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जल्द देखिए, उत्तराखंड में कौन जाट का छोरा, कौन बनिया और कौन सांप?

–दिनेश शास्त्री
आज एक पुराना किस्सा याद आ रहा है, उन दिनों में हरियाणा में पत्रकारिता कर रहा था। बात 1991 की है। हरियाणा अपना रजत जयंती वर्ष मना चुका था। हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे भजनलाल तब फरीदाबाद सीट से सांसद हुआ करते थे। केंद्र में वी पी सिंह की सरकार के पतन के बाद चंद्रशेखर कामचलाऊ सरकार चला रहे थे। उससे पहले वी पी सिंह का उपजाया मंडल आंदोलन गुजर चुका था और उसके बाद कमंडल की बारी थी। बहरहाल फरीदाबाद के नोएडा से सटे खादर क्षेत्र में भजनलाल की एक बड़ी सभा हुई। वहां भजनलाल ने एक लोक प्रचलित एक किस्सा सुनाया। किस्सा यों था कि एक बनिया अपनी दुकान खोल कर ग्राहकों के इंतजार में बैठा था। तभी दुकान के अंदर सांप प्रकट हो गया जबकि दुकान के बाहर सौदा लेने जाट का छोरा आ गया। बनिया दोनों से खार खाता था। दुकान के अंदर सांप और बाहर जाट का छोरा। दोनों बनिया के दुश्मन, क्योंकि दोनों ने ही अलग अलग कारणों से बनिया का जीना दूभर कर रखा था। दोनों दुश्मन जब उसे एक साथ दिखे तो हिसाब बराबर करने का उसे नायाब मौका दिखा और जाट के छोरे को उसने बहाने से अंदर बुलाकर बाहर से शटर गिरा दिया। दुकान के अंदर जाट के छोरे और सांप में संघर्ष शुरू हो गया। बनिया को बाहर बैठे देख वहां से गुजर रहे लोगों ने कारण पूछा तो बनिए का एक ही जवाब होता कि अंदर दो दुश्मन लड़ रहे हैं, उनमें से एक तो मरेगा ही, तभी शटर खोलूंगा। दुकान के अंदर से आवाजें लगातार आ रही थी,  शायद जाट का छोरा सांप को मार चुका था, थोड़ी देर बाद शांति हो गई तो बनिए ने शटर खोल दिया और जाट के छोरे को अपना दोस्त बना दिया।
भजनलाल समझा रहे थे कि कांग्रेस के दो दुश्मन हैं, जनमोर्चा और भाजपा। दोनों में से एक का अंत होगा तो कांग्रेस की सत्ता में वापसी हो पाएगी और दिल्ली लौटते ही चंद्रशेखर की सरकार गिर गई और उसके बाद नरसिंहराव की सरकार बनी थी। कई अन्य लोग भी अनेक तरह से इस किस्से को सुना चुके हैं लेकिन भजनलाल का जो अंदाज था, वह आज भी याद है। वैसे इस किस्से का उत्तराखंड की राजनीति से कोई सीधा संबंध नहीं है लेकिन समीकरण देखें तो काफी कुछ यहां उसकी कमोबेश पुनरावृत्ति होती दिख रही है।
अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए उत्तराखंड की हरिद्वार लोकसभा सीट शायद सबसे ज्यादा हॉट हो सकती है। आप भजनलाल को भूल जाइए। यहां कांग्रेस के ही दो राजनीतिक नायक आमने सामने हैं। हरदा और हरक। सीन इतना भर बदला है कि फायदे की इंतजार में भाजपा है। उसे दो लोगों से हिसाब बराबर करने का मौका मिल रहा है।
फ्रेम में दो लोग हैं। हरदा को 2022 के विधानसभा चुनाव में टिकट किसकी वजह से नहीं मिला, ये वह भूले नहीं हैं। उनके बदले लैंसडाउन से उनकी बहू को टिकट मिला जरूर लेकिन वह काम नहीं आया। यह टीस हरक भाई भूल कैसे सकते हैं, लिहाजा उन्होंने 2024 को लोकसभा चुनाव हरिद्वार सीट से लड़ने का मन बनाया तो हरदा को भी 2016 का हिसाब बराबर करने का मौका दिख रहा है, लिहाजा वो क्यों पीछे रहें। हरिद्वार दोनों बड़े नेताओं की पसंदीदा सीट मानी जा रही है और दोनों इसके स्वाभाविक दावेदार भी हैं। देखा जाए तो हरक सिंह उत्तराखंड की चारों सामान्य सीटों में से किसी एक पर भी दावेदारी ठोकें तो उन्हें जानने वाले समर्थक हर सीट पर मिल जायेंगे लेकिन हरदा को पहाड़ न जाने क्यों कठिन समीकरण लगता है और वे हरिद्वार को ही सबसे सुरक्षित क्षेत्र मानते हैं। हरिद्वार ग्रामीण सीट से तो इस समय उनकी बेटी अनुपमा विधायक है। देहरादून जिले की धर्मपुर, डोईवाला और हरिद्वार विधानसभा सीटों पर दोनों नेता समान अधिकार मानते हों। बाकी हरिद्वार की 11 विधानसभा सीटों के अलग समीकरण दोनों के अपने अपने माफिक माने जा सकते हैं। इस लिहाज से दोनों की सशक्त दावेदारी हैं। यहां अब भजनलाल के बनिए के किरदार में भाजपा दिखने लगती है। उसके लिए दोनों नेता खतरनाक और अप्रिय ठहराए जा सकते हैं। दोनों के संघर्ष से अगर फायदा किसी को पहुंच सकता है तो वह सिर्फ और सिर्फ भाजपा ही हो सकती है। दोनों नेताओं की ऊर्जा अगर एक ही सीट पर खप जाए तो भाजपा के दोनों हाथों में लड्डू होंगे या नहीं इसका अनुमान आप खुद लगाइए। हरदा के लिए हरक लोकतंत्र का अपहरणकर्ता नजर आते हैं तो हरक की अपनी दलीलें हो सकती हैं। वैसे राजनीति के चतुर सुजान हरक सिंह हरदा को बड़ा भाई मानते हुए, उनसे सार्वजनिक रूप से माफी भी मांग चुके हैं लेकिन हरदा की टीस इतनी गहरी लगती है कि शायद वे हरक को ही 2016 के घटनाक्रम का खलनायक मान बैठे हैं और यह दर्द वे कई बार व्यक्त कर भी चुके हैं।
अब आप न्यूट्रल होकर खुद आकलन कीजिए, सांप कौन है? जाट का छोरा कौन है? बनिया कौन है और आखिरकार फायदा किसे होगा? आने वाले समय में सभी किरदार आपके सामने होंगे। इंतजार कीजिए, बहुत कुछ दिलचस्प देखने को मिल सकता है। 2024 ज्यादा दूर थोड़े ही है। आप भी राजनीतिक घटनाक्रम पर नजर बनाए रखिए, बहुत कुछ घटने वाला है।

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