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राजीवगांधी नवोदय विद्यालय संतुधार, पौड़ी गढ़वाल पुनः सावालों के घेरे में..

विद्यालय प्रशासन  सब कुछ जानते हुए भी आँख मूंदे बैठा है।

० कक्षा 11 व 12 के छात्रों द्वारा अपने से निचली कक्षा के बच्चों की रैगिंग की जाती है।

० विगत कुछ वर्षों में विद्यार्थियों द्वारा स्कूल छोड़े जाने की सूचनाएं मिल रही है।
० विद्यालय को मिल रही रसद व आर्थिक मदद अध्यनरत बच्चों को नही मिल रही। कैम्पस का भोजन  बहुत खराब।

-देवेश आदमी

यूं तो उत्तराखंड के पहाड़ी जनपदों में शिक्षा का स्तर किसी से छिपा नही है। यह जगजाहिर है कि सरकारें उन संस्थानों को बंद करने पर तुली है जिन से राज्य को आर्थिक मजबूती नही मिल रही है जनता मूलभूत सुविधाओं से जूझ रही है और सरकारें समाज को भटकाने का कार्य बदस्तूर कर रही है। शिक्षा का स्तर गिराया ही इसलिए जाता है कि समाज निरक्षर रहे ताकि समाज सवाल पूछने लायक न बने। याकि लोग जब भी हाथ खड़ा करें तो राजनीतिक पार्टियों के नारे लगाने के लिए हाथ खड़ा हो।

एक बड़े जनसमुदाय को भीड़ में तब्दील करने के लिए समुदाय को निरक्षर रहना जरूरी है। यही कारण है कि उत्तराखंड के पहाड़ों में शिक्षा के लिए आधार माने जाने वाले राजीवगांधी नवोदय विद्यालय पर लगातार कुछ वर्षों से उंगलियां उठ रही है। विद्यालय से लगातार अभिभावक अपने बच्चों का दाखिला निरस्त कर यथावत कर रहे हैं।

विद्यार्थियों का कहना है कि हम समाचार पत्रों में  छपे विज्ञापनों  की चकाचौंध देख कर स्कूल आये थे परंतु यहां की हालत देख खुद को ठगा महसूस कर रहे है। जिस विद्यालय में शिक्षा लेने के लिए हजारों निर्धन बच्चों ने रात दिन मेहनत कर हसीन सपने सजाए थे वह विद्यालय जल्द भूतहा हो जाने की कगार पर खड़ा है। स्कूल में चल रही रैगिंग किसी से छिपी नही है। छोटे बच्चों को जाति धर्म के आधार पर बड़ी कक्षा के बच्चों द्वारा सताया जाना रंगभेद जैसे अनेकों तरह की यातनाएं झेलनी पड़ती है।

टूथपेस्ट, साबुन,तेल,बूट पोलिस इत्यादि छोटे बच्चों से जबर्दस्ती छीन लिया जाता है बड़े बच्चों के लिए गर्मपानी करना झाड़ू मारना बिस्तर बनाना जैसे अनेकों कार्य छोटे बच्चों को करना पड़ता है। बच्चों के अभिभावक घर से बच्चों के लिए खाद्यान्न वस्तु भेजते है जिसे बड़ी कक्षा के बच्चे जबर्दस्ती छीन कर खा जाते है। शिकायत करने पर रैगिंग का सामना करना पड़ता है।

वर्ष 2005 में CBSE दिल्ली बोर्ड की तर्ज पर इस विद्यालय की नींव इसलिए रखी गई थी कि दूरस्थ पहाड़ों में शिक्षा की लौ जले । समान शिक्षा के साथ बच्चों को सामाजिक समानता भी प्राप्त हो। परंतु आज शिक्षा व संस्कार हासिये पर हैं । नैतिकता का स्तर रसातल में जा चुका है ज्ञान का पिटारा कहीं घिंगर की झाड़ियों में घुम हो गया है।

420 विद्यार्थियों व 22 अध्यापकों की क्षमता वाला यह विद्यालय आज विवादों  में  घिरा हुआ  है। विद्यालय जिस गुणवत्ता हेतु संचालित किया गया था उस का उद्देश्य पूर्ण होता नही दिख रहा है। विद्यालय में अनेकों गैंग पनप रहे है। जिस के लिए स्कूल प्रसासन ने अभीतक कोई उचित कदम नही उठाये है। स्कूल में वॉर्डन सिर्फ खानापूर्ति हेतु नियुक्त किये गए है। रात्रि के समय वॉर्डन होस्टल पर बाहर से ताला मार कर चले जाते है जिस के बाद वहां अराजकता  शुरू  हो जाती है। ऐसा भी  आरोप है  कि जब कभी कोई बच्चा बीमार हो जाता है तो उसे एक कमरे में बंद कर लिया जाता है। जिस भौगोलिक दसा में स्कूल बना है वहाँ बर्फबारी व कोहरा आम बात है। जिस से शहरों या तराई के बच्चे मौसम के अनुकूल खुद को नही ढाल पाते हैँ । जिस से अनेकों बच्चे बीमार पड़ जाते हैं।  स्कूल प्रसासन उन बच्चों को एक कमरे में बंद कर लेता है और उपचार हेतु बच्चे अपने परिजनों पर आश्रित हो जाते है। जिलाधिकारी पौड़ी को इस मामले की जानकारी है या नही, यह तो खबर सामने आने पर पता चलेगा। परंतु स्कूल प्रशासन   इस बात से भलीभांति वाकिब है कि स्कूल में सब कुछ ठीक ठाक नहीं  है ।

लेखक – देवेश आदमी

( ये विचार लेखक के हैँ । एडमिन आरोपों की पुष्टि नहीं करते। प्रशासन से अपेक्षा की जाती  है कि  इस मामले को आती गंभीरता से ले और तत्काल निष्पक्ष जाँच कराये –एडमिन/ संपादक मंडल)

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