आजादी के 76 साल बाद भी सकण्ड वासियों को नसीब नहीं हो पायी एक अदद सड़क
-दिग्पाल गुसांईं की रिपोर्ट –
गौचर 2 अगस्त। आजादी के 76 साल बीत जाने के बाद भी विकास खंड कर्णप्रयाग के सकंड गांव वासियों को यातायात सुविधा नसीब नहीं हो पाई है। हालात इतने चिंता जनक है कि पैदल मार्गों के क्षतिग्रस्त हो जाने से ग्रामीण जान जोखिम में डालकर गंतव्य तक पहुंच पाते हैं।
विकास से कोसों दूर जनपद चमोली के विकास खंड कर्णप्रयाग के सकंड गांव जाने के लिए गौचर सिदोली मोटर मार्ग से होकर टैक्सी से वौंला बैंड या खरसाईं तक पहुंचा जाता है।इन दोनों जगहों से आजादी के समय से वन विभाग द्वारा निर्मित बीहड़ जंगलों के बीच से पैदल मार्ग से गांव के लिए लगभग 8 से 10 किलोमीटर का रास्ता तय कर गांव तक पहुंचा जाता है।
लगभग सोलह परिवारों का यह गांव मूलभूत सुविधाओं के अभाव में लगातार पलायन का दंश झेल रहा है। गांव में संचालित एक मात्र प्राथमिक विद्यालय छात्र संख्या के अभाव में कुछ साल पहले बंद कर दिया गया है। यहां के नौनिहालों को प्राथमिक शिक्षा ग्रहण करने के लिए बीहड़ जंगली रास्ते से होकर खरसाईं जाना पड़ता है। सक्षम लोग गौचर, कर्णप्रयाग या अन्य जगहों पर किराए के मकान पर रहकर अपने बच्चों को तालीम दिलवाते हैं।
गंभीर बीमारी में खासकर महिलाओं को प्रसव कालीन के दौरान खासी मुसीबत झेलनी पड़ती है। गांव के लोग आलू, ककड़ी,राजमा ,चोलाई आदि तमाम नगदी फसल प्रचुर मात्रा में उगाते हैं। लेकिन यातायात की सुविधा न होने की वजह से ग्रामीणों को नुक़सान झेलना पड़ता है। गांव के रंग कर्मी दिगंबर बिष्ट बताते हैं कि सकंड गांव को आजादी के बाद से कब तक एक ही सुविधा मिल पाई है वह है पोलिंग बूथ की। प्रत्याशी किसी पार्टी का हो वह केवल वोट मांगने के वक्त गांव में आकर तमाम आस्वादन देकर वोट तो बटोर लेते हैं लेकिन जीतने के बाद किसी ने भी ग्रामीणों की सुध लेने की जहमत नहीं उठाई है।
गंभीर बीमारी के वक्त डंडी कंडी का सहारा लेना पड़ता है।प्रसव कालीन के समय महिलाएं रास्ते में दम तोड़ देती हैं।सिंदरवाणी सकंड मोटर मार्ग का निर्माण कार्य वषों से अधर में लटका हुआ है। लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है। वन विभाग भी धनाभाव के कारण पैदल रास्तों की मरम्मत करने से पीछे हट जाता है। बिजली के तार खंभों के बजाय पेड़ों पर बांधकर काम चलाया जा रहा है जो कभी भी खतरे का कारण बन सकते हैं। जनसंख्या की कमी के कारण इस गांव को 8 किलोमीटर दूर खरसाईं में मिलाया गया है। इससे इस गांव के राजनिति में दखल रखने वालों को प्रतिनिधित्व करने का मौका ही नहीं मिलता है।
48 परिवारों के इस गांव में अब मात्र 16 परिवार शेष रह गए हैं। उनका कहना है कि ग्राम पंचायतों को मिलने वाले विकास का पैसा भी इस गांव को नसीब नहीं हो पाता है। केंद्र सरकार की हर घर नल योजना भी उन दो चार लोगों के घरों में लगाए गए हैं जो गांव में रहते ही नहीं हैं। वह भी पानी के अभाव में लोगों का मुंह चिढ़ा रहे हैं।