सुमित्रानंदन पंत और निराला छायावादी कविता के प्राणतत्व हैं
–-सन्तोषकुमार तिवारी, नैनीताल
बीते दिन समाचार पत्र की एक खबर को पढ़कर मेरे अलावा भी बहुत से लोग अवाक् रह गये| खबर थी–अब नये सत्र से उत्तराखंड में हिन्दी की पुस्तक से छायावाद के स्तम्भ कविवर सुमित्रानंदन पन्त की कविता वे आँखें को पाठ्यक्रम से हटा दिया गया है| खबर में कवि की दूसरी किसी कविता का चयन किया या नहीं यह एनसीईआरटी को यह स्पष्ट करना था|इसका खुलासा होना आवश्यक है|
राज्यों के बोर्ड को यह स्वायत्तता मिलनी चाहिये कि वह अपने क्षेत्रीय कवि/कथाकार व रंगकर्मी को पाठ्यक्रम में स्थान दें, ताकि बच्चे उन्हें जान सकें|अपने राज्य को भलीभाँति समझने के लिहाज से स्थानीय संसाधन,विविधता व बौद्धिक संपदा से नयी पीढ़ी का सुपरिचित होना उसका पहला हक है|
यह चिन्ता एक अध्यापक होने के साथ ही साथ एक अभिभावक के रूप में भी जायज और प्रासंगिक है| विराट कल्पना वाले कवि पंत जी मूलत: प्रकृत- संरक्षण के कवि हैं|
वैसे भी हिन्दी पाठ्यक्रम समिति में कोई अनभिज्ञ सदस्य नहीं बल्कि वरिष्ठ साहित्यकार व आलोचक होते हैं| तब यह बदलाव और बेचैनी पैदा करता है|
कोमल कांत पदावली के दूसरे कवि चंद्रकुँवर वर्त्वाल को माध्यमिक स्तर के बच्चे जानते तक नहीं |कारण स्पष्ट है सिलेबस से उनका बाहर होना|
इसके अलावा मीराबाई का पद पग घुँघरू बाँध मीरा नाची तथा कबीर दास के पद को भी हटाये जाने की खबर है|
कविता मन में सकारात्मकता का भाव पैदा करने का अहम माध्यम है, मानवीय बनाने का गुण इसमें नैसर्गिक रूप से विद्यमान होता है|
आशा है मेरे अनुरोध में शामिल उत्तराखंड के लाखों बच्चों अभिभावकों तथा अध्यापकों के अनुरोध पर एनसीईआरटी की अकेडेमिक सेल जरूर विचार करेगी|
दूसरी खबर को सही मानें तो इसी तरह यूपी बोर्ड ने तो कक्षा बारह हिंदी की किताब से महाप्राण सूर्यकांत त्रिपाठी निराला को कुछ साल पहले ही बाहर कर दिया|यह फैसला चौंकाने वाला है|
माध्यमिक के बच्चे अब महाकवि निराला की राम की शक्तिपूजा के विचारवान राम व उनके द्वंद्व से भला कैसे परिचित हो सकेंगे| राम ही जानें, पाठ्यक्रम समिति के मन में क्या चल रहा है?
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