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अतीत के झरोखे से ( भाग-2 ): आजादी का आंदोलन और देहरादून

अनन्त आकाश

पंजाब और उत्तर प्रदेश के मध्य में पड़ने के कारण जहां देहरादून में पेशावर और कश्मीर तक के आन्दोलनकारियों का आना जाना होता था वहीं उत्तराखण्ड के रास्ते भी देहरादून और ऋषिकेश से गुजरते थे, इसलिये गढ़वाल और टिहरी रियासत के स्वतंत्रता आन्दोलन का संचालन भी देहरादून से होता था। मसूरी, हरिद्वार और देहरादून जैसे तीन नगरों के चलते पूर्वी उत्तर प्रदेश मध्य प्रदेश तथा तराई के लोगों का आवागमन भी बराबर इस क्षेत्र में होता रहा। देहरादून जेल में जवाहर लाल नेहरू जैसे देश के बड़े-बड़े नेता बन्द रहे। राजा महेन्द्र प्रताप सिंह जैसे अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के क्रान्तिकारी ने देहरादून को अपना निवास स्थान बनाया था

Raja Mahendra Pratap and Mrs. Indira Gandhi
Thakur Chandan Singh

स्वतंत्रता संग्राम के दौरान गांधी, नेहरू, तिलक आदि जैसे राष्ट्रीय नेताओं का यहाँ आना जाना रहा। आजादी के आंदोलन में यहाँ  के निवासियों ने अग्रणीय भूमिका निभाई। कई जगह पिकेटिंग व सत्याग्रह आंदोलन हुये। गाँधी जी के कहने पर खड़ग बहादुर के नेतृत्व में यहाँ खाराखेत नामक स्थान पर नमक बनाकर नमक कानून को तोड़ा गया जिसमें चौधरी बिहारी लाल, हुलास वर्मा, महावीर त्यागी, नरदेव शास्त्री सरीखे नेताओं को सजा हुई। एक ओर यहाँ कांग्रेस के नेतृत्व में, बाबू बुलाकी राम, शर्मदा त्यागी, ठाकुर चंदन सिंह, श्रीराम शर्मा आजादी के आंदोलन को आगे बढ़ा रहे थे वहीं यह देहरादून शहर राष्ट्रीय फलक के चमकदार क्रान्तिकारी सितारों एम0 एन0 राय, रास बिहारी बोस, राजा महेन्द्र प्रताप, शिव वर्मा और  जैसों की कर्मस्थली व शरणस्थली बना। राहुल साँकृत्यायन के मसूरी प्रवास से मजदूर आंदोलन को बल मिला।

सन् 1912 ईसवी में पूर्ण सिंह नेगी जी ने शिक्षा के प्रसार के लिये डी0 ए0 वी0 कालेज की स्थापना हेतु अपनी जमीन दान में दे दी थी। पत्रकारिता के माध्यम से टिहरी राजशाही के खिलाफ़ व आजादी के आंदोलन में गढ़वाली के संपादक विशम्भरदत्त

International communist leader and humanist MN Roy

चंदोला,  युगवाणी के संपादक गोपेश्वर प्रसाद कोठियाल, नया जमाना के राधाकृष्ण कुकरेती अपनी विशिष्ट भूमिका का निर्वहन कर रहे थे। आखिर 15 अगस्त सन् 1947 को अंग्रेजी हुकूमत से देश को आजादी मिल गई, पर देश में अन्य देशी रियासतों की तरह टिहरी रियासत तो अभी राजा के अधीन ही थी। टिहरी रियासत में राजा के कुशासन के विरुद्ध जनविद्रोह अब चरम पर था।

Freedom fighter hulas verma

श्रीदेव सुमन की शहादत रंग ला रही थी। 11 जनवरी 1948 के दिन कीर्तिनगर में राजा की मिलिशिया पुलिस के एस0 डी0 ओ0 ने कामरेड नागेन्द्रऔर मोलू भरदारी की गोली मार कर हत्या कर दी जिन्होंने कीर्तिनगर को अपने कब्जे में लेकर राष्ट्रीय ध्वज फहरा दिया था। कामरेड नागेद्र सकलानी और कामरेड मोलू भरदारी, श्रीदेव सुमन, तिलाडी़ विदोह के शहीदों की शहादत को कौन भूल सकता है।

कामरेड गुणानंद पथिक द्वारा राजशाही के खिलाफ जन जागरण, कामरेड चंद्रसिंह गढ़वाली के नेतृत्व में 12 जनवरी 1948 को शहीदों की शव यात्रा टिहरी के लिये निकली। शहीदों के शव पार्टी के झण्डे से लिपटे हुये थे। स्थानीय जनता अपने इन नौजवान शहीदों के दर्शन कर रही थी और इन पर फूल वर्षा कर रही थी। इस यात्रा के पीछे भारी जन समूह उमड़ पड़ा। 15 जनवरी को शहीदों की अन्त्येष्टि के बाद कामरेड चन्द्रसिंह गढ़वाली ने टिहरी को राजशाही से आजाद होने की घोषणा कर दी थी। 16 जनवरी को आयोजित विशाल जन सभा में देहरादून से कांग्रेसी नेता महावीर त्यागी, नरदेव शास्त्री आदि नेताओं ने भी भाग लिया था। बाद में टिहरी रियासत का भारतीय गणतंत्र में विलय कर लिया गया।

Revolutionary Paripoornanad Painuli and writer Journalist Jay Singh Rawat.

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