबंधित राज्य कोष और राष्ट्रीय कोष के बीच 90:10 के अनुपात में वितरित किया जाता है और बजटीय प्रक्रिया के माध्यम से राष्ट्रीय प्राधिकरण और संबंधित राज्य प्राधिकरणों को उपलब्ध कराया जाता है। 07.10.2021 तक 6,63,63.12 करोड़ रुपये की राशि नई दिल्ली में बनाए गए राज्य विशिष्ट बैंक खातों से भारत के सार्वजनिक खाते में भेजे गए और राष्ट्रीय कोष से 32 राज्यों को 48,606.39 करोड़ रुपये वितरित किए गए, जिन्होंने अपने सार्वजनिक खाते बनाए हैं और समन्वय प्रक्रिया को पूरा कर लिया है। अब तक राष्ट्रीय कोष से 1329.78 करोड़ रुपये की अट्ठाईस योजनाओं को मंजूरी दी जा चुकी है। इसी प्रकार, चालू वित्त वर्ष के दौरान संबंधित राज्य निधि से 9,926.48 करोड़ रुपये मूल्य के 31 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों की वार्षिक संचालन योजनाओं (एपीओ) को मंजूरी दी गई है। एपीओ में शामिल गतिविधियां ज्यादातर वानिकी और वन्यजीव प्रबंधन से संबंधित हैं। राष्ट्रीय स्तर पर, 10,63,031 हेक्टेयर के लक्ष्य के मुकाबले 9,06,583 हेक्टेयर में प्रतिपूरक वनरोपण (सीए) की उपलब्धि कैम्पा की प्रमुख उपलब्धियां हैं। सीए का औसत उत्तरजीविता प्रतिशत 73 प्रतिशत बताया गया है।
वन्यजीव
प्रोजेक्ट डॉल्फिन और प्रोजेक्ट लायन शुरू किया गया है और इससे जुड़े पर्यावरणीय प्रभाव भी प्रमुख अभयारण्य और वन क्षेत्रों में लुप्तप्राय प्रजातियों के स्वच्छ पर्यावरण संरक्षण के लिए मजबूत हैं।
- देश में संरक्षित क्षेत्र का दायरा लगातार बढ़ रहा है। संरक्षित क्षेत्रों का कवरेज जो 2014 में देश के भौगोलिक क्षेत्र का 4.90% था, अब बढ़कर 5.03% हो गया है। 2014 में 1,61,081.62 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र के साथ देश में संरक्षित क्षेत्रों की संख्या 740 थी, जो अब बढ़कर 1,71,921 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र के साथ 981 हो गई है।
- बाघ, एशियाई शेर, बड़े एक सींग वाले गैंडे, एशियाई हाथियों आदि जैसी कई प्रजातियों की संख्या में वृद्धि हुई है। जूनोटिक रोगों की आक्रामक निगरानी के लिए वन्यजीव स्वास्थ्य पर ध्यान दिया जा रहा है।
- भारत ने मध्य एशियाई फ्लाईवे के साथ प्रवासी पक्षियों के संरक्षण में अग्रणी भूमिका निभाई है और मध्य एशियाई फ्लाईवे के साथ प्रवासी पक्षियों के संरक्षण पर मध्य एशियाई फ्लाईवे (सीएएफ) रेंज के देशों के साथ अक्टूबर 2021 में दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया था।
- मंत्रालय ने अक्टूबर 2021 में ‘वन और वन्यजीव क्षेत्रों में सतत पारिस्थितिकी पर्यटन के लिए दिशानिर्देश-2021’ जारी किए हैं। ये दिशानिर्देश पारिस्थितिक पर्यटन गतिविधियों में स्थानीय समुदाय की भागीदारी पर जोर देते हैं।
जैवविविधता संरक्षण
भारत ने 2002 में जैविक विविधता (बीडी) अधिनियम को लागू किया, और 1994 में शुरू की गई एक व्यापक परामर्श प्रक्रिया के माध्यम से 2004 में नियमों को अधिसूचित किया। भारत जैव विविधता पर इस तरह के एक व्यापक कानून को पहले लागू करने वाले कुछ देशों में से एक है।
