उत्तराखण्ड आन्दोलनकारियों का चिन्ह्नीकरण और सरकार की भूमिका

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अनन्त आकाश
2003 में तत्कालीन नारायण दत्त तिवारी सरकार द्वारा उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलनकारियों को सम्मान देने एवं उनके भबिष्य को मद्देनजर उन्हें नौकरियों एवं पेन्शन की सुविधाएं दी गई तथा बिशेष अवसरों पर उन्हें स्वतंत्रता सैनानी के समान दर्ज देने का फैसला लिया तथा उनके परिवार के सदस्यों को सरकारी नौकरियों में आरक्षण का  प्रावधान रखा इसके अलावा राज्य परिवहन सेवाओं में उनके आवागमन की निशुल्क व्यवस्था की गई ।

शुरुआती दौर में आन्दोलनकारियों के एक बड़े हिस्से को चिन्ह्नित किया गया।राजनैतिक एवं कतिपय अनेक कारणों से आन्दोलन से जुड़े कई अगली पंक्ति से लेकर अनेक आन्दोलकारी इस लाभ से बंचित हो गये जिसके मूल में सरकारों की भेदभावपूर्ण नीतियां सीधतौर पर जिम्मेदार हैं ।इन नीतियों के चलते आन्दोलनकारियों में भारी रोष व्याप्त है, जो समय -समय पर अनेक धरनों एवं प्रदर्शनों के रूप में आयेदिन देखा जा सकता है ।

सरकारी भेदभावपूर्ण नीतियों के खिलाफ के परिणामस्वरूप आक्रोश कभी भी उगर रूप ले सकता है ।इसलिए सरकार,राज्य शासक राजनैतिक दलों एवं सरकार द्वारा गठित आन्दोलनकारी सम्मान परिषद को इस ओर बिशेष धान देकर चिन्ह्नीकरण की प्रक्रिया बिना देर किये शुरुआत करनी चाहिए । हमारी पार्टी ने शुरुआती दौर से लेकर राज्य स्थापना के 21वि बर्षगांठ पर भी इस सन्दर्भ जिलाधिकारी देहरादून को ज्ञापन दिया इससे पूर्व कोई समय ऐसा नहीं रहा होगी जब सीपीएम एवं जनवादी महिला समिति ने ज्ञापन न दिया हो ।अब इन्तजार सरकार के फैसले का है ।

(इस आलेख के लेखक स्वयं राज्य आंदोलनकारी हैँ और मार्क्सवादी पार्टी के नेता हैँ – एडमिन )

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