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प्रख्यात भूविज्ञानी प्रो0 एमपीएस बिष्ट ने छोड़ा सरकार का साथ

 

By Usha Rawat

uttarakhandhimalaya.in

देहरादून, 20 जनवरी। जाने माने भू विज्ञानी प्रो0 महेन्द्र प्रताप सिंह बिष्ट (एमपीएस बिष्ट) ने उत्तराखण्ड अन्तरिक्ष केन्द्र के निदेशक पद से इस्तीफा दे दिया है। इस्तीफे के बाद प्रोफेसर बिष्ट वापस अपने पूर्व संस्थान गढ़वाल केन्द्रीय विश्व विद्यालय में लौट गये हैं। वह विश्वविद्यालय में भूगर्व विज्ञान के प्रोफेसर हैं। ऐसे वक्त पर जबकि जोशीमठ समेत कई नगरों पर भूगर्वीय संकट छा रहा है, प्रो0 बिष्ट का इस्तीफा राज्य सरकार की बड़ी विफलता और राज्य को हानि माना जा रहा है।

             Prof. MPS Bisht

जानकारों के अनुसार अपनी स्वतंत्र और खरी टिप्पणियों के लिये मशहूर प्रो0 बिष्ट सरकार की नौकरशाही के बीच स्वयं को असहज पा रहे थे। चूंकि जोशीमठ पर उनका काफी अध्ययन था और राज्य गठन से पहले से ही वह इस विषय पर काम कर रहे थे, इसलिये वास्तविक खतरे के बारे में निरन्तर बेवाक टिप्पणियां कर सरकार और जनता को आगाह कर रहे थे। वर्ष 2010 में अन्तर्राष्ट्रीय विज्ञान जर्नल में ’’ डिस्आस्टर लूम्स लार्ज ऑन जोशीमठ’’ नाम से छपा उनका शोधपत्र काफी संदर्भित होता रहा। अब जोशीमठ की स्थिति को देखते हुये भी उस शोध पत्र का महत्व भूविज्ञानियों के साथ ही जनता के लिये भी काफी बढ़ गया है। अगर सन् 2010 में ही उनके शोध पर उत्तराखण्ड सरकार जाग जाती तो शायद यह स्थिति न आती।

हिमालयी भूविज्ञान पर प्रो0 विष्ट के अब तक अन्तर्राष्ट्रीय शोध पत्रिकाओं में 33 से अधिक शोध पत्र प्रकाशित हो चुके हैं और 228 प्रशस्तियां मिल चुकी हैं। उनको उत्तराखण्ड के चप्पे-चप्पे की जानकारी के साथ ही इस हिमालयी राज्य के भूगर्व की विस्तृत जानकारी है। इस स्तर के भूविज्ञानी    को जोशीमठ के संकट के बाद उत्पन्न स्थिति में सरकार का साथ छोड़ना राज्य सरकार की बड़ी नाकामयाबी माना जा रहा है। यूसैक के निदेशक के तौर पर भी उन्होंने राज्य के विकास में अंतरिक्ष प्रोद्योगिकी के बेहतर उपयोग का महौल तैयार करने के साथ ही प्रोद्योगिकी के व्यापक प्रसार के लिये महत्वपूर्ण कार्य किया। उनके कार्यकाल में छात्र, शिक्षक, पर्यावरणविद और शोधार्थी यूसैक से जुड़े। इस दिशा में उन्होंने कुछ विश्वविद्यालयों से समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर भी किये।

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