अधिनियम को राष्ट्रीय, राज्य और स्थानीय स्तरों पर त्रिस्तरीय संस्थागत तंत्र के माध्यम से कार्यान्वित किया जाता है। भारत सरकार द्वारा स्थापित राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (एनबीए), राज्य स्तर पर राज्य सरकारों द्वारा स्थापित राज्य जैव विविधता बोर्ड और स्थानीय स्तर पर निर्वाचित निकायों द्वारा गठित जैव विविधता प्रबंधन समितियां (बीएमसी)।
कन्वेंशन ऑन बायोलॉजिकल डायवर्सिटी (सीबीडी) 2022 में कुनमिंग, चीन में पार्टियों के 15वें सम्मेलन (सीओपी 15) का दूसरा भाग आयोजित करेगा जिसमें प्रतिनिधि “2020 के बाद वैश्विक जैव विविधता ढांचा” को अपनाने के लिए एक साथ आएंगे।
प्रस्तावित ढांचे का दृष्टिकोण 2050 तक, जैव विविधता को अहम बनाने, संरक्षित करने, बहाल करने और बुद्धिमानी से उपयोग करना, पारिस्थितिक तंत्र सेवाओं को बनाए रखना, एक स्वस्थ ग्रह को बनाए रखना और सभी लोगों के लिए आवश्यक लाभ प्रदान करना है। 2021 को जैव विविधता कार्रवाई पर एक निर्णायक वर्ष के रूप में देखा जा रहा है। भारत प्रकृति और लोगों के लिए उच्च महत्त्वाकांक्षा गठबंधन में शामिल हो गया, जो 2030 तक दुनिया की कम से कम 30 प्रतिशत भूमि और महासागर की रक्षा करने का आह्वान करता है, जहां भारत ने पहले ही लगभग 27% क्षेत्र को एची लक्ष्य 11 के तहत सीबीडी को संरक्षित करने की सूचना दी है।
सहयोगात्मक अनुसंधान और निवेश के लिए अनुकूल वातावरण को प्रोत्साहित करने, पेटेंट आवेदन प्रक्रिया को सरल बनाने, स्थानीय समुदायों के साथ पहुंच और लाभ साझा करने के दायरे को व्यापक बनाने के लिए और जैव विविधता तथा इसके नागोया प्रोटोकॉल पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के उद्देश्यों और राष्ट्रीय हितों से समझौता किए बिना, जैविक संसाधनों के आगे संरक्षण के लिए जैविक विविधता (संशोधन) विधेयक, 2021 को सरल, सुव्यवस्थित और अनुपालन बोझ को कम करने के लिए पेश किया जा रहा है।
राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण
जैव विविधता अधिनियम, 2002 को लागू करने के लिए स्थापित पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के एक वैधानिक निकाय राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण ने यह सुनिश्चित किया है कि अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने के लिए 28 राज्य जैव विविधता बोर्ड, 8 केंद्र शासित प्रदेश जैव विविधता परिषद और सभी स्थानीय निकायों में 2,76,156 जैव विविधता प्रबंधन समितियों का गठन किया गया है।
एनबीए ने अनुसंधान, वाणिज्यिक उपयोग और पेटेंट के लिए जैविक संसाधनों और पारंपरिक ज्ञान तक पहुंचने के लिए 3000 से अधिक आवेदनों को मंजूरी दी है। बीडी अधिनियम वन और ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले स्थानीय समुदायों के परामर्श से इसके कार्यान्वयन की परिकल्पना करता है।
