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किसानों का पलायन कृषि पर गंभीर संकट का संकेत ही है

The FAO estimates that about 763 million people move within their own courtiers due to hunger, poverty and the increase in extreme weather related events linked to climate change is forcing farmers to migrate in search of better livelihood opportunities.  Almost a third of India’s population, over 300 million is migrants.


-जयसिंह रावत
भारत एक कृषि प्रधान देश रहा है। लेकिन देश में कृषि की तुलना में उद्योग और सेवा आदि क्षेत्रों का तेजी से विस्तार होने के कारण इस मौलिक व्यवसाय का योगदान जीडीपी में जिस तेजी से घट रहा है उससे कृषि कर्म में लगे लोगों का एक स्थान से दूसरे स्थान में प्रवासन के कारण किसानों को खेती में प्रवृत्त रखना एक गंभीर चुनौती ही है। यह दोधारी चुनौती एक बड़ी आबादी को आजीविका के अवसर प्रदान करने के साथ ही जनसंख्या की आवश्यकतानुसार देश का अन्न उत्पादन बनाये रखने की भी है। हर रोज किसानों की आत्महत्याओं की समस्या भी इसी चुनौती से जुड़ी हुयी है।

हर साल होता है करोड़ों किसानों का प्रवासन

खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) के एक आंकलन के अनुसार भूख, गरीबी और जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले मौसमी बदलाव की वजह से लगभग 76.3 करोड़ लोग अपने ही देश में किसानी छोड़कर बेहतर आजीविका अवसरों की तलाश में प्रवास कर जाते हैं। भारत की लगभग एक तिहाई आबादी यानी 30 करोड़ से अधिक लोग प्रवासी हैं। जनगणना रिपोर्ट 2011 के अनुसार लगभग 84 प्रतिशत लोग अपने राज्य के भीतर ही प्रवासन करते हैं और लगभग 2 प्रतिशत लोग एक राज्य से दूसरे राज्य में चले जाते हैं। पूर्वी और उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों से बड़ी तादाद में लोग काम और बेहतर रोजगार की तलाश में भारत के विभिन्न हिस्सों में चले जाते हैं। इनमें से ज्यादातर लोग अल्पकालीन प्रवासी हैं जो थोड़े समय के लिए मजदूरी करते हैं और इसके बाद अपने मूल राज्य में लौट कर अपनी छोटी जोतों पर काम करते हैं। एनसीआरबी द्वारा दिसम्बर 2023 में जारी क्राइम स्टेटिस्टिक्स के अनुसार वर्ष 2022 में देश में 11,290 किसानों ने आत्महत्या कीं जिनमें 6083 कृषि मजदूर थे।

अर्थव्यवस्था में 15 प्रतिशत रह गयी कृषि की हिस्सेदारी

प्रवासन दुनिया भर में कई गरीब लोगों के लिए जीवन जीने का एक तरीका है और सहस्राब्दियों से रहा है। लेकिन कृषिकर्म से जुड़े लोगों के लिये प्रवासन एक मजबूरी है जो कि बढ़ती जा रही है। अपर्याप्त कृषि भूमि, विकास की कमी और खराब पारिवारिक अर्थव्यवस्था के कारण मजदूरों को अपना क्षेत्र छोड़ने के लिए मजबूर होना पडत़ा है। भारत की अर्थव्यवस्था सदैव कृषि आधारित रही है। कृषि उत्पादन में मुख्य घटक कृषि क्षेत्र के मजदूर हैं। एक अनुमान के अनुसार ग्रामीण भारत में 35 प्रतिशत श्रम शक्ति की अधिकता है जबकि वहां उतनी श्रम शक्ति के लिये पर्याप्त रोजगार उपलब्ध नहीं हो पाता। जिस कारण लोगों को एक प्रदेश छोड़ कर दूसरे कृषि प्रधान प्रदेश में सीजनल प्रवासन करना पड़ता है। इससे श्रम की आपूर्ति और मांग में असंतुलन पैदा हो जाता है। कृषि क्षेत्र के लिये चिन्ता का विषय यह है कि राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में कृषि की हिस्सेदारी घट रही है। लोकसभा में 19 दिसम्बर 2023 को कृषि मंत्री द्वारा दी गयी जानकारी के अनुसार औद्योगिक और सेवा क्षेत्र में तेजी से वृद्धि के कारण भारत की जीडीपी में कृषि की हिस्सेदारी 1990-91 में 35 प्रतिशत से घटकर 2022-23 में 15 प्रतिशत रह गई। फिर भी कृषि क्षेत्र भारत के लगभग आधे कार्यबल को रोजगार देता है और भारतीय सकल घरेलू उत्पाद में अधिकांश अस्थिरता के लिए जिम्मेदार है।

