राजस्थान  का एकमात्र हिल स्टेशन” माउंट आबू” जो पर्यटन, वन्य जीव  व सुहावने मौसम के लिए जाना जाता

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—रिपोर्ट – प्रभुपाल सिंह रावत

माउंट आबू एक ऊँचे अरावली पर्वत की आच्छादित श्रृंखलाओं घिरा हुआ है।इसे आबू पर्वत के नाम से भी जानते हैं।इसकी ऊँचाई समुद्र तल से 6000 फीट है।माउंट आबू पहुँचने के लिए नजदीकी रेलवे-स्टेशन अबू रोड़ है।अबू रोड़ माउंट आबू की तलहटी में स्थित है।ये तो राजस्थान के अन्य स्टेशन की ही तरह है।माउंट आबू एक प्रसिद्ध हिल स्टेशन है जैसे लैंसडौन मसूरी आदि,लेकिन उनसे भिन्न है।

उत्तराखंड से माउंट आबू की दूरी 1100 से 1300 किलोमीटर है।यहाँ पहुँचने के लिए अबू रोड़ रेलवे-स्टेशन से बस टैक्सी बराबर मिलती हैं जिसकी दूरी 28 किलोमीटर पड़ती है।यहाँ का मौसम पल पल बदली होता रहता है।दिन में कई बार वातावरण बदल जाता है। यहाँ पत्थरों की बड़ी बड़ी शिलाएं हैं।पत्थर का अनुमान नहीं लगाया जा सकता कि कितना बड़ा व कहाँ तक फैला है।प्रत्येक पत्थर पर एक विशेष आकृति खुदी हुई है,जो गोलनुमा आकार में है।यहाँ के स्थानीय लोगों को पूछने पर वे भी न बता सके कि ये आकृति कैसी बनी है।यहाँ पर जो भी आवासीय भवन हैं वे सब टिन शैड के बने हैं।

यहाँ एक छावनी क्षेत्र भी है।यह स्थान पर्यटकों के घूमने फिरने व मनोरंजन के लिए सुविधाजनक स्थान है।यहाँ का मौसम सर्दियों के लिए थोड़ा कष्टकारी है,शेष दिनों के लिए एक समान वातावरण है।बारिश,धूप ,कोहरा सब समान रूप से है।विशेषतः गर्मियों के लिए सगून भरा वातावरण रहता है।

यहाँ पर भारतीय सेना की एक टुकड़ी भी स्थित है जो कि विशिष्ट मेहमानों व सैन्य बल के लिए आवाभगत में व्यस्त रहती है।वर्तमान में यहाँ पर उच्चकोटि की व कयी गैलेन्टरी अवार्ड,सैन्य प्रशस्ति पत्र से सम्मानित बटालियन गढ़वाल राइफल्स की 19 वाहिनी की टुकड़ी मौजूद है।इस यूनिट का अब यहाँ तैनाती का आखिरी वर्ष है।

माउंट आबू पूर्ण रूप से पहाड़ी क्षेत्र है।चारों तरफ बड़े बड़े विशालकाय पत्थर,गुफाएं,छोटी प्रजाति के पेड़ पौधे हैं।पेड़ पौधों में खासकर खजूर आदि हैं।यहाँ मंदिरों की भरमार है।इस स्टेशन में केन्द्रीय रिजर्व पुलिस की अकादमी भी है।जहाँ से ट्रेनी पुलिस अधिकारी तैयार होते हैं।यह एक वाइल्डलाइफ सेंचुरी स्टेशन है।पक्के भवन बनाने की अनुमति नहीं है।ये हिल स्टेशन मंदिरों,आलीशान होटलों,विशालकाय झील व विशेष प्रकार के आकृति वाले पत्थरों के लिए प्रसिद्ध है।जो पर्यटकों व सैलानियों का मन मोह लेता है।यहाँ पर बहुत लम्बी चौडी झील है। जिसे नक्की झील के नाम से विख्यात है।

 

इस झील की गहराई 65- 70 फीट की गहराई है।यह झील दो भागों में विभाजित है।एक हिस्सा सिविलियन नागरिकों के लिए तथा दूसरा भाग सैन्य बल,अर्द्धसैनिक बल,उनसे सम्बन्धित परिवारों के लिए आरक्षित है।इन सुरक्षा बलों से कोई शुल्क नहीं लिया जाता।इसका संचालन सी आर पी एफ करती है।उसके तैराकी कमांडो बोट को चलाते हैं।लाइफ जैकेट पहननी अनिवार्य है।यहाँ निजी स्कूल के अलावा केन्द्रीय विद्यालय भी है।जो भी सेना की एक बटालियन यहाँ पर रहती है उसके परिवार जनों को सरकारी आवास ,कैन्टीन,अस्पताल,मनोरंजन ,फल सब्जी आदि की समुचित व्यवस्था है।बाहर से आने वाले सैन्य बलों व उनके परिवारजनों के लिए रहने,ठहरने,भोजन आदि की चाक चौबंद व्यवस्था रहती है।बाजार भी नजदीक ही है।सिविल आबादी भी खूब है।

यहाँ अधिकतर गुजराती समुदाय के पर्यटक आते हैं,क्योंकि यह राजस्थान का आखिरी स्टेशन है।यह जिला सिरोही,राजस्थान में पड्ता है।इसी स्टेशन से गुजरात राज्य की सीमा आरम्भ हो जाती है।
गुजरात की राजधानी अहमदाबाद की दूरी मात्र 180 किलोमीटर है।यहाँ विदेशी पर्यटक भी देखे जा सकते हैं।

माउंट आबू का सबसे उच्च स्थान गुरुशिखा है।वहाँ पर एक भव्य व मनमोहक मंदिर है।नक्की झील के सड़क के ऊपर मेंढकनुमा TOD ROCK एक विशालकाय पत्थर की अनोखी आकृति है।जिसे लोग देखने जाते हैं।यह झील के पास सड़क से 400 मीटर की दूरी पर है।हफ्ते के शनिवार रविवार को इस हिल स्टेशन में भीड़तंत्र इतना बढ जाता है कि पाँव रखने की जगह नहीं होती।पास ही दिलवाडा एक जगह है वहाँ भी मंदिर है।मंदिरों की इतनी संख्या है कि गिनती असम्भव है।

यहाँ जंगली भालू कभी भी देखे जा सकते हैं लेकिन ये किसी को भी जनहानि नहीं पहुंचाते हैं।दिन में भी सडकों पत्थरों ,आवासीय घरों में विवरण करते देखे जा सकते हैं।भालू सेना के लंगर ,आवासीय परिसर में जूठा भोजन व पानी पीने आते हैं।लेकिन नुकसान की कोई खबर नहीं होती।

इस अरावली पहाड़ी पर कोई भी जल स्रोत नहीं है।नहाने,कपड़े धोने,बगीचे की सिचाई के लिए झील का पानी ही पम्पिग से प्रयोग होता है।सेना के लिए पेयजल के लिए वाटर प्लान्ट लगा है।ये यूनिट यहाँ पर स्वतंत्र है जो अपनी दैनिक दिनचर्या व सैन्य पर्यटकों के आवभगत में व्यस्त है।

लेखक को अपनी यूनिट में आने पर बड़ी प्रसन्नता हुई वे भी इसी बटालियन से सेवानिवृत्त हुए हैं।भले ही उस दौर के लोग नहीं मिले लेकिन जिस यूनिट में शुरुआती दिन बिताये याद आ ही जाती है।

रिपोर्ट संकलन- प्रभुपाल सिंह रावत,देहरादून

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