धर्म/संस्कृति/ चारधाम यात्रा

शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने नंदकेशरी में शिव परिवार के मंदिर समूहों को देखा

 

-रिपोर्ट हरेंद्र बिष्ट-
थराली/देवाल, 1 जुलाई । पहली बार चमोली मंगलम यात्रा के तहत पिंडर घाटी के तीन दिवसीय भ्रमण पर पहुंचे ज्योतिर्मठ पीठ के शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती 1008 नंदा धाम नंदकेसरी में स्थित शिव परिवार के मंदिर समूहों को देखा।इस मंदिर परिसर के बीचोंबीच स्थित एक विशाल वट वृक्ष और उसपर उगें पांच प्रजातियों के पेड़ों को देख जहां आश्चर्यचकित हुए बिना नही रह सकें। वही शंकराचार्य ने इस वटवृक्ष को प्रकृति का एक अनोखा उपहार बताया।

पिछले 15 दिनों से ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य चमोली मंगलम की यात्रा पर हैं।इसी क्रम में शंकराचार्य एवं उनका धार्मिक दल विकास खंड देवाल के नंदा धाम नंदकेसरी पहुंचे, नंदकेसरी वही ऐतिहासिक स्थल हैं जहां पर 12 वर्षों में आयोजित होने वाली श्री नंदा देवी राजजात यात्रा के दौरान कुरूड से चली नंदा देवी की उत्सव डोली से नौटी कर्णप्रयाग से चलने वाली राज छतौली, चौसिंगा खाडू के साथ ही गढ़वाल के साथ ही कुमाऊं नैनीताल, अल्मोड़ा, कोट भ्रामरी बागेश्वर के अलावा अन्य स्थानों से चलने वाली छतौलियों, निशानों सहित अन्य देवी देवताओं के प्रतिकों की भेट होती हैं।

नंदा लोक जागरो के अनुसार मां भगवती ने अपनी आंखों की भौ का बाल तोड़ कर केसरी देवी की उत्पत्ति की जिससे इस स्थान का नाम नंदकेसरी पड़ गया। यहां पर नंदा भगवती, भगवान शिव, गणेश,मां काली अष्टभैरवी,लाटू देवता आदि के पौराणिक मुर्तियां व प्रतिक निशाना मौजूद हैं। इसके अलावा यहां पर तमाम शिलाओं पर शिला लेख लिखे गए हैं। जिन्हें आज तक पढ़ा नही जा सका है कि आखिरकार इनमें लिखा क्या गया हैं।

मंदिर परिसर के बीचोंबीच सदियों पुराना एक वट वृक्ष जिसमें सुराई,पैय्यां,पिलुखा,आकाश बेल और आम की शाखाएं उगी हुई हैं।इस पेड़ को स्थानीय लोग देव पेड़ भी मानते हैं। मान्यता है कि जो नंदा की भक्त महिलाएं इस पेड़ पर रक्षा धागा बांध कर जो मनौती मांगती है उसकी मनोकामना पूरी होती हैं।

जब पिंडर घाटी के तीन दिवसीय भ्रमण के दौरान अपने शिष्यों के साथ नंदकेसरी मंदिर पहुंचे तो उन्होंने देव मंदिरों में दर्शन किए। उसके बाद जब स्थानीय लोगों ने एक पेड़ पर ही 5 प्रजाति के पेड़ होने की बात बताई तो शंकराचार्य सहित उनके सभी शिष्य अचंभित रहे बगैर नही रह पाएं।

शंकराचार्य वृक्ष के चारों ओर बने चबूतरे पर चढ़े और इस वट वृक्ष को प्रणाम करते हुए इस पर उभरी देव आकृतियों को गौर से देखा दरअसल इस वृक्ष पर कई तरह की आकृतियां उभरी हुई हैं। इसके बाद इसी परिसर में आयोजित धर्म सभा को संबोधित करते हुए उन्हें इस वट वृक्ष को कुदरत की एक अनोखी कृति बताते हुए इसे दुर्लभ बताया।

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