उद्योग भी नहीं घटा सकते कृषि का महत्व

भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि की हिस्सेदारी घटते जाने का यह मतलब कतई नहीं कि इस आधारभूत क्षेत्र का महत्व ही घट गया है। भारत के आर्थिक और सामाजिक ढांचे में इस क्षेत्र का महत्व इस सूचक से कहीं अधिक है। क्योंकि भारत के लगभग तीन-चौथाई परिवार ग्रामीण आय पर निर्भर हैं। भारत के लगभग 70 प्रतिशत गरीब ग्रामीण क्षेत्रों में पाए जाते हैं और भारत की खाद्य सुरक्षा अनाज की फसलों के उत्पादन के साथ-साथ बढ़ती बढ़ती आबादी की मांगों को पूरा करने के लिए फलों, सब्जियों और दूध के उत्पादन को बढ़ाने पर निर्भर करती है। ऐसा करने के लिए एक उत्पादक, प्रतिस्पर्धी, विविध और टिकाऊ कृषि क्षेत्र को त्वरित गति से उभरने की आवश्यकता होगी। भारत एक वैश्विक कृषि महाशक्ति है। यह दूध, दालों और मसालों का दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक है और इसमें दुनिया का सबसे बड़ा मवेशी झुंड है। यह चावल, गेहूं, कपास, गन्ना, मछली, भेड़ और बकरी का मांस, फल, सब्जियां और चाय का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। देश में लगभग 19.5 करोड़ हेक्टेयर भूमि पर खेती की जाती है, जिसमें से लगभग 63 प्रतिशत वर्षा आधारित है, जबकि 37 प्रतिशत सिंचित है।

चुनौतियां ही चुनौतियां हैं कृषि क्षेत्र के समक्ष

कृषक समुदाय के समक्ष पारंपरिक पेशे से जुड़े रहने में एक नहीं बल्कि अनेक चुनौतियां हैं। कई किसान बाजार की कीमतों में उतार-चढ़ाव, मौसम की अनिश्चितता और बढ़ती इनपुट लागत जैसे विभिन्न कारकों के कारण कम और अस्थिर आय से जूझते हैं। यह आर्थिक अस्थिरता उनके लिए केवल कृषि के माध्यम से अपना गुजारा करना कठिन बना देती है। पारंपरिक कृषि पद्धतियों में अक्सर आधुनिक कृषि पद्धतियों की तुलना में दक्षता और उत्पादकता की कमी होती है। आधुनिक उपकरणों, मशीनरी और प्रौद्योगिकियों तक सीमित पहुंच उत्पादकता और प्रतिस्पर्धात्मकता को बाधित करती है, जिससे युवा पीढ़ी कृषि पेशे में प्रवेश करने या जारी रखने से हतोत्साहित हो रही है। विरासत कानूनों और जनसंख्या वृद्धि के कारण पीढ़ियों से कृषि भूमि छोटे-छोटे भूखंडों में विखंडित हो रही है। छोटी और बिखरी जोत खेती को आर्थिक रूप से कम व्यवहार्य बनाती है और मशीनीकरण और आधुनिक कृषि पद्धतियों को अपनाने में बाधा डालती है। जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षा का पैटर्न अनियमित हो गया है, तापमान में वृद्धि हुई है, और लगातार चरम मौसम की घटनाएं हो रही हैं, जिससे पानी की कमी और फसलें बर्बाद हो रही हैं। सिंचाई और जलवायु-अनुकूल कृषि तकनीकों तक पहुंच की कमी इन चुनौतियों को और बढ़ा देती है। अपर्याप्त बुनियादी ढांचे, परिवहन बाधाओं और बिचौलियों के शोषण के कारण किसानों को अक्सर बाजारों तक पहुंचने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इसके अतिरिक्त, कृषि वस्तुओं में मूल्य अस्थिरता के परिणामस्वरूप किसानों की आय में महत्वपूर्ण उतार-चढ़ाव हो सकता है। कई किसान बीज, उर्वरक और कीटनाशक जैसे इनपुट खरीदने के लिए ऋण पर निर्भर हैं। हालाँकि, उच्च ब्याज दरें, सूदखोरी ऋण प्रथाएं और फसल की विफलता किसानों के बीच ऋणग्रस्तता और वित्तीय संकट पैदा कर सकती है, जिससे वे पारंपरिक खेती से दूर हो सकते हैं। कुछ समाजों में, शहरी नौकरियों की तुलना में कृषि को कम प्रतिष्ठा वाले व्यवसाय के रूप में देखा जाता है। ये परिस्थितियां युवा पीढ़ी को कृषि को करियर विकल्प के रूप में अपनाने से हतोत्साहित करती है। इन चुनौतियों से निपटने के लिए ऋण तक पहुंच में सुधार, कृषि पद्धतियों को आधुनिक बनाने, बाजार संपर्क बढ़ाने, सिंचाई के बुनियादी ढांचे को प्रदान करने, जलवायु-लचीली कृषि तकनीकों को बढ़ावा देने और टिकाऊ कृषि के लिए एक सहायक पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करते हुए व्यापक नीतिगत हस्तक्षेप की आवश्यकता है।

कृषि को आकर्षक और फायदेमंद बनाना अति आवश्यक

राष्ट्रीय कृषक आयोग की सिफारिशों को मानते हुए 2007 में संसद ने राष्ट्रीय कृषि नीति को अपनाया था। इसमें कृषि में युवाओं की संलिप्तता बढ़ाने पर जोर दिया गया है। नीति आयोग का भी प्रयास है कि कृषि संबंधी सहयोगी उद्योगों के जरिए युवाओं को खेती में संलग्न किया जाए। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने ‘आर्या’ यानी अट्रैक्टिंग एंड रिटेनिंग यूथ इन एग्रीकल्चर, की शुरूआत की है। इसका उद्देश्य है कि सतत आय का जरिया प्रदान करके ग्रामीण क्षेत्रों में युवाओं के लिए अवसर पैदा करना।‘आर्या’ की शुरूआत के समय प्रोफेसर एम.एस. स्वामीनाथन ने कहा था, ‘जब तक कृषि को आकर्षक और फायदेमंद नहीं बनाया जाएगा, तब तक युवाओं को इस क्षेत्र में कायम रखने में कठनाई होगी।’

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