आपदा/दुर्घटनाब्लॉग

हालिया भूगर्भीय अतीत में बड़े भूकंपों के चलते गुजरात स्थित कच्छ क्षेत्र के भूदृश्य में असाधारण परिवर्तनों का पता चला है

अवसादी नमूनों पर आधारित एक अध्ययन से यह बात सामने आई है कि पिछले 30,000 वर्षों में अधिक तीव्रता वाली भूकंप की घटनाओं के चलते गुजरात स्थित कच्छ क्षेत्र में कटरोल हिल फॉल्ट के भूदृश्य में असाधारण बदलाव आया है। हालिया भूवैज्ञानिक अतीत में फॉल्ट के भूकंपीय इतिहास के बारे में आश्चर्यजनक भूगर्भीय तथ्य सामने आने के बाद, औद्योगिक गलियारे और भुज शहर सहित प्रमुख बस्तियों के इसके निकट होने के कारण कच्छ बेसिन में एक संशोधित भूकंपीय जोखिम मूल्यांकन व शमन रणनीति की जरूरत पैदा की है।

भूकंप कई प्राकृतिक संकटों में से एक है और इसकी जटिल प्रकृति से अभी भी भूवैज्ञानिक जूझ रहे हैं। इस व्यापक घटना की जटिलता के लिए स्थान और समय को जिम्मेदार माना जाता है। कच्छ क्षेत्र में भूकंपीयता अत्यधिक जटिल है। इसकी वजह कई पूर्व-पश्चिम ट्रेंडिंग फॉल्ट लाइनों के रूप में विभिन्न भूकंपीय स्रोतों की विशेषता है, जो भूकंप उत्पन्न करने वाले अंतरालों पर लगातार संचित टेक्टोनिक तनावों को पैदा करते हैं। 2001 के विनाशकारी भुज भूकंप की घटना के बाद से भूकंप की रियल टाइम निगरानी से संकेत मिलते हैं कि इस क्षेत्र में अधिकांश फॉल्ट जैसे कि कच्छ मैनलेंड फॉल्ट (केएमएफ), दक्षिणी वागड फॉल्ट (एसडब्ल्यूएफ), गेडी फॉल्ट (जीएफ) और आइलैंड बेल्ट फॉल्ट (आईबीएफ) भूंकपीय रूप से सक्रिय हैं। चूंकि, कटरोल हिल फॉल्ट (केएचएफ) जैसे अन्य फॉल्टों के साथ भूकंपीय गतिविधि स्पष्ट नहीं है। इस वजह से क्षेत्र में भूकंपीय खतरे के आकलन और शमन का कार्य वैज्ञानिक रूप से एक जटिल प्रक्रिया हो जाता है।

वडोदरा स्थित महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय, बड़ौदा में भूविज्ञान विभाग के भूवैज्ञानिक भूगर्भीय विधियों का उपयोग करके कच्छ में भूकंपीय गतिविधि को समझने (डिकोड) की कोशिश कर रहे हैं। इस अनुसंधान समूह के हालिया केंद्रित अध्ययनों का नेतृत्व प्रोफेसर एल. एस. चाम्याल और इसके बाद प्रोफेसर डी. एम. मौर्य ने किया है। इन्होंने कटरोल हिल फॉल्ट, जिसे अब तक अच्छी तरह नहीं समझा गया है, के बारे में पिछले ~30,000 वर्षों के दौरान अधिक तीव्रता वाली तीन बड़े भूकंपों से उत्पन्न सतह के टूटने की लंबाई लगभग 21 किलोमीटर होने का अनुमान लगाया गया है। यह अध्ययन क्षेत्र मानचित्रण और परिष्कृत क्षेत्र उपकरणों जैसे, ग्राउंड पेनेट्रेटिंग राडार व प्रयोगशाला के उपकरणों जैसे कि अवसादी नमूनों के विश्लेषण के लिए प्रयुक्त स्कैनिंग इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप का उपयोग करके किया गया।

यह शोध ‘इंजीनियरिंग जियोलॉजी’ और ‘अर्थ सरफेस प्रोसेसेज एंड लैंडफॉर्म्स’ नामक जर्नल में प्रकाशित हुआ है। इस कार्य को मुख्य रूप से भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के एफआईएसटी कार्यक्रम के तहत वित्त पोषित उच्च गुणवत्ता वाले वैज्ञानिक उपकरणों के जरिए संभव बनाया गया। वहीं, वडोदरा स्थित महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय, बड़ौदा के भूविज्ञान विभाग के पास रखे हुए उपकरणों का सक्रियता से भूगर्भीय और संबद्ध विज्ञानों में उन्नत अनुसंधान के लिए उपयोग किया जा रहा है।

विश्वविद्यालय के भूवैज्ञानिकों की टीम ने फॉल्टलाइन से एकत्र किए गए अवसादी नमूनों की सतह का उच्च आवर्धन स्कैनिंग इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप (एसईएम) अध्ययन किया, जो सतह के फॉल्ट का संकेत देने वाली विशेषताओं को दिखाती है। विभिन्न फॉल्ट मापदंडों जैसे कि सतह के टूटने की लंबाई, विस्थापन व फिसलन दर के आधार पर किए गए अध्ययन से यह बात सामने आती है कि कटरोल हिल फॉल्ट (केएचएफ) ने पिछले ~30,000 वर्षों के दौरान अधिक तीव्रता वाली भूकंपीय घटनाओं को उत्पन्न किया है। इसे देखते हुए यह एक विश्वसनीय भूकंपीय स्रोत है, जो कच्छ बेसिन में सतह के टूटने का खतरा पैदा करने में सक्षम है।

इसके अलावा क्षेत्र-आधारित भू-आकृति विज्ञान के अध्ययनों से पता चला है कि इन घटनाओं के चलते भूदृश्य में असाधारण बदलाव हुए हैं। यह फॉल्ट क्षेत्र में गुणावरी नदी के प्रवाह के विघटन और पुनर्गठन में दिखता है। यह जानना दिलचस्प है कि इन घटनाओं ने सतह में टूटने की क्रिया उत्पन्न की, लेकिन 2001 के भुज भूकंप (एमडब्ल्यू 7.7) ने सतह में टूट पैदा नहीं की। संभवत: पुरापाषाण काल के भूकंपों के चलते कटरोल हिल फॉल्ट में सतह का टूटना इसलिए हुआ, क्योंकि वे अपेक्षाकृत उथली गहराई पर उत्पन्न हुए थे। हालांकि, ये घटनाएं कच्छ बेसिन में अन्य भूकंपीय रूप से सक्रिय फॉल्टों की तुलना में हजारों वर्षों के पैमाने पर केएचएफ के लिए एक दीर्घकालिक पुनरावृत्ति अंतराल को दिखाती हैं।

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चित्र 1: कच्छ में कटरोल हिल फॉल्ट क्षेत्र का भूवैज्ञानिक मानचित्र। लाल रंग की रेखा पिछले ~30,000 वर्षों में भूकंप की तीन घटनाओं के दौरान टूटे हुए फॉल्ट की लंबाई को दिखा रही है

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