आइ आइ टी खड़कपुर ने सुपरकैपेसिटर से तेजी से चार्ज होने वाली ई-साइकिल विकसित की
-उषा रावत
वैज्ञानिकों ने नैनो-सामग्री का उपयोग ना-आयन-आधारित बैटरियों और सुपरकैपेसिटरों को विकसित करने के लिए किया है, जिन्हें तेजी से चार्ज किया जा सकता है और उन्हें ई-साइकिल में लगाया जा सकता है। कम लागत वाली ना-आयन आधारित प्रौद्योगिकियां सस्ती होंगी और इससे ई-साइकिल की लागत में काफी कमी आने की उम्मीद है। एक आम साइकिल की तुलना में ई-साइकिल के जरिए हम ज्यादा दूसरी आसनी से तय कर सकते हैं।
ई-साइकिल आम साइकिल का ही एक इलेक्ट्रिक रूप है. जहां हम एक आम साइकिल को पैडल के जरिए चलाते हैं, वहीं इस साइकिल में एक बैटरी और एक इलेक्ट्रिक मोटर लगी होती है. जिसे एक स्कूटर की तरह आसानी से चलाया जा सकता है। इसका सबसे बड़ा फायदा ये होता है कि इससे लंबी दूरी आसानी से बिना धके हुए तय की जा सकती है।
सोडियम-आयन (ना-आयन) बैटरियों ने सोडियम की उच्च प्राकृतिक प्रचुरता और परिणामस्वरूप ना-आयन बैटरी की कम लागत के कारण लिथियम-आयन बैटरी के लिए एक संभावित पूरक तकनीक के रूप में अकादमिक और व्यावसायिक रुचि को बढ़ाया है।ई-साइकिल में मांग अभी ज्यादा नहीं है. इसकी सबसे बड़ी वजह चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी होना है।इलेक्ट्रिक साइकिल आजकल भारत के लगभग सभी शहरों की सड़कों पर दिखने लगी है। विदेशों में तो इलेक्ट्रिक साइकिलें खूब बिकती हैं और जैसे-जैसे भारत में लोग इसके फायदे जान रहे हैं, वे भी इलेक्ट्रिक साइकिल बारे में ज्यादा से ज्यादा जानने की कोशिश कर रहे हैं।
ई-साइकिल के तीन मुख्य भाग होते हैं. पहला इलेक्ट्रिक मोटर, जब आप पेडल करते हैं तो यह मोटर टॉर्क प्रदान करती है। दूसरा बैटरी, यह मोटर को चलाती है। एक फुल चार्ज बैटरी ई-बाइक को 5 से 6 घंटे तक की ड्राइविंग रेंज मिलती है। तीसरा सेंसर, यह एक बार जब आप पैडल करना शुरू करते हैं, तो सेंसर मोटर को आगे बढ़ाता है और राइडर को सहायता प्रदान करता है।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान खड़गपुर में भौतिकी विभाग में प्रोफेसर, डॉ. अमरीश चंद्र, ऊर्जा भंडारण प्रौद्योगिकियों को विकसित करने के लिए शोध कर रहे हैं, जो ना-आयन पर आधारित हैं, और उनकी टीम ने बड़ी संख्या में नैनो सामग्री विकसित की है। टीम ने सोडियम आयरन फॉस्फेट और सोडियम मैंगनीज फॉस्फेट का उपयोग किया है जिसे उन्होंने भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के प्रौद्योगिकी मिशन डिवीजन (टीएमडी) के समर्थन से ना-आयन-आधारित बैटरी और सुपरकैपेसिटर प्राप्त करने के लिए संश्लेषित किया है। इन सोडियम सामग्रियों को बैटरी विकसित करने के लिए कार्बन के विभिन्न नई संरचनाओं के साथ जोड़ा गया था।
ये सोडियम सामग्री ली-आधारित सामग्री से सस्ती, उच्च प्रदर्शन करने वाली है, और इसे औद्योगिक स्तर के उत्पादन तक बढ़ाया जा सकता है। ना-आयन सेल को भी अनेक अन्य भंडारण तकनीकों की तुलना में सुरक्षित विकल्प बनाने के लिए कैपेसिटर के समान शून्य वोल्ट में पूरी तरह से डिस्चार्ज किया जा सकता है। इस तथ्य का लाभ उठाते हुए कि ना-आयन बैटरी को तेजी से चार्ज किया जा सकता है, डॉ. अमरीश ने इसे ई-साइकिल में जोड़ा है जो आम जनता के लिए एक आसान, किफायती विकल्प है।एक पेट्रोल बाइक की तुलना में एक इलेक्ट्रिक साइकिल की बैटरी चार्ज करने का खर्च करीब 1/20 तक कम हो सकता है।
आगे विकसित करने के साथ, इन वाहनों की कीमत 10-15 हजार रुपये की सीमा तक लाई जा सकती है, जिससे यह ली-आयन भंडारण प्रौद्योगिकी-आधारित ई-साइकिलों की तुलना में लगभग 25 प्रतिशत सस्ती है। चूंकि ना-आयन-आधारित बैटरियों के निपटान की रणनीति सरल होगी, यह जलवायु को होने वाले नुकसान को कम करने में भी मदद कर सकती है। सुपरकैपसिटर पर शोध जर्नल ऑफ पावर सोर्सेज में प्रकाशित हुआ था, और ई-साइकिल में इन ना-आयन-आधारित बैटरी के उपयोग पर कुछ पेटेंट पाइपलाइन में हैं। इस शोध कार्य को ऊर्जा भंडारण योजना के लिए डीएसटी की सामग्री के तहत वित्त पोषित किया गया था।
उम्रदराज लोगों के लिए इलेक्ट्रिक साइकिल बढ़िया वाहन है। इससे वे घुटनों पर बिना ज्यादा जोर लगाये, आराम से साइकिलिंग कर सकते हैं। इसका वजन बाइक/स्कूटी की तुलना में काफी कम होने की वजह से संभालना भी आसान है। बुजुर्गों के लिए इलेक्ट्रिक साइकिल सैर के साथ-साथ हल्की एक्सरसाइज़ करने का भी साधन है।