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सर्वाधिक प्राचीन एवं उपयोगी है मर्म चिकित्सा: डॉ. सुनील जोशी

हरिद्वार, 27 जून। पुनश्चर्या पाठ्यक्रम के नवें दिन अतिथि विद्वानों द्वारा मर्म चिकित्सा एवं आयुर्वेद चिकित्सा पर विस्तार से प्रकाश डाला गया। प्रथम सत्र के मुख्य वक्ता एवं उत्तराखण्ड आयुर्वेद वि.वि. के कुलपति डा. सुनील जोशी का अभिनन्दन पुष्प-गुच्छ प्रदान कर कार्यक्रम के अध्यक्ष प्रति-कुलपति प्रो. महावीर अग्रवाल सहित वि.वि. के अधिकारियों द्वारा किया गया। संगीत विभाग के आचार्य चन्द्रमोहन एवं सुश्री सिमरन द्वारा अतिथियों के सम्मान में स्वागत गीत की भी प्रस्तुति दी गयी।


मर्म विज्ञान एवं मर्म चिकित्सा की वैज्ञानिक व्याख्या करते हुए उन्होंने इस चिकित्सा पद्धति के मूल स्वरूप को केस स्टडी के आधार पर समझाया। इस क्षेत्र में हो रहे नवीन अनुसंधानों से अवगत कराते हुए डॉ. जोशी  ने इस चिकित्सा पद्धति को उच्च रक्तचाप, मधुमेह, विभिन्न प्रकार के दर्द, तन्त्रिका तन्त्र की समस्याओं से लेकर असाध्य रोगों के उपचार में भी काफी उपयोगी बताया। उन्होंने मर्म विज्ञान को सर्वाधिक प्राचीन हीलिंग पद्धति बताते हुए इसे तत्वरित एवं स्थाई प्रभाव देने वाला कहा। 107 मर्म बिन्दुओं की चर्चा के क्रम में डॉ. जोशी ने मणिबन्ध, कटितरुण, स्थपनी, नाड़ी, हृदय मर्म की प्रयोगात्मक व्याख्या प्रस्तुत की।

पुनश्चर्या कार्यक्रम के द्वितीय सत्र में पतंजलि आयुर्वेद महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. अनिल कुमार यादव जी द्वारा आयुर्वेद की व्याख्या ऋषियों द्वारा प्रदत्त जीवन विज्ञान के रूप में की गयी। अपने सम्बोधन में उन्होंने आयुर्वेद के प्रयोजन, दिनचर्या-रात्रिचर्या-ऋतुचर्या, पुरुषार्थ से लेकर सृष्टि के उत्पत्तिक्रम की उपयोगी व्याख्या की। उन्होंने आयुर्वेद चिकित्सा को स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा करने एवं रोगी को निरोगी बनाने के लक्ष्य को प्राप्त करने वाला एक वैज्ञानिक एवं लोकप्रिय पद्धति बताया।
आचार्यो में संस्कृत सम्भाषण की कला विकसित करने के उद्दे्ष्य से आचार्य गौतम  द्वारा संस्कृत कक्षा का आयोजन भी किया गया। पुनश्चर्या पाठ्यक्रम में डॉ. साध्वी देवप्रिया  कुलानुशसिका, संकायाध्यक्ष- मानविकी एवं योग विज्ञान संकाय, कुलसचिव डॉ. पुनिया , संकायाध्यक्ष प्रो. कटियार , सह-कुलानुशासक स्वामी परमार्थदेव , उप-कुलसचिव डॉ. निर्विकार , स्वामी आर्शदेव  सहित वि.वि. के विभिन्न संकायों के आचार्य एवं शोध छात्र उपस्थित रहे। सत्रों का सफल संचालन डॉ. संजय सिंह एवं डॉ. निधीष यादव  द्वारा किया गया।

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