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वैज्ञानिक विभागों के प्रमुखों ने भारत को एक मजबूत ज्ञान अर्थव्यवस्था बनाने के तरीकों पर चर्चा की

उत्तराखंड हिमालय ब्यूरो
नयी दिल्ली, 4 जनवरी ।  भारत सरकार के वैज्ञानिक विभागों के प्रमुखों ने नागपुर में भारतीय विज्ञान कांग्रेस के पहले पूर्ण सत्र में भारत को ज्ञान प्रधान अर्थव्यवस्था बनाने की रूपरेखा तैयार की और उसके रास्ते में आने वाली चुनौतियों तथा अवसरों पर विचार-विमर्श किया।

भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार, प्रोफेसर ए के सूद ने रेखांकित किया कि भारत विश्व स्तर पर स्टार्ट-अप्स के लिए तीसरे सबसे बड़े पारिस्थितिकी तंत्र के रूप में उभरा है और भारत के गहन प्रौद्योगिकी स्टार्टअप परिदृश्य में तेजी से वृद्धि देखी गई हैI विशेष रूप से इसे उपभोक्ता प्रौद्योगिकी, मोटर वाहन, मीडिया और मनोरंजन, कृषि प्रौद्योगिकी, ऊर्जा उपयोगिताओं और साइबर सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में बढ़ावा देने के लिए अभी भी स्थान उपलब्ध है।

उन्होंने कहा कि क्वांटम विज्ञान और प्रौद्योगिकी, उन्नत संचार प्रौद्योगिकियों, स्वच्छ ऊर्जा, डिजिटल परिवर्तन एवं एक स्वास्थ्य मिशन में तकनीकी क्रांति का कन्वर्जेन्स वैश्विक ज्ञान गहन अर्थव्यवस्था की दिशा में भारत की प्रगति को बढ़ावा दे रहा है।

“विज्ञान भारत के परिवर्तन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा और यह परिवर्तन हमारी प्रयोगशालाओं के माध्यम से होगा। इसलिए यह हम वैज्ञानिकों का उत्तरदायित्व है कि हम यह सोचें कि भविष्य की चुनौतियों का सामना करने के लिए हमारा विज्ञान कितना प्रासंगिक होगा।“ विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव डॉ. एस चंद्रशेखर ने कहा कि हमें भविष्य की समस्याओं के समाधान के लिए अपने प्रश्नों को तैयार करना ही होगा भले ही वह विनिर्माण या स्थिरता के विषयों में हों।

 

उन्होंने रेखांकित किया कि विज्ञान को भविष्य के कारखानों एवं ऐसी डिजाइन निर्माण विधियों के बारे में कल्पना करने की आवश्यकता है जो उनके अनुकूल एवं अनुरूप होने के अलावा  उत्पादन के साथ इनपुट का इस प्रकार मिलान करें जिससे अपशिष्ट को कम से कम किया जा सकेI साथ ही चक्रीय विज्ञान की अवधारणा विकसित करके कृषि प्रौद्योगिकियों का निर्माण करें जिससे सब्सिडी की आवश्यकता को समाप्त कर सकें और वैकल्पिक गतिशीलता विकल्प ढूंढ सकें। साथ ही ये कम प्रदूषण फैलाने वाले भी हों।

डॉ. चंद्रशेखर ने जमीनी-वैश्विक जुड़ाव को विकसित करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला ताकि जमीनी स्तर से निकले समाधान वैश्विक समस्याओं को हल करने के लिए कुछ संकेत दे सकें।

सफल वैज्ञानिक समाधानों में स्थिरता की आवश्यकता पर जोर देते हुए, वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसन्धान परिषद (सीएसआईआर) की महानिदेशक एन कलैसेल्वी ने अगले सात वर्षों में भारत के लिए महत्वपूर्ण पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन, ऊर्जा एवं गतिशीलता, खाद्य और पोषण, उद्योग 4.0/5.0, वैज्ञानिक कार्यों में सुगमता एवं वैज्ञानिक प्रतिभा को आकर्षित करने के साथ और उसे बनाए रखना जैसे कुछ क्षेत्रों में भारत की चुनौतियों तथा अवसरों को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि ये सभी भारत को एक विकसित देश बनाने के लिए अगले 17 वर्षों की नींव रखेंगे।

जैव प्रौद्योगिकी विभाग की वरिष्ठ सलाहकार डॉ. अलका शर्मा ने ऐसे जैव–विनिर्माण पर जोर दिया जो औद्योगीकरण की नई लहर के रूप में जीवाश्म ईंधन-व्युत्पन्न रसायनों के विनिर्माण के स्थान पर जैविक प्रणालियों का उपयोग करता हो। उन्होंने कहा कि इससे वायुमंडलीय कार्बन को उसके स्थिर रूप में इस प्रकार लॉक किया जा सकता है जिससे एक ऐसा मार्ग प्रशस्त होगा जो भारत को स्थिरता में दुनिया का अग्रणी देश बना देगा।

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