वर्ष 2000 के बाद बाहरी लोगो की हुई नियुक्तियों पर सवाल?

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मेरा साफ मानना है कि 9 नवम्बर 2000 के बाद से अब तक प्रदेश में समूह ग व घ पदों पर हुई तमाम सरकारी नियुक्तियों में फर्जीवाड़ा और उत्तराखंड से बाहर के लोगों को चोर दरवाजे से नौकरी देने का सिलसिला अस्थायी भाजपा सरकार के पहले मुख्यमंत्री नित्यानन्द स्वामी और कांग्रेस की चुनी सरकार के मुख्यमंत्री कतिपय विकास पुरुष एनडी तिवारी के कार्यकाल में शुरू हुआ, जो आज भी जारी है.
आज अधिकतर सरकारी विभागों में अगर सीबीआई जांच हो तो पता चलेगा कि वर्ष 2000 के बाद से तथाकथित नियुक्ति पाये समूह ग व घ और राज्य अधिकार के अंर्तगत नियुक्ति पाये छोटे अधिकारी काफी संख्या में उत्तराखंड से बाहर के प्रदेशों के मूल निवासी हैं. जिनकी नियुक्ति चोर दरवाजे से स्वामी और एनडी तिवारी के कार्यकाल में शुरु हुई.
यधपि ये दोनों पूर्व मुख्यमंत्री आज इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनके कारनामों से 42 शहादतों और लंबे जुझारू संघर्ष बने नवगठित उत्तराखंड प्रदेश में स्थानीय मूल के शिक्षित बैरोजगारों का हक मार कर घूस और सिफारिश से बाहरी प्रदेशों के लोग सरकारी नौकरी पर काबिज हो गये.
जांच 2016 से नहीं,बल्कि सीबीआई वर्ष 2000 से जांच करे, अगर से यह साबित हो कि वर्ष 2000 से किसी विभाग में बाबू या चर्तुर्थ श्रेणी पद पर बैठे व्यक्ति का मूल निवास और शैक्षिक प्रमाणपत्र उत्तराखण्ड से बाहर के हैं, और वह बिना कोई परीक्षा दिए चोर दरवाजे से आया तो उसे हटाकर उत्तराखण्ड के शिक्षित बैरोजगार युवां को उन पदों पर नियुक्ति दी जाये.यधपि सरकारी नौकरियों की परीक्षायें ही यहां धांधली से भरी हैं, और अगर कोई ऐसी परीक्षा से बाहरी प्रदेशों के शख्स की नियुक्ति हुई हो, तो वो भी रदद हो.
उत्तराखण्ड निर्माण के तत्काल बाद नये पहाडी प्रदेश को बर्बादी के रास्ते पर डालने वाले दोनों स्वर्गीय मुख्यमंत्रियों ने सुनियोजित उत्तराखण्ड के मूल पर्वतीय चरित्र को नष्ट किया. नित्यानंद स्वामी कम दोषी इसलिए हैं कि उनके हाथ में बहुत ज्यादा संवैधानिक अधिकार नहीं थे, पर एन डी तिवारी ज्यादा दोषी हैं, जिन्होने न केवल उत्तराखंड का मूल पर्वतीय स्वरूप नष्ट किया, बल्कि उत्तराखंड को बाहरी लोगों का उपजाऊ चरागाह बना दिया. याद रहे उत्तराखंड राज्य हमें मुफ्त में नहीं मिला और न ही यह कोई धर्मशाला है, इसकी मांग का जुझारू और लंबा संघर्ष बलिदानों से भरा है, जो स्थानीय जनों के रोजगार और जल जंगल जमीन के हक हकूकों के लिए हुआ था. पिछले 22 सालों का इतिहास गवाह है कांग्रेस और भाजपा सरकारों ने पहाड के साथ लगातार विश्वासघात किया और मूल निवासियों के हकों पर डाकेजनी की.
(जयप्रकाश उत्तराखंडी की फेसबुक वाल से साभार)

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