पर्यावरणब्लॉग

दुर्लभ एवं संकटापन्न औषधीय पौधे दुर्लभ एवं संकटापन्न औषधीय पौधे दुर्लभ एवं संकटापन्न औषधीय पौधे

-बी. एस. सजवान

अध्यक्ष, एनएमपीबी

आयुर्वेद, योग और प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध तथा होम्योपैथी (आयुष) विभाग के अंतर्गत नवम्बर, 2000 में गठित राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड पर स्वस्थाने औरस्थान बाह्य औषधीय पौधों के संरक्षण एवं कृषि हेतु किए गए उपायों के प्रोत्साहन का दायित्व है। 9वीं और 10वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान इस बोर्ड ने लगभग 30,000 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में औषधीय पौधों के संरक्षण हेतु राज्य वन विभागों और स्वयंसेवी एजेंसियों की सहायता की। 40,000 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में औषधीय पौधों की खेती के लिए 5000 से अधिक किसानों को वित्तीय सहायता भी प्रदान की गई। इसके अलावा, अनेक अनुसंधान एवं विकास संस्थाओं और विश्वविद्यालयों को कृषि तकनीक, कृषक प्रशिक्षण, प्राथमिक संग्राहकों, जनजातियों और अन्य के विकास के लिए सहायता प्रदान की गई। बोर्ड ने जागरुकता कैंपों, कार्यशालाओं के आयोजन एवं विद्यालयों तथा घरों में जड़ी-बूटी के उद्यानों को लगाने से समाज के सभी वर्गों में औषधीय पौधों और स्वास्थ्य रक्षा में उसकी भूमिका के प्रति पर्याप्त रुचि आई है। 8000 करोड़ रु. से अधिक के आयुर्वेद उद्योग को कुछ संकटापन्न पौधों से मिलने वाले अवयवों के रूप में कच्चे माल की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है, जिसकी वजह से लोगों को पर्याप्त सुरक्षित औषधियां उपलब्ध कराने की इस उद्योग की योग्यता पर गंभीर प्रश्न चिह्न लग गया है।

भारत में औषधीय पौधों की मांग और पूर्ति के बारे में बोर्ड द्वारा 2007-08 में किए एक अध्ययन से पता लगा कि आयुर्वेदिक उद्योग द्वारा उपयोग में लाए जाने वाले कुछ पौधों की कमी चौकाने वाली है। उसके बाद बोर्ड ने राज्यों से अत्यधिक मांग वाले कुछ दुर्लभ एवं संकटापन्न प्रजातियों के संरक्षण और रोपण के प्रस्ताव आमंत्रित करने के लिए एक विशेष अभियान चलाया। सीता अशोक जोकि अशोकारिष्ट का एक महत्वपूर्ण घटक गुग्गुल, एक कांटेदार झाड़ी है, जिससे गोंद और राल प्राप्त होती और 100 से अधिक आयुर्वेदिक दवाइयों में प्रयुक्त होती है तथा दशमूल, जिसका व्यापक रूप से आयुर्वेदिक दवा दशमूलारिष्ट में उपयोग किया जाता है, आदि प्रजातियों पर विशेष ध्यान दिया गया। सीता अशोक की छाल की अनुमानित मांग 2000 मीट्रिक टन से भी अधिक है, फिर भी वनों में इसकी उपलब्धता अत्यंत दुर्लभ है। इसी तरह हालांकि गुग्गुल की गोंद और राल की 1000 मी.टन से अधिक मात्रा का उपयोग आयुर्वेद उद्योग द्वारा किया जाता है, लेकिन इसका 90 प्रतिशत भाग बाहर से आयात किया जाता है।

अतः बोर्ड ने गुजरात और राजस्थान के वन क्षेत्र में 4000 हेक्टेयर से अधिक वन क्षेत्र में गुग्गल कर्नाटक, उड़ीसा और केरल राज्यों में 800 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में सीता अशोक तथा गुजरात, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, केरल, त्रिपुरा और आंध्र प्रदेश राज्यों में 1100 हेक्टेयर में दशमूल वृक्ष के संरक्षण और रोपण की मंजूरी दी है। ऊंचे पहाड़ों पर उगने वाले अतीस, कुथ, कुटकी जैसे पौधों का संरक्षण करने तथा उनका प्रचार करने हेतु हिमालय क्षेत्र में जमीनी स्तर पर कार्यरत गैर सरकारी संगठनों के माध्यम से विशेष अभियान चलाया गया।