भारत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त अनुपालन प्रमाणपत्र (आईआरसीसी) जारी करने में अग्रणी देश है जो कानूनी रूप से जैविक संसाधनों तक पहुंचने के लिए हितधारकों को मान्यता देता है। अब तक, वैश्विक स्तर पर जारी किए गए 3297 आईआरसीसी में से, भारत द्वारा 2339 आईआरसीसी जारी किए गए हैं। इसके अलावा, 12 राज्य सरकारों द्वारा 22 जैव विविधता विरासत स्थलों को अधिसूचित किया गया है और 18 राज्यों और 2 केंद्र शासित प्रदेशों में 159 पौधों और 175 जानवरों को संकटग्रस्त प्रजातियों के रूप में अधिसूचित किया गया है। जैव विविधता के वाउचर नमूनों को संरक्षित करने के लिए राष्ट्रीय महत्त्व के सत्रह संस्थानों को राष्ट्रीय भंडार के रूप में मान्यता दी गई है।
आर्द्रभूमि
- भारत में रामसर साइट (अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की आर्द्रभूमि) की संख्या बढ़कर 47 हो गई है, जो 10,90,230 हेक्टेयर क्षेत्र को कवर करती है, जिसमें 2019-2021 के दौरान नामित 21 नए स्थल शामिल हैं। भारत में दक्षिण एशिया में रामसर साइट की संख्या सबसे अधिक है। आर्द्रभूमि के लिए एक समर्पित वेब पोर्टल विकसित किया गया है और 2 अक्टूबर, 2021 (गांधी जयंती) को लॉन्च किया गया था। पोर्टल इंडियनवेटलैंड्सडॉटइन (indianwetlands.in) एक सार्वजनिक रूप से उपलब्ध सूचना और ज्ञान का मंच है जो ज्ञान साझा करने, सूचना प्रसार, क्षमता निर्माण सामग्री की सुविधा प्रदान करता है, और एकल-बिंदु डेटा भंडार प्रदान करता है।
- आर्द्रभूमियों के संरक्षण के लिए चार सूत्रीय दृष्टिकोण के तहत 500 आर्द्रभूमियों के लिए स्वास्थ्य कार्ड तैयार किए गए।
वियना कन्वेंशन, ओजोन के संरक्षण के लिए मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल
पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय का ओजोन सेल भारत में मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के कार्यान्वयन के लिए राष्ट्रीय ओजोन इकाई है और मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के तहत नियंत्रित पदार्थों को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करता है।
नियंत्रित उपयोग के लिए क्लोरोफ्लोरोकार्बन, कार्बन टेट्राक्लोराइड, हैलोन, मिथाइल ब्रोमाइड और मिथाइल क्लोरोफॉर्म को सफलतापूर्वक समाप्त करने के बाद, भारत अब मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के त्वरित फेज-आउट शेड्यूल के अनुसार हाइड्रोक्लोरोफ्लोरोकार्बन को चरणबद्ध तरीके से समाप्त कर रहा है।
भारत सरकार ने केंद्रीय मंत्रिमंडल की मंजूरी के बाद 27 सितंबर 2021 को हाइड्रोफ्लोरोकार्बन को चरणबद्ध तरीके से कम करने के लिए मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल में किगाली संशोधन की पुष्टि की। हाइड्रोफ्लोरोकार्बन का उपयोग एयर कंडीशनर, रेफ्रिजरेटर, एरोसोल, फोम और अन्य उत्पादों में किया जाता है, जो समताप मंडल की ओजोन परत को नष्ट नहीं करते हैं, लेकिन उनमें 12 से 14,000 तक की उच्च ग्लोबल वार्मिंग क्षमता होती है।
मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के किगाली संशोधन के अनुसार, भारत 2032 से 4 चरणों में हाइड्रोफ्लोरोकार्बन को चरणबद्ध तरीके से कम करने काम को पूरा करेगा। देश 2047 तक एचएफसी के उत्पादन और खपत में 85% की कमी लाएगा। मंत्रिमंडल के फैसले के अनुरूप, सभी हितधारकों के साथ परामर्श से राष्ट्रीय रणनीति 2023 तक विकसित किया जाएगा और रणनीति तैयार करने के लिए धन बहुपक्षीय कोष से सुरक्षित किया गया है।
पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने 20 साल की समयावधि के साथ कूलिंग डिमांड को कम करने, रेफ्रिजरेंट ट्रांजिशन, ऊर्जा दक्षता बढ़ाने और बेहतर तकनीक विकल्पों को शामिल करते हुए सभी क्षेत्रों में कूलिंग की दिशा में एक एकीकृत दृष्टि प्रदान करने के लिए मार्च 2019 में इंडिया कूलिंग एक्शन प्लान (आईसीएपी) विकसित किया और लॉन्च किया है।
इमारतों में स्पेस कूलिंग सबसे महत्त्वपूर्ण है और आईसीएपी में लक्ष्यों को प्राप्त करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकता है, जिसे आईसीएपी में दी गई सिफारिशों के कार्यान्वयन के लिए प्राथमिकता दी गई है। 16 सितंबर 2021 को आयोजित विश्व ओजोन दिवस पर इमारतों में स्पेस कूलिंग के लिए सिफारिशों के कार्यान्वयन के लिए कार्य बिंदुओं को अंतिम रूप दिया गया और उसे लॉन्च किया गया और उसे व्यापक रूप से प्रसारित किया गया।
एचसीएफसी फेज आउट मैनेजमेंट प्लान स्टेज- II (एचपीएमपी स्टेज- II) के गैर-निवेश घटक के हिस्से के रूप में निम्नलिखित अध्ययन पूरे किए गए।
क) भारत में कोल्ड चेन सेक्टर में गैर-ओडीएस और निम्न जीडब्ल्यूपी विकल्पों का अनुप्रयोग
ख) गैर-ओडीएस आधारित रेफ्रिजरेंट का उपयोग करने वाले रेफ्रिजरेशन और एयर-कंडीशनिंग उपकरण के लिए सार्वजनिक खरीद नीतियां
ग) आरएसी क्षेत्र में अच्छी सर्विसिंग प्रणाली और ऊर्जा दक्षता
उपरोक्त अध्ययनों को 16 सितंबर 2021 को विश्व ओजोन दिवस पर प्रकाशित और लॉन्च किया गया था और व्यापक रूप से प्रसारित किया गया था।
परियोजना प्रस्ताव तैयार करने के लिए बहुपक्षीय कोष से धन प्राप्त करने के बाद, 2023-2030 से लागू करने के लिए एचपीएमपी के चरण- III की तैयारी शुरू कर दी गई है।
राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम
पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय जनवरी 2019 से देश के गैर-दक्षता वाले शहरों (एनएसी) में वायु प्रदूषण के स्तर को कम करने के लिए राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) को लागू कर रहा है। एनसीएपी को लक्षित 132 शहरों में लागू किया गया है। वायु गुणवत्ता सूचकांक के आसपास की समस्याओं के बेहतर समन्वय, अनुसंधान, पहचान और समाधान के लिए और उससे जुड़े या उसके आकस्मिक मामलों के लिए संसद द्वारा एक अधिनियम के अधिनियमन के जरिये एनसीआर और आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन पर एक आयोग (सीएक्यूएम) का गठन किया गया है।
एकल उपयोग वाले प्लास्टिक के उपयोग से बचना और प्लास्टिक कचरे का कुशल और प्रभावी प्रबंधन
- पीडब्ल्यूएमआर के प्रभावोत्पादक कार्यान्वयन को बढ़ाने के लिए, मंत्रालय ने 12 अगस्त 2021 को प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन संशोधन नियम, 2021 को अधिसूचित किया है, जो 2022 तक पहचान की गई एकल उपयोग वाली प्लास्टिक वस्तुओं को भी प्रतिबंधित करता है, जिनकी उपयोगिता कम है और उनसे कूड़े फैलने की संभावना अधिक होती है।
