क्यों धंस रहा है जोशीमठ ? कौन है इस आपदा के लिए जिम्मेदार ? 1976 से सरकारें और निवासी क्यों सोये रहे ? देखिए यह वीडियो…. . सुनिए जयसिंह रावत को।
–जयसिंह रावत —
भारत तिबत सीमा के निकट देश का अंतिम शहर जोशीमठ भू-धंसाव के कठिन दौर से गुजर रहा है।सन 1976 से लेकर अब तक कई विशेषज्ञ कमेटियां इस खतरे की ओर सरकार और जनता का ध्यान आकर्षित कर चुकी थी मगर न सरकार के कान में जून रेंगी न जनता चेती। दिसंबर के महीने में क्षेत्र में कई जगहों पर भू-धंसाव की घटनाएं आई थीं। शहर के मनोहर बाग वार्ड, गांधी वार्ड और सिंधार वार्ड में लोगों ने घरों में दरार आने की बातें कही थी। नगर क्षेत्र में भू-धंसाव से मकानों के साथ कृषि भूमि के भी प्रभावित होने की घटनाएं आईं। यहां खेतों में बड़ी-बड़ी दरारें पड़ी और कई जगहों पर तो खेतों की दरारें एक फीट तक चौड़ी हो गईं।
जोशीमठ की कैरीइंग कपैसिटी या धारक क्षमता के विपरीत वहां अवैज्ञानिक तरीके से विकास होता रहा। जोशीमठ का समुचित मास्टर प्लान न होने के कारण उसकी ढलानों पर विशालकाय इमारतों का जंगल बेरोकटोक उगता जा रहा है। हजारों की संख्या में बनी इमारतों के भारी बोझ के अलावा लगभग 25 हजार शहरियों के घरों से उपयोग किया गया पानी स्वयं एक बड़े नाले के बराबर होता है जो कि जोशीमठ की जमीन के नीचे दलदल पैदा कर रहा है। उसके ऊपर सेना और आइटीबीपी की छावनियों का निस्तारित पानी भी जमीन के नीचे ही जा रहा है। निरन्तर खतरे के सायरन के बावजूद वहां आइटीबीपी ने भारी भरकम भवन बनाने के साथ ही मलजल शोधन संयंत्र नहीं लगाया। कई क्यूसेक यह अशोधित मलजल भी जोशीमठ के गर्भ में समा रहा है। यही स्थिति सेना के शिविरों की भी है। जोशीमठ के बचाव के बारे में अब सोचा जा रहा है, जबकि इस शहर का अस्तित्व ही संकट में पड़ गया।