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कालजई उपन्यास के रचयिता मैक्सिम गोर्की, जिनका आज जन्मदिन है

 

— अनन्त आकाश

विश्व प्रसिध्द उपन्यासकार मैक्सिम गोर्की की आज जयन्ती है। आज ही के दिन 1868 में बोल्गा नदी के तट मे एक गरीब बस्ती में हुआ उनके पिता बढ़ई का कार्य करते थे । वह  7 बर्ष की उम्र में अनाथ हो गये थे । उनका जीवन इन्ही बस्तियों में पले बढ़े, बाल्यकाल में उन्होंने नमक फैक्ट्री से कार्य शुरुआत की। तत्पश्चात सड़क में पत्थर व मिट्टी का काम किया तथा चपरासी का काम किया । उनके जीवन के अपार अनुभवों के चलते ही मां जैसे उपन्यास का लेखन सम्भव हो पाया ।


मैक्सिम गोर्की को सर्वाधिक प्रसिध्दी उनके उपन्यास मां से मिली ।
कामरेड लेनिन ने मां उपन्यास की महत्व को इंगित करते हुऐ कहा था कि, “यह एक ज़रूरी किताब है”। “बहुत सारे मज़दूर स्वतःस्फूर्त तरीक़े से क्रान्तिकारी आन्दोलन में शामिल हो गये हैं, उन्हें मैक्सिम गोर्की द्वारा लिखित उपन्यास ‘माँ’ को पढ़ना चाहिए ताकि वे शिक्षित हो सकें । यह उपन्यास वास्तविक घटनाओं पर आधारित हैं, जो वोल्गा के किनारे सोर्मोवो नगर में बीसवीं शताब्दी की शुरुआत में घटित हुईं। गोर्की ने अपने प्रमुख चरित्रों — युवा सर्वहारा बोल्शेविक पावेल व्लासोव और उसकी माँ निलोवना के चित्रण के बजाय, समूचे सर्वहारा वर्ग की भावनाओं का सजीव चित्रण है।


1905-07 की पहली रूसी क्रान्ति के समय लिखी गयी यह पुस्तक आज भी समूची दुनिया के पाठकों के बीच अत्यधिक लोकप्रिय है। दुनिया की पचास से अधिक भाषाओं में इसके सैकड़ों  संस्करण मौजूद है दुनियाभर में इस उपन्यास ने करोड़ों के जीवन को प्रभावित किया है।

आज भी माँ उपन्यास की गिनती विश्व के श्रेष्ठतम उपन्यासों में से है, इस उपन्यास ने केवल रूसी क्रान्ति के लिए जमीन तैयार की बल्कि इसके बाहर दुनियाँ के तमाम नौजवानों व मजदूरों को शिक्षित करने का कार्य किया है । उपन्यास मज़दूरों की हड़तालों व संघर्षो की सच्ची घटना पर आधारित है।

1905 की रूसी क्रान्ति के दौरान मज़दूरों के क्रान्तिकारी उभार के मैक्सिक्म गोर्की प्रत्यक्षदर्शी थे परिणामस्वरूप इस अदभुत उपन्यास की रचना सम्भव हो पायी । जिसने क्रान्तिकारी इतिहास रचने मे महत्वपूर्ण भूमिका अदा की ।

गोर्की माँ उपन्यास एक मज़दूर-परिवार की ज़िन्दगी पर आधारित है। इसमें मुख्य चरित्र ‘निलोवना’ का है, जो ‘माँ ‘ की भूमिका में हैं। पावेल ब्लासोव, निलोवना का बेटा है जो आगे चलकर क्रान्तिकारी दल में शामिल हुआ जिसके चलते उसमें क्रान्तिकारी बदलाव आया। पावेल के व्यवहार में बुनियादी बदलाव आ जाने के बाद से शुरूआती दौर में उसकी माँ परेशान रहती थी और सोचती है कि उसका लड़का अन्य लड़को जैसा नहीं रहा, उसके दोस्त भी अलग तरह के लगते है। घूमने-फिरने के बजाय वह ज़्यादातर समय पढ़ने-लिखने में लगाता है। वह क्या-क्या पढ़ता रहता यही जानने की जिज्ञासा में पावेल की माॅं पढ़ना-लिखना सीखती है, इस तरह धीरे-धीरे अपने बेटे के मक़सद को जान पाती है‌। मक़सद जानने के बाद वह पावेल की सहयोगी बन जाती है और आगे चलकर वह क्रान्तिकारी कामों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती है। अब वह, पावेल की माँ से ऊपर उठकर उसके दोस्तों की भी माँ बन जाती है, उसके दोस्तों को अपने बेटे जैसा मानती हैं। पावेल के दोस्त भी पावेल की माँ को, माँ कहकर ही बुलाते हैं। क्रान्तिकारी गतिविधियों में शामिल होने की वजह से निवोलना का व्यक्तित्व ही बदल जाता है। जब पावेल गिरफ़्तार हो जाता है, तब उसकी माँ बाहर का मोर्चा सम्भालती है और प्रचार कार्य को रूकने नहीं देती है। आगे चलकर पावेल की मांँ, समाजवादी विचारों को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं।
उनका निधन में 1936 में मास्को के क्रेमलिन मे हुआ जहाँ उनकी समाधि आज भी मौजूद है।

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