- अधिसूचना के अनुसार, 1 जुलाई, 2022 से पॉलीस्टाइरीन और विस्तारित पॉलीस्टाइरीन सहित 12 एकल-उपयोग वाली प्लास्टिक वस्तुओं के निर्माण, आयात, संग्रहण, वितरण, बिक्री और उपयोग पर प्रतिबंध रहेगा।
- 30 सितंबर, 2021 से प्लास्टिक कैरी बैग की मोटाई 50 माइक्रोन से बढ़ाकर 75 माइक्रोन और 31 दिसंबर, 2022 से 120 माइक्रोन तक कर दी गई है।
- मंत्रालय ने “एकल उपयोग वाले प्लास्टिक पर जागरूकता अभियान – 2021” का आयोजन किया है।
- राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों से एकल उपयोग वाले प्लास्टिक के उन्मूलन और प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए मुख्य सचिव/प्रशासक की अध्यक्षता में एक विशेष कार्य बल गठित करने का अनुरोध किया गया है। 31 कार्यबलों का गठन किया गया है।
- पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने 6 अक्टूबर 2021 को सार्वजनिक परामर्श के लिए समय-समय पर संशोधित प्लास्टिक कचरा प्रबंधन नियम, 2016 के तहत प्लास्टिक पैकेजिंग के लिए विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व पर मसौदा विनियमों को अधिसूचित किया है।
भूमि क्षरण, मरुस्थलीकरण और सूखे का मुकाबला करना :
- भारत 2030 तक भूमि क्षरण तटस्थता और 2.6 करोड़ हेक्टेयर बंजर भूमि की बहाली के लिए प्रतिबद्ध है, जिसमें 2.1 करोड़ हेक्टेयर बॉन चैलेंज और स्वैच्छिक प्रतिबद्धता के रूप में 50 लाख हेक्टेयर की अतिरिक्त प्रतिबद्धता शामिल है। भारत वर्तमान में अप्रैल 2022 तक 2 वर्षों के लिए यूएनसीसीडी सीओपी का अध्यक्ष है।
- माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने 14 जून 2021 को संयुक्त राष्ट्र महासभा के मरुस्थलीकरण, भूमि क्षरण और सूखे पर उच्च स्तरीय संवाद में भाग लिया, जिसमें भूमि क्षरण की समस्या से निपटने के लिए भारत द्वारा की गई पहलों पर प्रकाश डाला गया।
एकीकृत तटीय क्षेत्र प्रबंधन
ब्लू इकोनॉमी तटीय संसाधनों के सतत विकास के लिए सरकार के प्रमुख क्षेत्रों में से एक है। तटीय और समुद्री संसाधनों के संरक्षण और सुरक्षा, प्रदूषण कम करने के उपायों, तटीय और समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र के प्रबंधन, तटीय समुदाय की सुरक्षा के साथ आजीविका वृद्धि, क्षमता निर्माण को ध्यान में रखते हुए विकास कार्य किए जाएंगे, जिनमें सतत विकास लक्ष्यों को भी हासिल करने की दृष्टि है।
7 राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश में 10 समुद्र तटों को अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप विकसित किया गया है और उन्हें पर्याप्त सुरक्षा उपायों के साथ पर्यावरण के अनुकूल प्रबंधन और पारिस्थितिक रूप से टिकाऊ बुनियादी ढांचे के लिए प्रतिष्ठित ब्लू फ्लैग प्रमाणन प्रदान किया गया है। इसके परिणामस्वरूप बेहतर अपशिष्ट प्रबंधन, स्नान के पानी की गुणवत्ता को बनाए रखने, आत्मनिर्भर सौर ऊर्जा आधारित अवसंरचना, समुद्री कूड़े को रोकने, स्थानीय स्तर पर आजीविका के विकल्प बढ़ाने में मदद मिली है और पर्यटन आधारित अर्थव्यवस्था में वृद्धि हुई है।