विधानसभा बैकडोर भर्तियों पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को कांग्रेस ने अधूरा न्याय बताया

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देहरादून, 15 दिसंबर(उ हि) ।उत्तराखंड विधानसभा में बैकडोर से की गई भर्तियों के प्रकरण में आज सर्वोच्च न्यायालय ने भी उच्च न्यायालय के निर्णय को सही ठहरा दिया है। अदालत के इस फैसले को जहाँ सत्ताधारी दल का एक धड़ा प्रफुल्लित है और इस  विधानसभा अध्यक्ष की जीत के रूप में प्रचारित कर रहा है, वहीं विपक्षी कांग्रेस ने इसे अधूरा न्याय बताया है।

उपरोक्त फैसला आने पर उत्तराखंड कांग्रेस की मुख्य प्रवक्ता गरिमा मेहरा दसौनी ने कहा कि निश्चित रूप से उच्चतम न्यायालय के फैसले का पूरा सम्मान है परंतु कांग्रेस पहले दिन से यह कहती आई है की यह लड़ाई कानूनी या वैधानिक नहीं थी ,यह लड़ाई नैतिकता की लड़ाई थी।
दसौनी ने विधानसभा स्पीकर के भ्रष्टाचार पर एक तरफा चोट करने पर सवाल उठाया है ।

दसोनी ने कहा कि यदि बैक डोर नियुक्तियां पाने वाले गलत हैं तो बैक डोर नियुक्तियां करने वाले सही कैसे हो सकते हैं? दसोनी ने कहा कि नैतिकता के आधार पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने तो विधानसभा में अपने सगे संबंधियों को बैक डोर से नियुक्ति दिलाने वाले अपने दो शीर्ष पदाधिकारियों को उत्तराखंड से बेदखल कर दंडित कर दिया परंतु भाजपा संगठन अभी भी अपने नेताओं जिनका नाम सीधे तौर पर इन नियुक्तियों में आ रहा है उन पर कार्यवाही करने में असक्षम साबित हुई है।

दसोनी ने कहा की उच्चतम न्यायालय का यह निर्णय एक तरफ विधानसभा कर्मचारियों के लिए तो झटका है ही वहीं प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के द्वारा इन नियुक्तियों में विचलन के प्रयोग पर भी सवाल उठाता है।

दसौनी ने कहा कि जो नियुक्तियां आज निरस्त हुई हैं वह मुख्यमंत्री के आदेशों पर हुई हैं वही लगातार विधानसभा स्पीकर का मुख्यमंत्री के आदेश पर ही सवाल खड़ा करना बताता है कि भारतीय जनता पार्टी में वर्चस्व की लड़ाई अपने चरम पर है।

दसोनी ने कहा कि जिन नेताओं ने अपने रसूख और संबंधों के आधार पर इन कर्मचारियों को नियुक्त किया था वह आज सत्ता की मलाई चाट रहे हैं और उनका बाल भी बांका नहीं हुआ।भाजपा राज में कर्मचारियों पर तो भ्रष्टाचार के नाम पर गाज गिराई गई है परंतु अपनों को बड़ी सफाई से बचा लिया गया है यह निश्चित तौर पर अनैतिक है।

दसौनी ने कहा की जिस कोटिया कमेटी की जांच रिपोर्ट के बाद स्पीकर ने अलग-अलग समय पर असंवैधानिक तरीके से भर्ती हुए 228 कर्मचारियों को बर्खास्त किया था उसने शायद आधी ही रिपोर्ट तैयार की।
दसौनी ने कहा की कोटिया कमेटी की रिपोर्ट सार्वजनिक की जानी चाहिए ताकि पता चल सके कि क्या जांच सिर्फ असंवैधानिक तरह से नियुक्ति पाए हुए लोगों पर हुई है या नियुक्ति करने वालों पर भी कोटिया कमेटी ने कोई होमवर्क किया?दसौनी ने कहा कि आज राज्य को जिस तरह से बेरोजगारी के दंश ने जकड़ा हुआ है उसमें ना चाहते हुए भी कर्मचारी नौकरी देने वालों के बहकावे में फंस गए।

दसौनी ने कहा की निश्चित ही गलत को सही नहीं ठहराया जा सकता परंतु जिन लोगों ने भी इन कर्मचारियों को नियुक्ति दी थी वह लोग भी इस अपराध में बराबर के हिस्सेदार हैं ।
आज विधानसभा कर्मचारी जीवन के उस दौराहे पर खड़े हैं जहां वह नौकरी से तो हाथ धो ही बैठे हैं परंतु नौकरी पाने के लिए उन्होंने पता नहीं अपना और क्या-क्या गंवा दिया।जिन लोगों ने नियुक्तियां दी उन लोगों की तो पौ बारह हो रखी है जो कि निश्चित तौर पर निरस्त हुए कर्मचारियों के साथ एक भद्दा मजाक है।

 

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