बोर्ड द्वारा श्री चण्डी प्रकाश भट्ट की अध्यक्षता में गठित कार्यदल पहाड़ों पर बसे जन-समुदाय को ऊंचे पहाड़ों पर उगने वाले औषधीय पौधों के प्रति जागरुकता पैदा करने के लिए प्रमुख प्रेरक रहा है। स्कूल एंड होम हर्बल जैसे जागरूकता कार्यक्रम समाज को औषधीय पौधों का संरक्षण करने हेतु प्रेरित करने की दिशा में अत्यधिक लोकप्रिय रहे हैं। केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा अक्तूबर, 2009 में दिल्ली में होम हर्बल गार्डन कार्यक्रम शुरू किया गया था। इस वर्ष इसके कार्यान्वयन को रेजीडेंट वेल्फेयर एसोसिएशनों के माध्यम से आगे बढ़ाए जाने का विचार है। स्कूल हर्बल गार्डन कार्यक्रम के अंतर्गत स्वास्थ्यवर्धन में हमारी जैव-विविधता की भूमिका के बारे में भावी नागरिकों के बीच जागरूकता पैदा करने के लिए देश के विभिन्न भागों में 1000 से अधिक स्कूलों को शामिल किया गया है।

आयुष तथा उत्पादों की गुणवत्ता, उनकी कार्यक्षमता तथा सुरक्षा एक ऐसी चुनौती है, जिसका सामना यह क्षेत्र कर रहा है। उत्पादन की गुणवत्ता उसके निर्माण के लिए उपयोग किये जाने वाले कच्चे माल की गुणवत्ता तथा निर्माण प्रक्रिया पर निर्भर करती है। आयुष और हर्बल उद्योग द्वारा प्रयोग किया गया अधिकांश कच्चा माल वनों से प्राप्त किया जाता है जिसमें प्राथमिक संग्राहकों, अंतर-मध्यस्थों, व्यावसायिकों, यहां तक कि निर्माताओं द्वारा अपनाई गई पद्धतियों से तैयार उत्पाद की गुणवत्ता सुनिश्चित नहीं होती है। यही कारण है कि एनएमपीबी ने विश्व स्वास्थ्य संगठन की आर्थिक मदद से वन्य औषधियों के संबंध में बेहतर कृषि पद्धतियां (जीएपी) तथा बेहतर फील्ड कलेक्शन पद्धतियां विकसित की हैं।

इन दिशा-निर्देशों को अपनाया गया है और अब स्टेकहोल्डरों के जरिए इनका प्रसार किए जाने का विचार है। क्वालिटी कौंसिल ऑफ इंडिया के सहयोग से थर्ड पार्टी सर्टिफिकेशन को लागू करने के लिए उपाय पहले ही शुरू कर दिए गए हैं। औषधीय पादपों के व्यापार में पारदर्शिता की कमी भी चिन्ता का मुख्य क्षेत्र बन गया है और स्थिति यह हो गई है कि निर्माता उनके द्वारा उपयोग किए जाने वाले औषधीय पादपों के बारे में सूचना देने में भी कतरा रहे हैं। इस समस्या से निपटने के लिए बोर्ड की पहल पर ड्रग एंड कोसमेटिक्स एक्ट, 1940 के अंतर्गत बनाए गए नियमों में संशोधन किया गया है, जिसके अनुसार औषधि निर्माताओं के लिए वार्षिक आधार पर रिकार्ड रखना तथा उसे प्रस्तुत करना आवश्यक कर दिया गया है। इससे व्यापार में पारदर्शिता आएगी तथा औषधीय पौधों की गुणवत्ता में भी सुधार होगा। बोर्ड 11वीं योजना में प्रगति के नए कदम की ओर अग्रसर हो रहा है। 10वीं योजना के 142 करोड़ रु. की तुलना में 11वीं योजना में 990 करोड़ का परिव्यय रखा गया है, जोकि सात गुणा बढ़ा है। सरकार द्वारा नेशनल मिशन ऑन मेडिसिनल प्लांट्स के रूप में नई पहल को मंजूरी दी गई है, जिसमें बाजार अभिप्रेरित खेती को बढ़ावा देने तथा औषधीय पौधों के जरिए कृषि व्यापार में वृद्धि की संभावना को ध्यान में रखकर चुनिंदा क्षेत्रों के विकास पर ध्यान केन्द्रित किया गया है

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